सुमन गौड़ कीक्षणिकाएँ- प्रेम!



प्रेम लौकिक है या अलौकिक या सिर्फ एक अहसास है अथवा मिलन है आत्मा से परमात्मा का या फिर दो संज्ञाओं का? प्रेम क्या है? न जाने कितनो ने पढ़ा और पढ़कर गुना और हो गए पंडित..वैसे तो ये ढाई आखर अपने में सम्पूर्ण सृष्टि समाये है पर आज प्रेम के इन ढाई आखरों को हम सुमन जी के नज़रिए से पढ़ने की कोशिश करते हैं..पेश है इन ढाई आखरों में समाई सुमन जी की सृष्टि और दृष्टि-


प्रेम क्या है
दो शब्दों का मिलन
दो आत्माओ का मिलन
दो देह का मिलन
या
लौकिकता से परे विश्वास का एक मूर्त रूप
***

प्रेम दो सरल शब्दों से बना
अलग अलग व्यक्तियों से जुड़ कर
अलग अलग रिश्तो को जन्म देते हुए
एक ही रूप में परिभाषित होता है
***

कहते है
प्रेम ईश्वर है
प्रेम साधना है
प्रेम भक्ति है
प्रेम इबादत है
प्रेम आस्था है
प्रेम में ये सब है
तो क्यू प्रेम
प्रेम से अलग हो जाता है?
***

तुम कहती हो
मुझसे प्रेम करती हो
मै कहता हूँ
तुमसे प्रेम करता हूँ
क्या कहने भर से प्रेम होता है
तो मै एक हज़ार बार तुम से प्रेम कर चुका हूँ
फिर तुम्हारा विश्वास डगमगाता क्यू है?
***

प्रेम, सिर्फ प्रेम है
निःस्वार्थ,नि:शब्द,निराकार
कुछ भी नष्ट नहीं होता प्रेम में
नष्ट होते है सिर्फ हम
अचेतन में दबी रहती है हमारी यादें, टूटे सपने
मासूम प्रसन्नताएँ,उजड़ी नींदे
उत्सवों मेलो पर
बाहर आती है कभी-कभी
प्रेम के जर्जर द्वार से
मौन उदासी के अहाते के आरपार
***

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11 Responses to सुमन गौड़ कीक्षणिकाएँ- प्रेम!

  1. तुम कहती हो
    मुझसे प्रेम करती हो
    मै कहता हूँ
    तुमसे प्रेम करता हूँ
    क्या कहने भर से प्रेम होता है
    तो मै एक हज़ार बार तुम से प्रेम कर चुका हूँ
    फिर तुम्हारा विश्वास डगमगाता क्यू है?
    प्रेम में ये सब है
    तो क्यू प्रेम
    प्रेम से अलग हो जाता है?
    KYA KAHUN NISHABD HOON BAHUT SUNDER PREM KAVITAYEN

    ReplyDelete
  2. प्रेम पर बहुत सुन्दर और सारगर्भित क्षणिकाएं

    ReplyDelete
  3. बहुत ही अच्छी क्षणिकाएं हैं....

    ReplyDelete
  4. सुंदर क्षाणिकाएँ

    ReplyDelete
  5. bahut sundar...prem ko bahut hi sundar tarike se paribhashit kiya hai ...

    ReplyDelete
  6. कहते है
    प्रेम ईश्वर है
    प्रेम साधना है
    प्रेम भक्ति है
    प्रेम इबादत है
    प्रेम आस्था है
    प्रेम में ये सब है
    तो क्यू प्रेम
    प्रेम से अलग हो जाता है?
    .........
    प्रेम कभी प्रेम से अलग नहीं होता , जो दिखता है वह हमेशा सच नहीं होता , मन को प्रेम समझता है, जो ना समझे वह प्रेम कहाँ !

    ReplyDelete
  7. कहते है
    प्रेम ईश्वर है
    प्रेम साधना है
    प्रेम भक्ति है
    प्रेम इबादत है
    प्रेम आस्था है
    प्रेम में ये सब है
    तो क्यू प्रेम
    प्रेम से अलग हो जाता है?

    sach hi to kaha aapne..kyun aisa hota hai!

    ReplyDelete
  8. प्रेम
    को शब्दों में बाँध पाना
    कभी भी सहज नहीं रहा
    लेकिन
    भ्रम टूटता सा नज़र आ रहा है
    जो भी लिखा / कहा है
    सब स्वाभाविक लग रहा है ...

    अभिवादन .

    ReplyDelete
  9. Bahut badhiya kshanikayen Suman ji...Bahut hi sarthak tathya apne kavita ke roop me rakkha hai yahan...dil khush ho gaya padh kar...
    प्रेम, सिर्फ प्रेम है
    निःस्वार्थ,नि:शब्द,निराकार
    कुछ भी नष्ट नहीं होता प्रेम में
    नष्ट होते है सिर्फ हम
    अचेतन में दबी रहती है हमारी यादें, टूटे सपने
    मासूम प्रसन्नताएँ,उजड़ी नींदे
    उत्सवों मेलो पर
    बाहर आती है कभी-कभी
    प्रेम के जर्जर द्वार से
    मौन उदासी के अहाते के आरपार
    Bahut khoob hain har panktiyan...

    ReplyDelete
  10. प्रेम पर लिखीं ये क्षणिकाएँ बहुत अच्छी लगी । प्रेम ही सब कुछ ।

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  11. सुमन जी कविता प्रेम से भी बडी होती है क्‍योंकि प्रेम को कविता में लिखा जाता है.

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