होली की उमंग-आखर कलश के संग

आखर कलश परिवार की तरफ से होली की हार्दिक शुभकामनाएँ







रंग दे चुनर कान्हा जी भर के ....रश्मि प्रभा


होली आई होली आई
रंग दे चुनर कान्हा जी भर के
प्यार के रंग से कान्हा प्यार के रंग से
होली आई होली आई....

बरस बीता के अब होली आई
मन में उगे हैं आम के बौर
महके है आँगन
खनके है चूड़ी
चेहरे पे प्यार की लाली है छाई
कान्हा ले ले सारे रंग
प्यार के रंग कान्हा प्यार के रंग
होली आई होली आई
रंग दे चुनर कान्हा जी भरके ....

कोरी चुनर मेरी देखे है रस्ता
देर न कर कान्हा रंग दे मुझे
ढलके चुनर मोरी
बोले है धड़कन
रंग दे मुझे कान्हा अपने रंग में
अपने रंग में
अपने रंग में
होली आई होली आई
रंग दे चुनर कान्हा जी भर के ....
***
-रश्मि प्रभा
होली आई रंग लाई .. डॉ. कविता किरण

होली आई रंग लाई मोरे रंग रसिया
रंग रसिया मोरे मन बसिया।
तू भी आजा परदेसी
आ बाँच मेरे मन की पतिया।

होली आई रंग लाई...........।


रूत ये रंगीली मोसे करत ठिठोरी
सूनी गई दीवाली तेरी सूनी गई होरी
बिरज में चहुँ दिस उडत गुलाल है
कोरी काहे रही बरसाने की छोरी
सूने-सूने दिन मोरे
सूनी-सूनी मोरी रतिया।

होली आई रंग लाई............।


भर पिचकारी मारे सखियाँ साँवरिया
बावरी-सी पिया-पिया रटूँ मैं गुजरिया
देह से लिपट जाए गीली जो चुनरिया
बज उठे भीग-भीगे तन की बाँसुरिया
सागर से मिलने को व्याकुल
हो जाए प्यासी नदिया।

होली आई रंग लाई.............।

कह दे ये कोई मोरे सजना से जाय के
सब कुछ खोना चाहूँ इक तुझे पाय के
अपलक राह तक थके ये नयनवा
छिप गये कहाँ पिया सुरति दिखाय के
ऐसे तडप बिन तेरे
जैसे बिन पानी की मछिया

होली आई रंग लाई.............।
***
- डॉ. कविता किरण

फागुन रंगीले की सवारी- राजेन्द्र स्वर्णकार

बसंत बहार राग गा'तो- गा'तो आयो फाग
फागुन रंगीले की सवारी चली आई है !
क्या जवान ,बच्चे बूढ़े …सब पे ही टोना कियो
आवत ही धूम घर घर में मचाई है !
ज़बरन् छेड़ छाड़ , हुलियो दियो बिगाड़ ,
भोरी - भोरी गोरिन से ख़ास ही लड़ाई है !
केश बिखरावै , उर पट सरकावै ,
मुख चूम सहलावै , दैया , ग़ज़ब ढिठाई है !
***
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अपर्णा मनोज भटनागर की नज़र से होली
१.


आओ देखो तो
आज जो तारीख काटी है
एक बहुत पुरानी होली की है
तुम्हारे हाथ भरे हैं
गुलाबी अबीर से
मुझे गुलाबी पसंद है
तुम्हें नीला ..
शायद ये कलेंडर मैं फाड़ना भूल गई थी ..
काफी कुछ बचा रहा इस तरह तुम्हारे -मेरे बीच
एक बार फिर चाहूँ
इस बचे को उलटो-पलटो तुम


२.
जाओ , देखो तो
क्या रख आई हूँ तुम्हारी स्टडी -टेबल पर
हल्दी की छींटवाला , एक खत चोरी-भरा

पढ़ लेना समय से
खुली रहती है खिड़की कमरे की
धूप , हवा , चिड़िया से

कहीं उड़ न जाएँ
हल्दी की छींट...ताज़ी .

आज तुम ही आना किचिन में
कॉफ़ी का मग लेने ..
हम्म ..
कई दिनों बाद उबाले हैं ढेर टेसू केसरिया
तुम्हें पुरानी फाग याद है न ..
मैं कुछ भूल -सी गई हूँ ..
कई दिनों से कुछ गुनगुनाया ही नहीं
साफ़ करती रही शीशे घर के .
***
- अपर्णा मनोज भटनागर
इन्टरनेट पर होली- संगीता सेठी

इन्टरनेट पर कर दी रंगों की बौछार
ई.मेल से भेज दिया पीला लाल गुलाल

पीला लाल गुलाल ऑरकुट पर भी भेजा
देख इंटरनेटी होली बीवी का मुँह सूजा

बीवी का मुँह सूजा किया फेस बुक अपडेट
लैपटॉप पर करते रहे हम दोस्तों से चैट

दोस्तों से चैट में हम इतना डूबे
कब आ गये पीछे से मेरे दोस्त अजूबे

मेरे दोस्त अजूबे रंगे होली के रंगों से
पहचाने नहीं गए क़ि शक्ले भूतों जैसे

शक्ले भूतों जैसे क़ि हम तो पैठ जमाएँ
आओ तुमको चैट की दुनिया दिखलाएँ

नहीं देखनी आज हमको दुनिया चैट की
हमको तो खानी गुझिया भाभी के हाथ की

नहीं बनी है गुझिया भाभी बोली झट से
इस बार तुम मंगवा गुझिया इंटरनेट से
***
-संगीता सेठी
शायमल सुमन की फगुनाहट

१. दिल में है

फागुन आया, तुम न आये, यादों की कहानी दिल में है
जो जख्म मिले थे बिछुड़न के, उसकी भी निशानी दिल में है

इक तड़प मिलन की ले करके जब जब आता ऋतुराज यहाँ
जीने की भी है मजबूरी पर प्यास पुरानी दिल में है

सुख-दुख, मिलन-जुदाई तो आते रहते यह सुना बहुत
सहरा-सा जीवन है फिर भी लोगों की जुबानी दिल में है

जब प्रियतम पास नहीं होते फागुन का रंग लगे फीका
आँगन के खालीपन में भी जीने की रवानी दिल में है

कोयल की मीठी कूक यहाँ, इक हूक जगा देती अक्सर
खुशबू संग सुमन मिले निश्चित वो घड़ी सुहानी दिल में है


२. फगुनाहट

देखो फिर से वसंती हवा आ गयी।
तान कोयल की कानों में यूँ छा गयी।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।

इस कदर डूबी क्यों बाहरी रंग में।
रंग फागुन का गहरा पिया संग मे।
हो छटा फागुनी और घटा जुल्फ की,
है मिलन की तड़प मेरे अंग अंग में।
दामिनी कुछ कर देंगे नादानियाँ।।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।

बन गया हूँ मैं चातक तेरी चाह में।
चुन लूँ काँटे पड़े जो तेरी राह में।
दूर हो तन भले मन तेरे पास है,
मन है व्याकुल मेरा तेरी परवाह में।
भामिनी हम न देंगे कुर्बानियाँ।।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।

मैं भ्रमर बन सुमन पे मचलता रहा।
तेरी बाँहों में गिर गिर संभलता रहा।
बिना प्रीतम के फागुन का क्या मोल है,
मेरा मन भी प्रतिपल बदलता रहा।
मानिनी हम फिर लिखेंगे कहानियाँ।

३. होलियाए दोहे

होली तो अब सामने खेलेंगे सब रंग।
मँहगाई ऐसी बढ़ी फीका हुआ उमंग।।

पैसा निकले हाथ से ज्यों मुट्ठी से रेत।
रंग दिखे ना आस की सूखे हैं सब खेत।।

एक रंग आतंक का दूजा भ्रष्टाचार।
सभी सुरक्षा संग ले चलती है सरकार।।

मौसम और इन्सान का बदला खूब स्वभाव।
है वसंत पतझड़ भरा आदम हृदय न भाव।।

बना मीडिया आजकल बहुत बड़ा व्यापार।
खबरों के कम रंग हैं विज्ञापन भरमार।।

रंग सुमन का उड़ गया देख देश का हाल।
जनता सब कंगाल है नेता मालामाल।।

४. तस्वीर

अगर तू बूँद स्वाती की, तो मैं इक सीप बन जाऊँ
कहीं बन जाओ तुम बाती, तो मैं इक दीप बन जाऊँ
अंधेरे और नफरत को मिटाता प्रेम का दीपक
बनो तुम प्रेम की पाती, तो मैं इक गीत बन जाऊँ

तेरी आँखों में गर कोई, मेरी तस्वीर बन जाये
मेरी कविता भी जीने की, नयी तदबीर बन जाये
बडी मुश्किल से पाता है कोई दुनियाँ में अपनापन
बना लो तुम अगर अपना, मेरी तकदीर बन जाये

भला बेचैन क्यों होता, जो तेरे पास आता हूँ
कभी डरता हूँ मन ही मन, कभी विश्वास पाता हूँ
नहीं है होंठ के वश में जो भाषा नैन की बोले
नैन बोले जो नैना से, तरन्नुम खास गाता हूँ

कई लोगों को देखा है, जो छुपकर के गजल गाते
बहुत हैं लोग दुनियाँ में, जो गिरकर के संभल जाते
इसी सावन में अपना घर जला है क्या कहूँ यारो
नहीं रोता हूँ फिर भी आँख से, आँसू निकल आते

है प्रेमी का मिलन मुश्किल, भला कैसी रवायत है
मुझे बस याद रख लेना, यही क्या कम इनायत है
भ्रमर को कौन रोकेगा सुमन के पास जाने से
नजर से देख भर लूँ फिर, नहीं कोई शिकायत है

५. प्रेमगीत

मिलन में नैन सजल होते हैं, विरह में जलती आग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।

आए पतंगा बिना बुलाए कैसे दीप के पास।
चिंता क्या परिणाम की उसको पिया मिलन की आस।
जिद है मिलकर मिट जाने की यह कैसा अनुराग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।

मीठे स्वर का मोल तभी तक संग बजते हों साज।
वीणा की वाणी होती क्या तबले में आवाज।
सुर सजते जब चोट हो तन पे और ह्रदय पर दाग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।

चाँद को देखे रोज चकोरी क्या बुझती है प्यास।
कमल खिले निकले जब सूरज होते अस्त उदास।
हँसे कुमुदिनी चंदा के संग रोये सुमन का बाग़।

६. मिलन

मिलन हुआ था जो कल सपन में, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा
तेरे सामने दफन हुआ दिल, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा

लटों को मुख से झटक रही हो, हवा के संग जो मटक रही है
हँसी से बिजली छिटक रही है, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा

फ़लक को देखा पलक उठा के, तुम्हारी सूरत की वो झलक है
झुकी नजर की छुपी चमक को, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा

निहारता हूँ मैं खुद को जब भी, तेरा ही चेहरा उभर के आता
ये आइने की खुली बग़ावत, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा

मिलकर सागर में मिट जाना, सारी नदियों की चाहत है
मिलन सुमन का तड़प भ्रमर की, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा
***
-श्यामल सुमन
होली: कुछ दोहे- नवनीत पांडे

इन्द्र्धनुष के सात रंग, इक मन में रच जाए
धमाल होए चंग संग, जब फ़ाल्गुन-होली आए

होली मेरी, होली है, जो तू रंग में आए
तू रंगी जिस रंग में, मेरो मन रंग जाए

होली खेलें आप से, खेलें मन के फ़ाग
रंग रचाएं हेत के, छेड़ें प्रीत के राग

सांस मेरी अबीर हो, मन रंग हो जाए
या विध होली खेलें हम, देखत सब रह जाए

होली खेलें प्रेम से, प्रेम रंग बरसाय
मन के सारे वैर भाव, होली ज्यूं जल जाय


होली: एक क्षणिका

होली तो हो ली
रंग था, मैं था
तुमने ना
खिड़की खोली
***
- नवनीत पांडे
होली- सुनील गज्जाणी की नज़र से

१.
संदेशा
होली आगमन का
वे दरख्त
अपने पत्तों को
स्वयम् से जुदा कर
हर बार देते हैं।

२.
नंग-धडंग
हो जाते वे दरख्त
नागाबाबा साधू की मानिन्द
मानो, तप कर रहे हैं।
या
होलिका का ध्यान भंग
मैं बचपन से
सुनता आया हूं
पढता रहा हूं
कि होलिका शत्रु
प्रह्लाद की भक्ति और
जनता का अश्लील कटाक्ष रहे
शायद
इसी परम्परा को निभाते दरख्त
या
बाहें फैलाए रंग-उत्सव का
स्वागत करते

३.
रंग
तीनों गुणों से परे कितना
रंग
मन से मेल नहीं
चरित्र से मेल नहीं
तभी
निखरता है।

४.
भीगा रोम-रोम
बरसी कुछ
नयन बून्दों से

हुए नयन रक्तिम
मुख गुलाल वर्ण
श्याम नयन
जल में डूबे
ये भी कैसी होली है।
भीग रही
पिया याद में
उड-उड आती
अबीर-गुलाल
ज्यूं-ज्यूं मेरा
तन छुए
हंसी-ठिठोली
मसखरी बातें
त्यूं-त्यूं उनकी
याद दिलाए
नयन बांध
है लबालब

भीतर मन रहा सुलग
तन गीला बाहर
भीतर मन सूखा
मचा दुडदंग हर ओर
छैल-छबीला माहौल
गूँजे होली है, होली है
की आवाजें
पर डूबा तन-मन
श्याम वर्ण में
पडा फीका मुख का वर्ण
अधरों में दिखे
पडी बिवाईयाँ
सूखा मन
गीला हो के भी तन
ये भी कैसी होली है।
***
-सुनील गज्जाणी
प्रवेश सोनी की फागुनी उमंग

तुझ बिन केसी मेरी होली
केसे थामू आँचल
बैरी उड़ उड़ जावे
मादक पवन के मस्त झकोरे
नीले ,पीले रंग उडावे

उर उमंग फागुनी ,
मन बोराया ,तन शरमाया ..
यादों की मनुहारो ने ,
पल पल तुझे बुलाया ....

परदेशी तुझ बिन केसी मेरी होली
सतरंगी रंगों ने मेरा तन झुलसाया ...
लाल ,हरा ,न पीला ,जाफरानी
मोहे तेरी प्रीत का ही रंग भाया ....

मधुर –मधुर मधुप की गुंजन
सुन- सुन मन विषाद समाया ....
नंदन ,कानन ,उपवन –उपवन
टेसू चंपा से गरनाया...

मुझ बिरहन को भाये न कुछ
लागे ,सबने मोहे चिढाया ...

प्रीत –प्रीत में भीगे हमजोली ,
सखी लिपट कर करे ठिठोली
बेरन अंखियों ने सपनों का नीर बहाया ...

तुझ बिन साजन ना
मन कोई त्यौहार मनावे ,
तू संग हो तो
हर दिन मेरा होली हो जावे ....
***
- प्रवेश सोनी
भरत तिवाड़ी का रंगीन अल्हड़पन

अबकी होली में घर भी जाना है
जाना है उसको घर जो लाना है

गली के मोड़ पे ठहर ही जाऊँगा
रंग कैसे भी हो उसको लगाना है

उसकी आदत है छुपने की पुरानी
अबकी आदत को बदलने जाना है

उसके रंगों का चोर बन जाऊँगा
उसमें खुद को जो रंग जाना है

अबकी राधा खेलेंगी होली ‘भरत’
किशना को धरा पे ले के आना है
**
- भरत तिवारी

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5 Responses to होली की उमंग-आखर कलश के संग

  1. रंगपर्व पर केन्द्रित सभी रचनाएं एक से बढ़ कर एक हैं...
    बेहतरीन प्रस्तुति..के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    होली की हार्दिक शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  2. सभी की रचनाएँ बेमिसाल हैं..... होली की हार्दिक शुभकामनाएं ....

    ReplyDelete
  3. Holi ke avasar par aapne jo rachnaon ka rang-viranga guldasta banaya hai, bahut manbhavan hai.Sabhee Rachnakaron ko Badhaee. Apko bhee badhai. Aur aap sabhee ko Holi kee hardik shubhkamnayn.

    ReplyDelete
  4. sabhi sundar rachnayen.

    हफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
    मगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
    होली की हार्दिक शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  5. काफी कुछ बचा रहा इस तरह तुम्हारे -मेरे बीच
    एक बार फिर चाहूँ
    इस बचे को उलटो-पलटो तुम (अपर्णा मनोज)

    बिरज में चहुँ दिस उडत गुलाल है
    कोरी काहे रही बरसाने की छोरी (कविता किरण)

    इन्टरनेट पर कर दी रंगों की बौछार
    ई.मेल से भेज दिया पीला लाल गुलाल(संगीता सेठी)

    रंग
    तीनों गुणों से परे कितना
    रंग
    मन से मेल नहीं
    चरित्र से मेल नहीं
    तभी
    निखरता है। (सुनील गज्जानी)


    इस कदर डूबी क्यों बाहरी रंग में।
    रंग फागुन का गहरा पिया संग मे। (शायमल सुमन)

    तुझ बिन साजन ना
    मन कोई त्यौहार मनावे ,
    तू संग हो तो
    हर दिन मेरा होली हो जावे ....(प्रवेश सोनी)

    बहुत ही सुंदर और रंगपगी अभिव्यक्तियां है

    ReplyDelete

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