कोई शब्दों का जाल नहीं है
तुम्हारे लिए तो बुन भी नहीं सकता
तुम ने वो ब्रेल सीखी है
जो मेरे मन को पढ़ ले
मैं तुमसे झूठ नहीं बोल सका
सच कह नहीं पाया
तुम फिर भी सब पढ़ सकी
समझ भी मुझे
सिर्फ तुम ही पायी
आखिर तुम्हारे बालों में है क्या
क्यों बंधा नहीं देख पाता
अलग हूँ शायद इसलिए
उन्हें खुला देख
अपने को पा लेता हूँ
मत बाँधा करो मुझे
कुछ नोस्टाल्जिया शायद डेजा वू होते हैं
तुम्हारी याद
तुम
उन पेड़ों के साये
महक तुम्हारी , वो भी
लिस्ट काफी लंबी है
अब कैसे कहूँ
हिचकी आती है तो पानी नहीं पीता
तुम्हे याद करने का बहाना है
जब आखरी आएगी
तब गंगाजल पिला देना
शहर शायद वैसा ही है
जाओ तो नए चेहरे हैं
ऐसा नहीं है ,पुराने भी हैं
हाँ
तुम और मैं
दोनों नहीं है
या एक साथ नहीं होते
मर गया वो शहर
जहाँ हम साथ थे
बारिश से लगाव
नहीं गया
जायेगा भी नहीं
तुम होते हो ना उसकी हर बूँद में
मैं अपनी अंजुली में भर लेता हूँ
तुमको
हर बारिश में
भीगा देता हूँ अपनी शर्ट को तुमसे
बादलों ! तुम्हारा शुक्रिया
***
भरत
अच्छी कविताएं। नए प्रतीक। शानदार भरत जी।
ReplyDeleteभारत भाई मेरे पार अपने विचार व्यक्त करने को शब्द नहीं बचे...कवितायेँ इतनी अच्छी हैं की दिल को गहरे तक छू लेती हैं.. समझ नहीं आ रहा किस कविता के लिए क्या कहूँ ..सभी बहुत अच्छी हैं ....बस इतना कह सकती हूँ बहुत सुंदर हैं..बहुत बहुत बधाई
ReplyDeletethis one is really too emotional beautiful words..dil ke zazbaat bahut sunder tarekkey se zaahir kiye gaye hein..bahut khoob dost
ReplyDeleteभरत तिवारी जी की सातों कविताएँ सात रंग लिए हुए हैं...सभी एक से बढ़ कर एक...
ReplyDeletebahut achchhi kshnikayen .
ReplyDeleteBohat khoob likha hai Bharat Bhai ji......
ReplyDeleteमैं तुमसे झूठ नहीं बोल सका
ReplyDeleteसच कह नहीं पाया
तुम फिर भी सब पढ़ सकी
समझ भी मुझे
सिर्फ तुम ही पायी
अब कैसे कहूँ
हिचकी आती है तो पानी नहीं पीता
तुम्हे याद करने का बहाना है
जब आखरी आएगी
तब गंगाजल पिला देना
भरत तिवारी जी की सभी कवितायेँ दिल को छू गयी ! ये दो तो रूह को छू गयी ! बहुत शुभकामनाये !!!!!
लाजवाब क्षणिकाएँ......बधाई.....
ReplyDeleteपांच
ReplyDeleteअब कैसे कहूँ
हिचकी आती है तो पानी नहीं पीता
तुम्हे याद करने का बहाना है
जब आखरी आएगी
तब गंगाजल पिला देना
bahut khub...................bahut acchi abhivykati...
bahut khoob likaha hai...
ReplyDeleteaise hi likhte rahen .sadhuwaad avadesh tripathi
ऐसा लगता है किसी लम्बी यात्रा पर निकल गए हैं अंत में स्वयं को पुनः घर पर ही पाते हैं! कमाल है भरत जी !! लाज़वाब !!
ReplyDeletesundar rachnayen hai dil se nikli hain aur dil main utarati hai................
ReplyDeleteसुन्दर सुन्दर और खास ..
ReplyDeleteबारिश से लगाव
नहीं गया
जायेगा भी नहीं
तुम होते हो ना उसकी हर बूँद में
मैं अपनी अंजुली में भर लेता हूँ
तुमको
हर बारिश में
भीगा देता हूँ अपनी शर्ट को तुमसे
बादलों ! तुम्हारा शुक्रिया
भाई आप तो नए आयाम स्थापित कर रहे हैं. आपको बहुत शुभकामनाएं.!!
ReplyDeleteदेखने पर लगता है की कोई भी अशार हो या कविता या शेर या नज़्म हो वो गहरी नहीं मालूम पड़ती पर जिस तरह इत्र की खुशबू ढक्कन हटाने के कुछ देर बाद ही कोने कोने मैं महसूस की जा सकती है वोही असरात पैदा हो जाते हैं गोया की ये आपकी खुशबू शरीर (आँखों से- तन) से दिल (मन) पर हावी हो हो जाती है और आखिर मैं पता चलता है की वो रूह तक असर कर गयी है ......... मन मष्तिस्क मैं झंझावत पैदा होकर रूह तक उतर जाता है ......... आप को साधुवाद है की आप रूह तक का सफर बहुत ही आराम से कर पातें हैं ...... मैं धन्य हूँ की मैं आपका छोटा भाई हूँ और आपसे रोज कुछ सीखता हूँ .....
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं सुन्दर और सारगर्भित ! भारत भाई बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteabsolutely truthful honest sweetes sensitive expression of YAADEIN..
ReplyDeleteब्लॉगजगत में पहली बार एक ऐसा "साझा मंच" जो हिन्दुओ को निष्ठापूर्वक अपने धर्म को पालन करने की प्रेरणा देता है. बाबर और लादेन के समर्थक मुसलमानों का बहिष्कार करता है, धर्मनिरपेक्ष {कायर } हिन्दुओ के अन्दर मर चुके हिंदुत्व को आवाज़ देकर जगाना चाहता है. जो भगवान राम का आदर्श मानता है तो श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र भी उठा सकता है.
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