आलोक श्रीवास्तव की दो ग़ज़लें

जीवन परिचय:
30 दिसंबर 1971 शाजापुर (म.प्र) में जन्मे आलोक सुपरिचित ग़ज़लकार, कथा-लेखक, समीक्षक और टीवी पत्रकार हैं. आलोक के जीवन का बड़ा हिस्सा मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक नगर विदिशा में गुज़रा है और वहीं से उन्होंने हिंदी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा ग्रहण की है. 'रिश्तों का कवि' कहे जाने वाले आलोक की रचनाएं लगभग दो दशक से देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं. वर्ष 2007 में 'राजकमल प्रकाशन दिल्ली' से प्रकाशित आलोक का पहला ग़ज़ल-संग्रह आमीन सर्वाधिक चर्चित पुस्तकों में रहा और कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया और अब उनकी ग़ज़लों का रूसी के अलावा पंजाबी, गुजराती व अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो रहा है. आलोक ने उर्दू के प्रतिष्ठित शायरों की काव्य-पुस्तकों का हिंदी में महत्वपूर्ण संपादन-कार्य किया है साथ ही वे अक्षर पर्व मासिक की साहित्य वार्षिकी (2000 और 2002) का अतिथि संपादक भी रहे हैं.
कार्यक्षेत्र:
* संपादक व प्रबंधक : रामकृष्ण प्रकाशन (1999-2004)
* वरिष्ठ उप संपादक : दैनिक भास्कर (2004-2005)
* प्रोड्यूसर : इंडिया टीवी (2005-2007)
* प्रोड्यूसर : न्यूज़ चैनल 'आजतक'(2007-अबतक)
रचना क्षेत्र:
लगभग दो दशक से ग़ज़लें, नज़्में, गीत, कहानियां और समीक्षाएं लिख रहे हैं जो समय-समय पर हंस, कथादेश, कथन, समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, अक्षर पर्व, साक्षात्कार, गगनांचल, नवनीत, समरलोक, पर्वत राग, आउटलुक, इंडिया टुडे, जनसत्ता, दैनिक भास्कर, आज, अमर उजाला, नई दुनिया, नव भारत और स्वतंत्र वार्ता जैसे प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समवेत संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं.
पुरस्कार:
समग्र लेखन के लिए 'अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान (भोपाल) - 2002'
'आमीन' के लिए 'मप्र साहित्य अकादमी का दुष्यंत कुमार पुरस्कार - 2007'
'आमीन' के लिए रूस का 'अंतरराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान (मॉस्को) - 2008'
'आमीन' के लिए 'भगवशरण चतुर्वेदी सम्मान (जयपुर) - 2008'
'आमीन' के लिए 'हेमंत स्मृति कविता सम्मान (मुंबई) - 2009'
'आमीन' के लिए 'परंपरा ऋतुराज सम्मान (दिल्ली) - 2009'
साहित्यिक पत्रकारिता के लिए 'विनोबा भावे पत्रकारिता सम्मान (राजस्थान) - 2009'
समग्र लेखन के लिए 'वेद अग्रवाल स्मृति पुरस्कार (मेरठ) - 2010'
समग्र लेखन के लिए माइनॉरिटी फ़ॉरम, विदिशा द्वारा 'फ़क्र-ए-विदिशा अवॉर्ड - 2010'
समग्र लेखन के लिए 'लाला जगत ज्योति प्रसाद साहित्य सम्मान (बिहार) - 2010'
कृतियाँ:
'आमीन : ग़ज़ल संग्रह (2007) राजकमल प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली-2
सलाखें : कथा संग्रह (शीघ्र प्रकाश्य)
नई दुनिया को सलाम : अली सरदार जाफ़री (संपादन)
अफ़ेक्शन : डॉ. बशीर बद्र (संपादन)
हमक़दम : निदा फ़ाज़ली (संपादन)
लॉस्ट लगेज : डॉ. बशीर बद्र (संपादन)
आलोक श्रीवास्तव को हाल ही में रूस के प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय 'पुश्किन सम्मान' से पुरस्कृत किए जाने की घोषणा हुई है.


ग़ज़ल (१) सखी पिया

सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां
कि जिनमें उनकी ही रोशनी हो, कहीं से ला दो मुझे वो अंखियां

दिलों की बातें दिलों के अंदर, ज़रा-सी ज़िद से दबी हुई हैं
वो सुनना चाहें ज़ुबां से सब कुछ, मैं करना चाहूं नज़र से बतियां

ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है
सुलगती सांसे, तरसती आंखें, मचलती रूहें, धड़कती छतियां

उन्हीं की आंखें , उन्हीं का जादू, उन्हीं की हस्ती, उन्हीं की ख़ुशबू
किसी भी धुन में रमाऊं जियरा, किसी दरस में पिरोलूं अंखियां

मैं कैसे मानूं बरसते नैनो कि तुमने देखा है पी को आते
न काग बोले, न मोर नाचे, न कूकी कोयल, न चटखीं कलियां
***

(अमीर ख़ुसरो को ख़िराजे-अक़ीदत जिनके मिसरे पर ये ग़ज़ल हुई)


ग़ज़ल (२) हमन है इश्क़ मस्ताना

हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या,
गुज़ारी होशियारी से, जवानी फिर गुज़ारी क्या.

धुएं की उम्र कितनी है, घुमड़ना और खो जाना,
यही सच्चाई है प्यारे, हमारी क्या, तुम्हारी क्या.

उतर जाए है छाती में जिगरवा काट डाले है,
मुई महंगाई ऐसी है, छुरी, बरछी कटारी क्या.

तुम्हारे अज़्म की ख़ुशबू लहू के साथ बहती है,
अना ये ख़ानदानी है, उतर जाए ख़ुमारी क्या.

हमन कबिरा की जूती हैं, उन्हीं का क़र्ज़ भारी है,
चुकाए से जो चुक जाए, वो क़र्ज़ा क्या उधारी क्या.
***

(कबीर को ख़िराजे-अक़ीदत जिनके मिसरे पर ये ग़ज़ल हुई)

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9 Responses to आलोक श्रीवास्तव की दो ग़ज़लें

  1. धुएं की उम्र कितनी है, घुमड़ना और खो जाना,
    यही सच्चाई है प्यारे, हमारी क्या, तुम्हारी क्या.
    sachhai ko vayan karta hua khubsurat sher mubarak ho .....

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  2. बाबूजी गुज़रे, आपस में सब चीज़ें तक्सीम हुई तब
    मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई अम्मा
    Alok ji ke ye amar sher Amma Babi ke naam inQlaab le aye hain. Purani tahzeeb dohrane wale is shayar ko meri shubhkamnayein.
    Devi nangrani
    dnangrani@gmail.com

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  3. आलोक श्रीवास्तव सधी हुई ग़ज़ल कहते हैं .तरह तरह के प्रयोग निरंतर नयी ज़मीन तैयार करते हैं .ताज़ा संवेदनाओं की इन ग़ज़लों के लिए हार्दिक बधाई .

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  4. वैसे तो अलोक श्रीवास्तव जी किसी परिचय के मोहताज नहीं ...आपने विस्तृत परिचय देते हुए उनकी दो अर्थपूर्ण गजलें पेश की हैं ...आपका प्रयास प्रशंसनीय है ...आपका आभार

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  5. "हमन है इश्क़ मस्ताना, हमन को होशियारी क्या, / गुज़ारी होशियारी से, जवानी फिर गुज़ारी क्या. " बहुत खूब अंदाज- ए-बयाँ. मेरी बधाई स्वीकारें.

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  6. bhai aalokji aur bhai narendra vyasji aap donon ko bahut bahut badhai

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  7. आलोक जी का ग़ज़ल कहने का अपना अंदाज़ है
    ,......वो सुनना चाहें जुबा से से सब कुछ ,मैं करना चुन नज़र से बतिया
    ....... गुजारी होशयारी से जवानी फिर गुजारी क्या
    क्या बात है ,बहुत खूब ,शुक्रिया

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  8. आलोक जी, खूब बहुत खूब। आपको पहली बार पढ़ा, आनंद आ गया।

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