कार्यक्षेत्र:
* संपादक व प्रबंधक : रामकृष्ण प्रकाशन (1999-2004)
* वरिष्ठ उप संपादक : दैनिक भास्कर (2004-2005)
* प्रोड्यूसर : इंडिया टीवी (2005-2007)
* प्रोड्यूसर : न्यूज़ चैनल 'आजतक'(2007-अबतक)
रचना क्षेत्र:
लगभग दो दशक से ग़ज़लें, नज़्में, गीत, कहानियां और समीक्षाएं लिख रहे हैं जो समय-समय पर हंस, कथादेश, कथन, समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, अक्षर पर्व, साक्षात्कार, गगनांचल, नवनीत, समरलोक, पर्वत राग, आउटलुक, इंडिया टुडे, जनसत्ता, दैनिक भास्कर, आज, अमर उजाला, नई दुनिया, नव भारत और स्वतंत्र वार्ता जैसे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समवेत संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं.
पुरस्कार:
समग्र लेखन के लिए 'अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान (भोपाल) - 2002'
'आमीन' के लिए 'मप्र साहित्य अकादमी का दुष्यंत कुमार पुरस्कार - 2007'
'आमीन' के लिए रूस का 'अंतरराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान (मॉस्को) - 2008'
'आमीन' के लिए 'भगवशरण चतुर्वेदी सम्मान (जयपुर) - 2008'
'आमीन' के लिए 'हेमंत स्मृति कविता सम्मान (मुंबई) - 2009'
'आमीन' के लिए 'परंपरा ऋतुराज सम्मान (दिल्ली) - 2009'
साहित्यिक पत्रकारिता के लिए 'विनोबा भावे पत्रकारिता सम्मान (राजस्थान) - 2009'
समग्र लेखन के लिए 'वेद अग्रवाल स्मृति पुरस्कार (मेरठ) - 2010'
समग्र लेखन के लिए माइनॉरिटी फ़ॉरम, विदिशा द्वारा 'फ़क्र-ए-विदिशा अवॉर्ड - 2010'
समग्र लेखन के लिए 'लाला जगत ज्योति प्रसाद साहित्य सम्मान (बिहार) - 2010'
कृतियाँ:
'आमीन : ग़ज़ल संग्रह (2007) राजकमल प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली-2
सलाखें : कथा संग्रह (शीघ्र प्रकाश्य)
नई दुनिया को सलाम : अली सरदार जाफ़री (संपादन)
अफ़ेक्शन : डॉ. बशीर बद्र (संपादन)
हमक़दम : निदा फ़ाज़ली (संपादन)
लॉस्ट लगेज : डॉ. बशीर बद्र (संपादन)
ग़ज़ल (१) सखी पिया
ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है
सुलगती सांसे, तरसती आंखें, मचलती रूहें, धड़कती छतियां
उन्हीं की आंखें , उन्हीं का जादू, उन्हीं की हस्ती, उन्हीं की ख़ुशबू
किसी भी धुन में रमाऊं जियरा, किसी दरस में पिरोलूं अंखियां
मैं कैसे मानूं बरसते नैनो कि तुमने देखा है पी को आते
न काग बोले, न मोर नाचे, न कूकी कोयल, न चटखीं कलियां
***
(अमीर ख़ुसरो को ख़िराजे-अक़ीदत जिनके मिसरे पर ये ग़ज़ल हुई)
ग़ज़ल (२) हमन है इश्क़ मस्ताना
हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या,
गुज़ारी होशियारी से, जवानी फिर गुज़ारी क्या.
धुएं की उम्र कितनी है, घुमड़ना और खो जाना,
यही सच्चाई है प्यारे, हमारी क्या, तुम्हारी क्या.
उतर जाए है छाती में जिगरवा काट डाले है,
मुई महंगाई ऐसी है, छुरी, बरछी कटारी क्या.
तुम्हारे अज़्म की ख़ुशबू लहू के साथ बहती है,
अना ये ख़ानदानी है, उतर जाए ख़ुमारी क्या.
हमन कबिरा की जूती हैं, उन्हीं का क़र्ज़ भारी है,
चुकाए से जो चुक जाए, वो क़र्ज़ा क्या उधारी क्या.
***
(कबीर को ख़िराजे-अक़ीदत जिनके मिसरे पर ये ग़ज़ल हुई)
धुएं की उम्र कितनी है, घुमड़ना और खो जाना,
ReplyDeleteयही सच्चाई है प्यारे, हमारी क्या, तुम्हारी क्या.
sachhai ko vayan karta hua khubsurat sher mubarak ho .....
बाबूजी गुज़रे, आपस में सब चीज़ें तक्सीम हुई तब
ReplyDeleteमैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई अम्मा
Alok ji ke ye amar sher Amma Babi ke naam inQlaab le aye hain. Purani tahzeeb dohrane wale is shayar ko meri shubhkamnayein.
Devi nangrani
dnangrani@gmail.com
आलोक श्रीवास्तव सधी हुई ग़ज़ल कहते हैं .तरह तरह के प्रयोग निरंतर नयी ज़मीन तैयार करते हैं .ताज़ा संवेदनाओं की इन ग़ज़लों के लिए हार्दिक बधाई .
ReplyDeleteआनन्द आ गया.
ReplyDeleteवैसे तो अलोक श्रीवास्तव जी किसी परिचय के मोहताज नहीं ...आपने विस्तृत परिचय देते हुए उनकी दो अर्थपूर्ण गजलें पेश की हैं ...आपका प्रयास प्रशंसनीय है ...आपका आभार
ReplyDelete"हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या, / गुज़ारी होशियारी से, जवानी फिर गुज़ारी क्या. " बहुत खूब अंदाज- ए-बयाँ. मेरी बधाई स्वीकारें.
ReplyDeletebhai aalokji aur bhai narendra vyasji aap donon ko bahut bahut badhai
ReplyDeleteआलोक जी का ग़ज़ल कहने का अपना अंदाज़ है
ReplyDelete,......वो सुनना चाहें जुबा से से सब कुछ ,मैं करना चुन नज़र से बतिया
....... गुजारी होशयारी से जवानी फिर गुजारी क्या
क्या बात है ,बहुत खूब ,शुक्रिया
आलोक जी, खूब बहुत खूब। आपको पहली बार पढ़ा, आनंद आ गया।
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