कहाँ बनना, संवरना चाहती हूँ
मैं ख़ुशबू हूँ, बिखरना चाहती हूँ
अब उसके क़ातिलाना ग़म से कह दो
मैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ
हर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
किसी के नाम करना चाहती हूँ
गुहर मिल जाए शायद, सोच कर, फिर
समुन्दर में उतरना चाहती हूँ
ज़माना चाहता है और ही कुछ
मैं अपने दिल की करना चाहती हूँ
है आवारा ख़यालों के परिंदे
मैं इनके पर कतरना चाहती हूँ
कोई बतलाए क्या है मेरी मंज़िल
थकी हूँ, अब ठहरना चाहती हूँ
2.
शीशे के बदन को मिली पत्थर की निशानी
टूटे हुए दिल की है बस इतनी-सी कहानी
फिर कोई कबीले से कहीं दूर चला है
बग़िया में किसी फूल पे आई है जवानी
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी
औरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
आँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
तालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस
हमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी
छप्पर हो, महल हो, लगे इक जैसे ही दोनों
घर के जो समझ आ गए ‘श्रद्धा’ को मआनी
3.
हश्र औरों का समझ कर जो संभल जाते हैं
वो ही तूफ़ानों से बचते हैं, निकल जाते हैं
मैं जो हँसती हूँ तो ये सोचने लगते हैं सभी
ख़्वाब किस-किस के हक़ीक़त में बदल जाते हैं
ज़िंदगी, मौत, जुदाई और मिलन एक जगह
एक ही रात में कितने दिए जल जाते हैं
आदत अब हो गई तन्हाई में जीने की मुझे
उनके आने की ख़बर से भी दहल जाते हैं
हमको ज़ख़्मों की नुमाइश का कोई शौक नहीं
कैसे ग़ज़लों में मगर आप ही ढल जाते हैं
**
भाई ये ग़ज़ल के उपर क्या विज्ञापन चढ़े हुए हैं। webweaver.nu ग़ज़ल पर छाया हुआ है।
ReplyDeleteऔरत के इसी रूप से डर जाते हैं अब लोग
ReplyDeleteआँचल भी नहीं सर पे नहीं आँख में पानी
दुआ कीजिये कि इससे भयावह तस्वीर नहीं हो
बहुत अच्छी ग़ज़लें. बधाई..
यूँ तो मुकम्मल शायरी लाजवाब है मगर आपकी तीसरी ग़ज़ल मुझे कुछ ज्यादा ही नायाब लगी. इस पेशकश के लिए आखर कलश को बहुत बहुत मुबारकबाद.
ReplyDeleteshraddha ji , saari gazale padh li hai ... ab ye soch raha hoon ki kis ki taareef jyaada ki jaaye aur kis ki kam ... mujhe to saari hi gazale pasand aayi...
ReplyDeleteहर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
किसी के नाम करना चाहती हूँ
कुछ आँखें किसी दूर के मंज़र पर टिकी हैं
कुछ आँखों से हटती नहीं तस्वीर पुरानी
ज़िंदगी, मौत, जुदाई और मिलन एक जगह
एक ही रात में कितने दिए जल जाते हैं
आदत अब हो गई तन्हाई में जीने की मुझे
उनके आने की ख़बर से भी दहल जाते हैं
ye saare sher , bahut bahut bahut laazawaab hai ...
badhayi kabool kare..
vijay
तेरे आश'आर में देखा है 'श्रद्धा'
ReplyDeleteतू रूठे को मनाना चाहती है।
तीनों ग़ज़लें अच्छी हैं।
श्रद्धा जी का कलाम बहुत उम्दा होता है...
ReplyDeleteयहां पेश की गई तीनों ही ग़ज़लें दिल को छूने वाली हैं.
teeno ki teeno rachnaaye bahut bahut khoobsurat hain. aabhaar.
ReplyDeleteअब उसके क़ातिलाना ग़म से कह दो
ReplyDeleteमैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ
kyaa baat hai?
नरेंद्र व्यास, आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं.
ReplyDeleteश्रद्धा, ब्लॉग जगत की एक स्थापित-प्रतिष्ठित गजलकार हैं. उनकी गजलों पर कुछ कहना, सूरज को चराग दिखाना होगा.
अलग से किसी शेर को रेखांकित करना बहुत कठिन है.
नरेंद्र जी, आपके चयन की दाद देता हूँ.नरेंद्र व्यास, आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं.
श्रद्धा, ब्लॉग जगत की एक स्थापित-प्रतिष्ठित गजलकार हैं. उनकी गजलों पर कुछ कहना, सूरज को चराग दिखाना होगा.
अलग से किसी शेर को रेखांकित करना बहुत कठिन है.
नरेंद्र जी, आपके चयन की दाद देता हूँ.नरेंद्र व्यास, आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं.
श्रद्धा, ब्लॉग जगत की एक स्थापित-प्रतिष्ठित गजलकार हैं. उनकी गजलों पर कुछ कहना, सूरज को चराग दिखाना होगा.
अलग से किसी शेर को रेखांकित करना बहुत कठिन है.
नरेंद्र जी, आपके चयन की दाद देता हूँ.नरेंद्र व्यास, आप बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, मेरे पास प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं.
श्रद्धा, ब्लॉग जगत की एक स्थापित-प्रतिष्ठित गजलकार हैं. उनकी गजलों पर कुछ कहना, सूरज को चराग दिखाना होगा.
अलग से किसी शेर को रेखांकित करना बहुत कठिन है.
नरेंद्र जी, आपके चयन की दाद देता हूँ.
खूबसूरत ग़ज़लें... वाह वाह बहुत खूब !
ReplyDeleteमैं जो हँसती हूँ तो ये सोचने लगते हैं सभी
ReplyDeleteख़्वाब किस-किस के हक़ीक़त में बदल जाते हैं
*
श्रद्धा जी ग़ज़लों का हर शेर एक नायाब मोती है। पर इस शेर में सारी कायनात का दर्शन समा गया है।
बहुत ही बेहतरीन गजले हैं... तीनो ही गजलों के (खासतौर पर पहली और तीसरी ग़ज़ल) के हर इक शेअर में जान है... बहुत खूब!
ReplyDeleteShraddha Ji,
ReplyDeleteBahut Hi behtareen Ghazalen hai...waah maza aa gaya....
कहाँ बनना, संवरना चाहती हूँ
मैं ख़ुशबू हूँ, बिखरना चाहती हूँ
अब उसके क़ातिलाना ग़म से कह दो
मैं अपनी मौत मरना चाहती हूँ
हर इक ख्वाहिश, ख़ुशी और मुस्कराहट
किसी के नाम करना चाहती हूँ
ज़माना चाहता है और ही कुछ
मैं अपने दिल की करना चाहती हूँ
Badhaai
Surinder Ratti
Mumbai
बेहतरीन ग़ज़लें। बधाई।
ReplyDeleteतालाब है, नदियाँ हैं, समुन्दर है पर अफ़सोस
ReplyDeleteहमको तो मयस्सर नहीं इक बूंद भी पानी
बहुत सुन्दर मनभावन गजल हैं .... आभार श्रद्धा जी ...
श्रद्धा जी की नायाब गज़लें पढवाने के लिए आखर कलश का आभार
ReplyDeleteगुहर मिल जाए शायद, सोच कर, फिर
ReplyDeleteसमुन्दर में उतरना चाहती हूँ
छप्पर हो, महल हो, लगे इक जैसे ही दोनों
घर के जो समझ आ गए ‘श्रद्धा’ को मआनी
हश्र औरों का समझ कर जो संभल जाते है
वो ही तूफ़ानों से बचते हैं, निकल जाते हैं
बहुत ख़ूब!
ख़ूबसूरत ग़ज़ल !
श्रद्धा जी को ब्लॉग जगत में कौन नहीं जानता...सीधे सरल लफ़्ज़ों में वो ढेर सी बातें अपनी गज़लों में कह जाती हैं, उनके अशआरों को दिल में उतरने का सीधा रास्ता मालूम है वो बिना इधर उधर भटके सीधे अपनी मंजिल पर पहुँचते हैं...इसीलिए उन्हें पढ़ना एक सुखद अनुभव होता है...
ReplyDeleteउनकी गज़लों का चयन बेहतरीन किया है आपने नरेन्द्र जी आपके इस नेक काम की जितनी तारीफ़ की जाय कम है.
नीरज
बहुत खूब !!! उम्दा ||
ReplyDeleteतीनो गज़ल , एक से बढकर एक.....नायाब हैं ||
तारीफ़ जो भी की जाये , कम हैं ||
सबसे पहले तो मैं नरेन्द्र जी और आखर कलश की संपादक टीम की आभारी हूँ जिन्होंने मुझे यहाँ स्थान दिया ..
ReplyDeleteविजय वर्मा जी हालात तो बदतर हो हीरहे हैं लेकिन दुआ तो की ही जा सकती है .. आपने पढ़ा पसंद किया आभारी हूँ
अश्विनी राय जी आपने ग़ज़ल पढ़ी और सराहना की .. तीसरी ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया
विजय जी आपने ग़ज़ल के कुछ शेर खास पसंद किये शुक्रिया..
तिलक राज जी शुक्रिया आपका शेर भी खूब रहा :-)
शाहिद साहब हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
अनामिका जी .. ग़ज़ल पढने और सराहने के लिए आभार
प्रदीप कान्त जी शुक्रिया शेर पसंद करने के लिए
ReplyDeleteसर्वत जी ये आपका बड़प्पन है जो आप हम जैसे नए लिखने वालों को हौसला देते हैं शुक्रिया
पद्म जी शुक्रिया
राजेश जी शेर की रूह तक जाकर उसे सराहने के लिए शुक्रिया
शाह नवाज़ जी शुक्रिया आपने गज़लें पढ़ी और पसंद की तो बहुत अच्छा लगा ..
सुरिंदर जी अपनी उपस्थिति से हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद
शरद जी शुक्रिया
महेंद्र भैया आपको बहुत दिन के बाद अपनी ग़ज़ल पर देख कर बहुत ख़ुशी हुई .. शुक्रिया
राकेश जी बहुत बहुत धन्यवाद
इस्मत जी ग़ज़लों को स्नेह देने के लिए शुक्रिया
नीरज जी ग़ज़ल पर आपकी दस्तक की आदत हो गयी है बिना आपके कमी सी लगती है ..इसी तरह अपना स्नेह बनाये रखे
अशोक समय निकल कर पढने और पसंद करने के लिए आभार
bahut hi khoobsurat gazlen...jinhe bar bar padhne ko jee chahe..badhai shradhha ji...
ReplyDeleteshrdda ji aap ki gazalon ko mai bahut pada hai kavita kosh per .aap gazal bahut lajabab likhati hai.aap ke mail per bahu bar comment e-email kiya lakin mail nahi gayaaap ka email shrddha8@gmail.com hi to hai.aap ki gazalon ko pada kar Galib ka ek sher yad yata hai ---aaina kyon na doon ki tamasa kahen use ,aisa kahan se layun ki tujhsa kahen jise.mera email-drdigvijaisingh@gmail.com. hai aap isper mail jaroor kijiyega.cell no.91-9415369918 hai
ReplyDeleteaap bemisaal likhati hain..
ReplyDelete