अश्विनी रॉय 'प्रखर' की पाँच क्षणिकाएँ

संक्षिप्त परिचय

अश्विनी रॉय का जन्म 28 फरवरी 1960 को करनाल (हरियाणा) मे हुआ. आपने पशु शरीर क्रिया विज्ञान के विषय में परास्नातक तथा डेयरी एवं पशु विज्ञान में पी० एच० डी० की उपाधि प्राप्त की है. आजकल आपका निवास बीकानेर (राजस्थान) में है। मैं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अंतर्गत जनवरी 1985 से वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत हूँ. अश्विनी रॉय अपने बारे में कहते हैं- यद्यपि मुझे हिन्दी का कोई विशेष उच्चस्तरीय ज्ञान नहीं है फिर भी मैं अपने विचारों की अभिव्यक्ति यदा-कदा लेखों तथा कविताओं के माध्यम से करता ही रहता हूँ. मैंने अंतर्जाल पर अंग्रेजी तथा हिन्दी में समकालीन विषयों पर अपनी कुछ कविताएँ एवं विविध लेख प्रकाशित किये हैं. आजकल www.royashwani.blogspot.com के नाम से मैं अंतर्जाल पर एक ब्लॉगर के रूप में भी लेखन कर रहा हूँ. मेरी रचनाएँ नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की वार्षिक पत्रिका “संवाद” तथा राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र द्वारा प्रकाशित “करभ” पत्रिका तथा स्थानीय समाचार-पत्रों में भी छपती रहती हैं. मैं अपने केंद्र में राजभाषा अधिकारी के रूप में कार्य करते हुए यहाँ से प्रकाशित होने वाली सभी पत्रिकाओं एवं पुस्तकों के संपादन से भी जुड़ा हूँ. इसके अतिरिक्त मैंने कुछ अंग्रेजी तथा हिन्दी की उष्ट्र विषयक लघु पुस्तिकाएँ भी लिखी हैं। इसी वर्ष हमारी वार्षिक पत्रिका “करभ” को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली द्वारा “श्री गणेश शंकर विद्यार्थी सर्वोत्तम कृषि पत्रिका” के सम्मान से नवाज़ा गया है.

सम्पर्क: मोबाइल - 9414967834. वरिष्ठ वैज्ञानिक (शरीर क्रिया विज्ञान) राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र, पोस्ट ऑफिस बॉक्स नंबर-07. जोड़बीड़, बीकानेर-334 001 (राजस्थान).




१.
बरसें बादल
तो
दल-दल
अन्यथा
हर कोई रहे
निर्जल.
**

२.
सोना हो
तो
कैसा सोना
सोना नहीं
तो
खूब सोना !
**

३.
महँगाई के
इस दौर में
उसका जीना
तब दूभर हुआ
जब पाँच
लड़कियों के बाद
एक लड़का
पैदा हुआ !
**

४.
जिसे रोज़ी मिले
वह रोटी खाए
नहीं तो
भाग्य में
ज़ीरो (रोज़ी का उलट) ही आए.
**

५.
पेड़ लगाएँ
तो
वन महोत्सव
पेड़ कटें
तो
नव-निर्माण
उत्सव !
**

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3 Responses to अश्विनी रॉय 'प्रखर' की पाँच क्षणिकाएँ

  1. सभी रचनाएं अच्छी हैं...लेखक को बधाई.

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  2. खूबसूरत क्षणिकायें। अब, जब, लंबी कविातायें पढ़ने की चाह और क्षमता कम लोगों में बची है, इसी तरह बात कह कर चल देने वाली क्षणिकायें ठहर जाती हैं।

    ReplyDelete

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