नाम: यश मालवीय
जन्म: 18 जुलाई 1962 कानपुर, उत्तर प्रदेश
कुछ प्रमुख कृतियाँ: कहो सदाशिव, उड़ान से पहले, एक चिडिया अलगनी पर एक मन में, राग-बोध के 2 भाग
संपर्क: रामेश्वरम, ए - 111, मेंह्दौरी कालोनी, इलाहाबाद -211 004, उ प्र
यश मालवीय समकालीन युवा साहित्यकारों मे महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । उनके गीतों में मानवीय संवेदनाओं के प्रति विचित्र आग्रह है जो प्रस्तुत दो गीतों में देखा जा सकता है । यश को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का निराला सम्मान, और उमाकांत मालवीय बाल साहित्य सम्मान भी मिल चुका है ।
आज आपके सम्मुख प्रस्तुत है यश मालवीय के दो गीत..
[एक]
देह भर में धूप
मेहँदी सी रची है
आज घर पर ही रहेंगे
है दिसम्बर
कैजुअल बाकी बची है
आज घर पर ही रहेंगे
रौशनी है रौशनी के
दायरे हैं
पूछिए मत
आइने भी बावरे हैं
है घना कुहरा
कि मौसम भी टची है
आज घर पर ही रहेंगे
बहुत कम हो कर
बहुत जादा खुशी है
फूल होकर
छू रही सी खामुशी है
एक रेखा सहज
चेहरे पर खिंची है
आज घर पर ही रहेंगे
चाय के संग
भाप मुँह की बोलती है
हवा मन की
गिरह जैसे खोलती है
जगी आँखों धूम
सपनों की मची है
आज घर पर ही रहेंगे |
[दो]
भीतर -भीतर कितनी बार
उबलना होता है
बालू बांध पांव में
मीलों चलना होता है
खामोशी कोने अतरों से
झाँका करती है
सिलकर होंठ ,मूल्य शब्दों का
आंका करती है
अंधियारों में बिना रौशनी
जलना होता है
कभी -कभी गलियाँ -चौराहे
गली बकते हैं
कोल्हू के जो बैल ,
परिधि में अपने थकते हैं
बंद सुरंगों से भी हमें
निकलना होता है
मौन ठिठुरते हैं
अपनी ही आग सौंपते हैं
हम वहशी अतीत को
जीवन राग सौंपते हैं
बर्फीली चट्टानों जैसा
गलना होता है |
***
- यश मालवीय
भाई नरेंद्र जी यश मालवीय हिन्दी गीत के प्रमुख रचनाकारों में हैं |उनको पढ़ना बहुत सुखद लगता है |बधाई
ReplyDeleteयश मालवीय के गीतों की अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !
ReplyDeleteभीतर -भीतर कितनी बार
ReplyDeleteउबलना होता है
बालू बांध पांव में
मीलों चलना होता है
आदरणीय यश जी के गीत जीवन की वास्तविकता का चित्रण बखूबी करते हैं. उनके गीतों को पढ़कर लगता है कि गीत-नवगीत विधा कमजोर पड़ने वाली नहीं. पंकज जी , नरेन्द्र जी, एवं सुनील जी इन गीतों को प्रस्तुत करने के लिए बधाई.