दीपोत्सव आखर कलश के संग- दीपावली विशेषांक

 दीपोत्सव महोत्सव
आज के दौर में समाज में हमें निराशा, भय-आतंक और दगाबाज़ीने घेरा है | ऐसे मैं "आखर कलश" परिवार आपके लिएँ साहित्य-संस्कृति और आध्यात्मिकता से जुड़े विचारों का छोटा सा दीप लेकर खडा है | चारों तरफ भले ही अंधकार का साम्राज्य हो, मगर जहां अपने शुद्ध विचार और शुद्ध आत्मा का दीप जलता हो वहां दुःख-दर्द, निराशा या भय की कालिमा दूर हो जायेगी | मैं आप सबको आहवान करता हूँ कि इस छोटे से दीप को बुझाने न दें|आप भी हमारे साथ इसमें श्रद्धा और भक्ति से इसे बचाए रखेंगे तो छोटा सा दीप एक-न-एक दिन सूर्य बन जाएगा |आप सभी को दीपावली के इस पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ! महालक्ष्मी आप पर सदा मेहरबान रहे. आप और आपका परिवार सुखी हो, मंगलमय हों, ऐसी  श्रीगणेश जी, प्रभु श्री हरि और माँ लक्ष्मी से प्रार्थना करते हैं. दीपावली महोत्सव को धूमधाम से मनाने के प्रयोजनार्थ आप सभी के लिए प्रस्तुत है रश्मि प्रभा, सुधा ओम धींगरा, संगीता सेठी, जया केतकी, राजेश उत्साही, अरुण रॉय और सुनील गज्जाणी के साथ मिलकर आस्था और विश्वास के दीपक जलाएँ और अपने सुखों की रंग-बिरंगी फुलझडियाँ मिलजुलकर बाँटें और दुखों को प्रेम की चिंगारी से पटाखों के धुएं में उड़ा दें...
-संपादक मंडल

लक्ष्मी का तांडव

साप्ताहिक योजना में
घर की सफाई हो रही है
हर कोने की गन्दगी हटाई जा रही है
छोटी-बड़ी हर दुकानें
सज गई हैं
एक साल की धूल हटाकर
लक्ष्मी की प्रतीक्षा है सबको !
........................
पर जो गंदगियाँ पोखर,तालाबों,
नदियों,पहाड़ों, सड़कों के किनारे हैं
उनका क्या होगा?
जो ईर्ष्या,द्वेष,घृणा,उपेक्षा की परतें
हमारे अन्दर हैं
उनका क्या होगा?
इन गंदगियों को पारकर
लक्ष्मी कैसे आएँगी?
क्यूँ आएँगी?
.........................
साप्ताहिक सफाई का
सारा नज़ारा लक्ष्मी ने भी देखा है
मंद मुस्कान लिए
मन की परतों को भी जाना है
दीये की लौ
कितनी ईमानदार है
और कितनी भ्रष्ट....
सबकुछ पहचाना है !
.........जहाँ ईमानदारी है
वहां लक्ष्मी वैभव बनकर आएँगी
भ्रष्टाचार की दुनिया में
जहाँ उनको उछाला जाता है
वहां तांडव ही करके जाएँगी !
पटाखों की शोर में
स्व की मद में
शायद तुम्हें अभी पता न चले
पर सारा हिसाब लक्ष्मी करके जाएँगी
चुटकी बजाते
दीवालेपन की घंटी बजाकर जाएँगी !
***
-रश्मि प्रभा

रावण दहन का उत्साह
दीपावली की जगमगाहट
पटाकों की खड़खड़ाहट
हमें
उस सन्देश से दूर ले जाते हैं
जो
हर वर्ष ये त्यौहार ले कर आते हैं |

राम के आदर्शों को
छोड़ते जा रहे हैं हम
और रावण की सोच
बढ़ती है जा रही |

काश!
हम जला पाते
भीतर के रावण को,
मिटा पाते
उस मानसिकता को,
जो उत्साहित करती है
रावणी प्रवृति को |

काश!
हम राम की मर्यादा का
तेल डाल
उनके आदर्शों की बाती बना
दीपावली के दिये जला
रावणी प्रवृति वाले
हृदय रौशन कर सकें |
इस पर्व को मनाने के
अर्थ सार्थक कर सकें |
***
-सुधा ओम ढींगरा
नार्थ कैरोलाईना ( यू. एस. ए )

दीप माला

रिश्ते
जो बुने
हमने
विश्वास की सड़क पर
चलते हुए
पकड़े हुए
स्नेह के
मजबूत हाथ
एक दूसरे से
मिलकर
श्रद्धा की श्रंखला
बनाते हुए
जैसे आज दीवाली का
हर दीप
मिलकर
दूसरे दीप से
बनाता हैं माला
और करता है रौशन
अमावस की रात

आओ!
हम
तुम
सब
मिलकर बनाएँ
विचारों की
दीपमाला
और करें
एक दूजे के लिए
दुआ
शुभ हो जीवन
शुभ दीपावली
***

लम्हों का हिसाब: दीप

दीपावली का हर दीप
तुम्हारे साथ बिताए
लम्हों का
देता है हिसाब

दीप में दिपदिपाती लौ
तुम्हारे साथ लिए
हर फैसले को
रौशन करती हुई
दीप में पिघली वसा
तुम्हारे स्नेह की
आँच मे सराबोर
पिघलती हुई मैं
दीप का रौशन वलय
तुम्हारे इर्द-गिर्द
होने का अह्सास
मेरे साथ
दीपों के किनारे
वसा की सुरक्षा
कहीं निकल ना जाएँ
दीप के प्राण

हर दीपावली पर
एक दीप का इज़ाफा
मेरी ज़िन्दगी को
रौशन सा करता

आज पीछे मुड़कर देखूँ
तो लम्बी दीपमाला
नज़र आती है
आकाश-गंगा की तरह
***
-संगीता सेठी

दीप सजा करते थे कतार बद्ध होकर

दीप सजा करते थे कतारबद्ध होकर
उन पर भी था एक अनुशासन
एक अनुशासन हुआ करता था कभी,
दीप जलाने वालों पर भी,
मेहनत की माटी से गढ़े जाते थे,
मन के रंगों से रंगे जाते,
कहाँ गुम हो रही है सभ्यता?
बदलती जा रही है संस्कृति धीरे-धीरे।
क्या यही विकास है?
या फिर व्यापार की प्रगति का नतीजा,
सब निरुत्तर हैं, मौन हो निहारते,
मूक भाषा में व्यक्त होती है सहमति।
इसमें शामिल है भागते समय की,
कभी न थमने वाली अबाध गति।

मुझे आज भी याद है, वह पंक्ति,
जिससे घर की मुंडेर जगमगाती थी घण्टों,
आतिशबाजियों की आहटों से बेखबर,
बचाया करते थे दीपों को बुझने से,
थक कर हार जाता था, अमावस का अंधेरा,
आँख लगने तक जगमगाती थी मुंडेर।
थाम लेती थी आकर सूरज की किरणें,
न अब वह क्रम रहा, न ही वह अनुशासन!
एक खटका दबाते ही रोशन हो जाती है, पूरी इमारत,
मिटा देती है पल भर में अंधेरा,
बस नहीं मिटा पाती तो वह है,
हर मन में भरता जाता तमस,
आशा है, ऐसी किरण की जो रोशन करे,
हर घर का मन आँगन, हर मन का आँगन!
***
-जया केतकी

गठरी

एक गठरी मिली
धूल से भरी
फटे-पुराने कपड़ों से बंधी
पछेती पे
मन-मस्तिष्क पे
यादें उभरने लगी
खादी का कुरता
बाबू जी का पर्याय !
बेल-बूटे की साड़ी
जो माँ को
शादी की सालगिरह पे
बाबू जी ने
सौगात दी थी !
चंद इंच के
जन्म के कपडे
माँ के हाथों बने !
गुड्डू की गुडिया
धरोहर सी बनी ये वस्तुएं
अटाले में पडी
यादें फिर उभार दी
दीपावली ने
मान-मस्तिष्क पे
झाड-पूंछ
रंग-रोगन के बीच
***
-सुनील गज्जाणी

जलेंगे
फिर इस दिवाली पर
आशा का तेल भरे दिए
कपास की झक्‍क सफेद बाती
होकर काली फैलाएगी प्रकाश

छूटेंगी
फुलझडि़यां,खिलेंगे अनार
हवा में बिखरेगी रंग-बिरंगी छटा

गूंजेगा
असहनीय शोर
बन जाएगा युद्ध का मैदान
शांत-सा यह आकाश

हवा में
होगी बारूद की गंध
सांस लेने में निकलेगी जान
और न लें तो भी निकलने को होंगे प्राण

सड़क पर
चलना होगा दूभर
अघोषित कर्फ्यू की गिरफ्त में होंगी गलियां
बहरहाल......

जो जलाएंगे
दिया,
मन का
आत्‍मा की कालिख करके साफ

जो फैलाएंगे
उल्‍लास,
रचनात्‍मक सोच का

जो बांटेगें
मिष्‍ठान,
अपने सुविचारों का

दिवाली
हो उनको मुबारक।
***
-राजेश उत्साही

दिए को अफ़सोस है

मिटटी से
गढ़ कर
बनाया गया है मुझे
रोशन करने को
घर आँगन

वर्षो से
जलता आ रहा हूँ मैं
घर घर
आँगन आँगन
ओसारे ओसारे
दालान दालान
देहरी देहरी
हर दिन
हर वर्ष
लेकिन अफ़सोस ही रहा
मुझे सदियों से

ख़ुशी नहीं होती मुझे
जल कर भी जो
मिटा नहीं पाता मैं
किसी के
भीतर का अन्धकार
***
-अरुण सी. रॉय

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19 Responses to दीपोत्सव आखर कलश के संग- दीपावली विशेषांक

  1. हर रचना दिल को छू कर अपना असर दिखा रही है....सभी रचनायें एक से बढ़कर एक इस प्रकाश उत्‍सव को जगमगा‍हट प्रदान कर रही हैं ..........अनुपम प्रस्‍तुति ।

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  2. एक से बढ़कर एक प्रेरणादायक सुन्दर कवितायेँ
    दीपावली मंगलमय हो.

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  3. सबसे पहले ते आखर कलश को बधाई, इस मनोहारी आयोजन के लिये और फिर उन रचनाधर्मियों को जिन्‍होंने पारंपरिक सोच से हटकर नये दृष्टिकोण से देखा इस उत्‍सव को शब्‍दरूप दिया। सभी कवितायें निस्‍संदेह परिपक्‍व सोच और शिल्‍प का स्‍पष्‍ट प्रमाण हैं।

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  4. सभी रचनायें एक से बढकर एक हैं और एक सुन्दर संदेश देती हैं ……………जब तक मन का अंधियारा नही मिटेगा चाहे कितने दीप जला लो प्रकाश नही फ़ैलेगा…॥
    दीप पर्व की हार्दिक बधाई।

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  5. बहुत सुन्दर आयोजन किया है...
    एक से बढ़कर एक रचनाओं ने त्यौहार के आनन्द में चार चांद लगा दिए...
    सभी रचनाकारों को बधाई.
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  6. पहले तीन दीवे..........


    ''सुनो!
    एक दीवा दरवाज़े पर ज़रूर रख देना.

    और हाँ,
    एक दीवा रास्ते के अंधे मोड़ पर भी.

    तब तक मैं
    आकाशदीप बाल आता हूँ.

    !!ज्योतिपर्व मंगलमय हो!!''

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  7. सारी रचनाएँ अपने में एक सन्देश देती हुई ...यह उत्सव बहुत अच्छा लगा ...आभार

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  8. आखर कलश को तहे-दिल से बधाई! यह दीवाली अंक बहुत ही बढ़िया हुआ है. हर रचना अपनी खूबसूरती बिखेरती है.

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  9. आप सबों को बहुत बहुत बधाई और दीपावली की शुभकामनाएं -
    पाठकों की प्रतिक्रियाएं पढ़कर तो खुशी दुगनी हुई और इन सारी खुशियों को हम तक पहुंचाने के लिए
    बधाई व दीपावली के पावन प्रसंग पर
    समस्त परिवार सहित ,
    आप सभी के परिवार के छोटे और बड़ों के लिए ,
    मेरी , कर बध्ध दीवाली की मुबारकबादी भी ..
    स स्नेह
    - लावण्या

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  10. दीपावली पर आखर कलश द्वारा प्रस्तुत सभी काव्य-दीप स्वागतेय एवं प्रशंसनीय हैं.धन्यवाद.
    http://kavitakiran.blogspot.com/

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  11. आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को दीपावली पर्व की ढेरों मंगलकामनाएँ!

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  12. सभी रचनायें एक से बडः कर एक। आप सब को सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  13. सुंदर आयोजन और उतना सुंदर ही आयोजन।

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  14. "आखर कलश"- दीपावली विशेषांक में एक से बढ़कर एक रचना और सजावट मनमोहक.... सभी रचनाकारों और श्री नरेन्द्र व्यास जी को भी दीपावली की हार्दिक बधाई |

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  15. माफ करें मेरी टिप्‍पणी को ऐसे पढ़ें- सुंदर आयोजन और उतना ही सुंदर संयोजन।

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  16. बहुत अद्दभुत आलोकिक संयोजन और संकलन.. दीपावली पर हार्दिक बधाइयाँ ..

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  17. बहुत अद्दभुत आलोकिक संकलन और संयोजन ..दीपमाला के इस पर्व पर आखर कलश को हार्दिक शुभकामनाएं...

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  18. एक से बढ़ कर एक हैं सभी कविताएं!

    आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

    सादर

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