परिचय
सुधीर सक्सेना 'सुधि' की साहित्य लेखन में रुचि बचपन से ही रही। बारह वर्ष की आयु से ही इनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में अनेक रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी प्रसारण। बाल साहित्य में भी खूब लिखा। पत्रकारिता व लेखन के क्षेत्र में राजस्थान साहित्य अकादमी, राजस्थान पाठक मंच, भारतीय बाल कल्याण संस्थान, कानपुर, बाल गंगा (बाल साहित्यकारों की राष्ट्रीय संस्था, जयपुर) चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट के अलावा अन्य अनेक पुरस्कारों से सम्मानित 'सुधि' की अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अंतर्जाल की विभिन्न पत्रिकाओं में भी प्रकाशन। इसी क्रम में हिन्द-युग्म के माह अगस्त-2009 के यूनिकवि के लिए चयन। नुक्कड़ ब्लॉग पर नवम्बर-2009 में नुक्कड़ सर्वोत्तम बाल कविता सम्मान।
पिछले कुछ दिन से
मेरी धरती का रंग लाल है.
यह वसंत का नहीं
धरती के ही कुछ
बेटों का कमाल है.
वसंत तो आया था-
अपने तरीके, अपने हिसाब से
उसने बात भी की थी
सरसों, पलाश और गुलाब से
लेकिन बातचीत के बाद उतर गया
खुद वसंत का रंग!
और वसंत की राह देखने वालों के
आसपास कहीं नहीं था वासंती अहसास!
पीली चुनरिया, पीली चिट्ठियां और
पीलेपन के समूचे ख़याल
सब दूसरे ही रंग में रंगे हैं
जिन्हें रंगरेजों ने नहीं,
किन्ही औरों ने रंगा है
और यह साबित किया है कि-
इंसानियत का नहीं कोई सगा है!
अब तो लोग
हरसिंगार के फूलों से
वसंत का आगमन नहीं देखते
वे केवल देखने को बाध्य हैं
आग की लपटों का पीलापन
जिसमें जलते हैं
मानवीयता के रिश्ते
और क्षण भर पहले तक का अपनापन.
ऐसे में परिंदा तक शर्मिंदा है
कि वो किस वसंत के गीत सुनाए !!
क्योंकि हाल ही करोड़ों आँखों ने
एक के बाद एक उतरते रंग जो देखे हैं
जिनका हो गया है अंत.
फिर भी जो रंग बचा है,
यदि वासंती है वो
तो बुझे मन से कहता हूँ मैं
स्वागत है तुम्हारा वसंत!
***
-सुधीर सक्सेना 'सुधि'
75 / 44 , क्षिप्रा पथ, मानसरोवर,
जयपुर-302020
सुधीर सक्सेना "सुधि" जी की रचना पढवाने के लिए धन्यवाद|
ReplyDeleteमार्मिक,सामयिक एवं सुंदर रचना। अंतिम पंक्तियाँ भारतीय संस्कृति एवं चिंतन के अनुरूप। बधाई।
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