डॉ. वेद व्यथित की गीतिकाएं

रचनाकार परिचय

नाम: डॉ. वेद व्यथित
मूल नाम- वेद प्रकाश शर्मा
जन्म – 9 अप्रैल, 1956 ।
शिक्षा- एम. ए. (हिंदी), पी० एचडी. (नागार्जुन के साहित्य में राजनीतिक चेतना) ।
प्रकाशन- कविता कहानी उपन्यास व आलोचना पर निरंतर लेखन ।
कृतियाँ- मधुरिमा (काव्य नाटक), आख़िर वह क्या करे (उपन्यास), बीत गये वे पल, (संस्मरण), आधुनिक हिंदी साहित्य में नागार्जुन (आलोचना), भारत में जातीय साम्प्रदायिकता (उपन्यास),
अनुवाद- जापानी तथा पंजाबी भाषाओँ में रचनाओं का अनुवाद ।
सहभागिता- हिंदी जापानी कवि सम्मेलनो में ।
संबंद्धता- अध्यक्ष - भारतीय साहित्यकार संघ
संयोजक - सामाजिक न्याय मंच
शोध सहायक - अंतरराष्ट्रीय पुनर्जन्म एवं मृत्यु उपरांत जीवन शोध संस्थान भारत
सम्पादकीय सलाहकार - लोक पुकार साप्ताहिक पत्र
परामर्शदाता - समवेत सुमन ग्रन्थ माला
सलाहकार - हिमालय और हिंदुस्तान
सदस्य - सलाहकार समिति नेहरु युवा केंद्र, फरीदाबाद, हरयाणा
विशेष प्रतिनिधि - कल्पान्त मासिक पत्रिका
उपाध्यक्ष - हम कलम साहित्यिक संस्था
पूर्व प्रांतीय संगठन मंत्री -अखिल भारतीय साहित्य परिषद हरियाणा

नवगीतिका के बारे में वे कहते हैं कि ये रचनाएँ गजल नही हैं क्योंकि गजल का एक निश्चित व्याकरण है उस के बिना गजल नही हो सकती है जैसे दोहा का निश्चित व्याकरण है बल्कि भारतीय परम्परा का शाश्वत काव्य प्रवाह है नवगीतिका. इसी शाश्वत काव्य प्रवाह के क्रम में उनकी दो गीतिकाएं प्रस्तुत है...
१.

झूठ के आवरण सब बिखरते रहे
साँच की आंच से वे पिघलते रहे
खूब ऊँचे बनाये थे चाहे महल
नींव के बिन महल वे बिखरे रहे
हाथ आता कहाँ चाँद उन को यहाँ
मन ही मन में वे चाहे मचलते रहे
ओस की बूँद ज्यों २ गिरी फूल पर
फूल खिलते रहे व महकते रहे
जैसे २ बढ़ी खुद से खुद दूरियां
नैन और नक्श उन के निखरते रहे
देख लीं खूब दुनिया की रंगीनियाँ
रात ढलती रही दीप बुझते रहे
हम जहाँ से चले लौट आये वहीं
जिन्दगी भर मगर खूब चलते रहे


२. 

जहाँ में ऐसी सूरत है,जिन्हें देखा, नशा टूटा
खीज खुद पर हुई ,मुझ से मुकद्दर इस तरह रूठा
मेरा बस एक सपना था मुझे जो खुद से प्यारा था
नजर ऐसी लगी उस को आईने की तरह टूटा
अकेला एक दिल था जिन्दगी की वही दौलत था
उन्होंने चुप रह रह कर उसे पूरी तरह लूटा
कहाँ जाता सफर को छोड़ मंजिल दूर थी मेरी
रुका थोडा सुकूँ पाया मगर मद की तरह झूठा
रहा है उन का मेरा साथ वर्षों दूध शक्कर सा
शिकायत दिल में क्यों आई सब्र क्यों इस तरह टूटा

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8 Responses to डॉ. वेद व्यथित की गीतिकाएं

  1. कुछ टंकण त्रुटियॉं रह गयी हैं पहले नवगीत में जो 212, 212, 212, 212 की बह्र पर ग़़ज़ल के बहुत करीब है और थोड़ा और प्रयास कर ग़़ज़ल हो सकता था लेकिन ऐसा सोचना ठीक न होगा। नवगीत का अपना ही आनन्‍द ओर अस्तित्‍‍व है, जरूरी नहीं कि हर रचना ग़़ज़ल ही हो।

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  2. डॉ. वेद व्यथित जी के साथ अनगिन पत्रिकाओं में छपा हूँ। स्वाभाविक है मैंने उन्हें पढ़ा भी ख़ूब है।

    हम जहाँ चले लौट आये वहीं
    जिन्दगी भर मगर खूब चलते रहे

    यहाँ प्रथम पंक्ति में किसी अनवधानतावश ‘जहाँ’ शब्द के ठीक बाद ‘से’ शब्द छूट गया है...देख लीजिएगा!

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  3. ०विज्ञप्ति०
    ‘मुक्तक विशेषांक’ हेतु रचनाएँ आमंत्रित -
    देश की चर्चित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ का आगामी एक अंक ‘मुक्‍तक विशेषांक’ होगा जिसके अतिथि संपादक होंगे सुपरिचित कवि जितेन्द्र ‘जौहर’। उक्‍त विशेषांक हेतु आपके विविधवर्णी (सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, शैक्षिक, देशभक्ति, पर्व-त्योहार, पर्यावरण, श्रृंगार, हास्य-व्यंग्य, आदि अन्यानेक विषयों/ भावों) पर केन्द्रित मुक्‍तक/रुबाई/कत्अ एवं तद्‌विषयक सारगर्भित एवं तथ्यपूर्ण आलेख सादर आमंत्रित हैं।

    इस संग्रह का हिस्सा बनने के लिए न्यूनतम 10-12 और अधिकतम 20-22 मुक्‍तक भेजे जा सकते हैं।

    लेखकों-कवियों के साथ ही, सुधी-शोधी पाठकगण भी ज्ञात / अज्ञात / सुज्ञात लेखकों के चर्चित अथवा भूले-बिसरे मुक्‍तक/रुबाइयात/कत्‌आत भेजकर ‘सरस्वती सुमन’ के इस दस्तावेजी ‘विशेषांक’ में सहभागी बन सकते हैं। प्रेषक का नाम ‘प्रस्तोता’ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। प्रेषक अपना पूरा नाम व पता (फोन नं. सहित) अवश्य लिखें।

    इस विशेषांक में एक विशेष स्तम्भ ‘अनिवासी भारतीयों के मुक्तक’ (यदि उसके लिए स्तरीय सामग्री यथासमय मिल सकी) भी प्रकाशित करने की योजना है।

    प्रेषित सामग्री के साथ फोटो एवं परिचय भी संलग्न करें। समस्त सामग्री केवल डाक या कुरियर द्वारा (ई-मेल से नहीं) निम्न पते पर अति शीघ्र भेजें-

    जितेन्द्र ‘जौहर’
    (अतिथि संपादक ‘सरस्वती सुमन’)
    IR-13/6, रेणुसागर,
    सोनभद्र (उ.प्र.) 231218.
    मोबा. # : +91 9450320472
    ईमेल का पता : jjauharpoet@gmail.com
    यहाँ भी मौजूद : jitendrajauhar.blogspot.com

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  4. mere priy bndhu jauhr ji ne bdi kripa kee hai vastv me yh pta nhi kaise bhool vsh chhot gya hai kripya ise isi roop me len
    bhai jauhr ji bahut 2 hardik aabhar

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  5. वेद जी को पहले भी पढने का सौभाग्य मिलता रहा है. यहाँ प्रकाशित गजलों से मैं बहुत उत्साहित नहीं हूँ. रचनाओं के चयन में शायद चूक हुई है है. कुछ टंकण की त्रुटियाँ हैं तो कुछ बहर की. भर्ती के शब्द भी प्रवाह में बाधा बनते दिखते हैं. फिर भी, गजल तो ग़ज़ल ही होती है-वो भी वेद जी की.

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  6. बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

    http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

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  7. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete

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