अंधेरों से कब तक नहाते रहेंगे।
हमें ख्वाब कब तक ये आते रहेंगे।
हमें पूछना सिर्फ इतना है कब तक,
वो सहरा में दरिया बहाते रहेंगे।
खुदा न करे गिर पडे कोई कब तक,
वे गढ्ढों पे चादर बिछाते रहेंगे।
बहुत सब्र हममें अभी भी है बाकी,
हमें आप क्या आजमाते रहेंगे।
कहा पेड ने आशियानों से कब तक,
ये तूफान हमको मिटाते रहेंगे।
***
इक रोज गुलिस्तां से मिलने को हवा आईं।
इक हाथ में खंजर था इक हाथ में शहनाई।
सोचा था कि मिलने पर, दिल खोल मिलेंगे हम,
.कमबख्त जुबां उनसे कुछ भी तो न कह पाई।
कुछ सोच समझ कर यूं मजमून लिखा उसने,
लफ्जों से तो मिलना था, मानी में थी तन्हाई।
इक .कत्ल हुआ .कातिल लगता था किसी के कुछ,
मुल्जिम ने अदालत से कुछ भी न सजा पाई।
रहते थे यहाँ पर जो वे लोग फरिश्ता थे,
इस वक्त यहाँ रहने, जाने क्यों .कजा आई।
***
रुख हवाओं का समझना चाहिए।
बादलों को फिर बरसना चाहिए।
आँख ही यदि रास्ता देखे नहीं,
पाँव को खुद ही संभलना चाहिए।
क्या असर होगा फ.कत यह सोचकर,
लफ्ज को मुँह से निकलना चाहिए।
कौन कहता है नहीं रखती असर,
आह को दिल से निकलना चाहिए।
बात जीने की या मरने की नहीं,
वक्त पर कुछ कर गुजरना चाहिए।
देख कर आंसू किसी की आँख में,
दिल अगर है तो पिघलना चाहिए।
है कहाँ महफूज राहें अब ‘अरुण’,
सोचकर घर से निकलना चाहिए।
***
जिन्हें अपना नहीं पर दूसरों के दर्द का गम है।
जमाने में अभी भी लोग ऐसे हैं मगर कम है।
बहुत हमराह बनकर लूटते हैं राह में अक्सर,
जो मंजिल तक निभाते साथ ऐसे हमसफर कम हैं।
बदलती जा रही है वक्त की फितरत दिनो दिन पर,
अभी रिश्तों की धडकन में बचा दम है, मगर कम है।
मुहब्बत लफ्ज का मतलब समझ लें तो जरा सा है,
हमारे दिल में वो हो और उस दिल में अगर हम हैं।
लकीरें भाग्य की जो शख्स चाहे गर बदलना तो,
बहुत मुश्किल नहीं जिसके इरादों में अगर दम है।
जुदा होते नहीं वो एक पल भर भी कभी हमसे,
समन्दर के उधर वो और साहिल पे इधर हम हैं।
***
हम समन्दर के तले हैं, दोस्तों पोखर नहीं।
हाँ नदी होकर बहे हैं, नालियां होकर नहीं।
जिन्दगी हमने सवांरी मौत को रख सामने,
आदमी होकर जिए हैं, जानवर होकर नहीं।
मानते हैं हम उसूलों को इबादत की तरह,
फर्ज से अपने रहे हम, बेखबर होकर नहीं।
हर बसर के वास्ते दिल से दुआ करते हैं हम,
दोस्त बनकर खुश हुए हैं, दोस्ती खोकर नहीं।
रास्ते हमने बुहारे आज तक सबके लिए,
प्यार बोकर खुश हुए हैं, झाडियाँ बोकर नहीं।
दायरे अपने सभी के हैं अलग तो क्या हुआ,
हमवतन होकर रहे हैं, हम अलग होकर नहीं।
***
और दिन आए न आए, एक दिन वो आएगा।
जब परिन्दा आशियाना छोडकर उड जाएगा।
मान लेगी मौत अपनी हार उसके सामने,
वक्त के माथे पे अपना नाम जो लिख जाएगा।
जख्म अपने जिस्म के ढक कर खडे हैं आप क्यों,
रहम दिल कोई तो होगा ढूंढिए मिल जाएगा।
.कत्लोगारद कर बहाया खून, उसको क्या मिला,
काश इतना सोचता वो साथ क्या ले जाएगा।
पुर सुकूं थी जिंदगी, इन्सानियत थी, प्यार था,
वक्त ऐसा इस जहां में फिर कभी क्या आएगा।
ये लुटेरों के मकां हैं, मांगने आया है तू,
भाग जा वरना जो तेरे पास है लुट जाएगा।
क्यों .कसीदे कह रहे हैं आप अपने नाम पर,
वक्त खुद अपनी जुबां से सब बयां कर जाएगा।
***
गौरीशंकर आचार्य ‘अरुण’
दूरभाष: 09413832640
ग़ज़ल 6 तक आते आते जीवन का सारा अनुभव सार रूप लेकर सामने है। बेहतरीन ग़ज़लें।
ReplyDeleteइक रोज गुलिस्तां से मिलने को हवा आईं।
ReplyDeleteBahut hi Badhiya Sir!
NAmaskar!
सचमुच जीवन का हर रंग इन रचनाओं में है।
ReplyDeleteआदरणीय श्री गौरीशंकर आचार्य‘अरुण’जी को आखर कलश के माध्यम से मेरा प्रणाम पहुंचे !
ReplyDeleteकई महीनों, शायद साल भर से भी अधिक समय से मुलाकात नहीं हुई… आशा है, स्वस्थ-सानन्द होंगे ।
आपकी रचनाएं आपके मुंह से सुनने का आनन्द ही अलग है ।
यहां प्रस्तुत रचनाओं पर छोटे मुंह से मैं ज़्यादा कहने की अपेक्षा पढ़-गुन कर आनन्द ले रहा हूं …
पुनः प्रणाम !
भाई नरेन्द्र व्यास जी , पंकज त्रिवेदी जी , ओम पुरोहित कागद जी और सुनील गज्जाणी जी चारों को आखर कलश सजाते रहने के लिए किए जाने वाले निरंतर प्रयासों के लिए बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
रास्ते हमने बुहारे आज तक सबके लिए,
ReplyDeleteप्यार बोकर खुश हुए हैं, झाडियाँ बोकर नहीं।
दिल की गहराइयों से निकलीं ग़ज़लें हैं। बहुत अर्थपूर्ण । आखर कलश और गौरीशंकर आचार्य श्अरुणश्जी को बहुत बधाई।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
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Dear Editor..
ReplyDeletei have read this very sounded poem of Poet Arun Ji.
i saw the life vision in this poem line .this poem it very small but its message is very big for our society its teaching to reader for life way as a teacher . its not a simple poem for fun but its making real life fun in vision when we read it as a learner ..ha
i want to say thanks to you if you have share this creative poem with me by your blog.
i hope in future you will share some more best and meaning full poem with me from your blog post system.
once again best of luck
regards
yoegndra kumar purohit
M.F.A.
BIKANER,INDIA
9829199686
बेहतरीन ग़ज़लें ... अपने पास संजो कर रख ली हैं .... कीमती नगीने की तरह .... बेहद लाजवाब ...
ReplyDeleteyah sanklap dogle hii to chhlate hain vishwaason ko, Loot raha hain shkuni palat palat kar pason ko... Aadarjog Arunji ki yah panktiyan maine kaha padhi thi or mere jahan me jindgi bhar zinda rahegi.. Unhe Aakhar kalash me or padhne ki ischha hain, shukriya
ReplyDeleteजीवन के विभिन्न रंगों का दर्पण हैं गज़लें|
ReplyDeleteसुधा भार्गव
बेहतर...
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़लें।
ReplyDeleteआखर कलश और गौरीशंकर आचार्य जी को बहुत बधाई।
mohatram janab gorishankar arun sahab apne dor ke ese shayar hain jo zindagi ke tazarbat ko apni zaban,bayaanor ki binapar guzare waqt ke har lamhe ki jo manzar kashi vo waqai qabile tarif hai aap ke ashar fhulon ki tarha khilten hai or mahkte rhten hai kai dino tak yadon me.......
ReplyDeleteek se badh kar ek behtareen......:)
ReplyDeleteअरूण जी की गजलें मस्तिष्क को खटखटाती है तो दिल में स्पंदन छोड जाती है, मैंने ये सारी गजलें खुद अरूण जी से सुनने का सौभाग्य पाया है, ये पुस्तक रूप में जल्द पाठकों के सामने आए, इसी अभिलाषा के साथ भाई सुनील और नरेन्द्र जी को साधुवाद
ReplyDeleteदुखद समाचार.........
ReplyDeleteअत्यन्त दु:ख के साथ सूचित करना पड रहा है कि श्री गौरीशंकर आचार्य 'अरुण' का मंगलवार रात (15.01.2013) हल्दीराम मूलचंद अस्पताल, बीकानेर में निधन हो गया। वे 75 साल के थे। बुधवार (16.01.2013) को सुबह साढ़े आठ बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। विनम्र श्रद्धांजलि!