रात की ख़ामोशी इस बात की गवाही है,
शायद आने वाली फिर एक नयी तबाही है!!
सहमा-सा हर मंजर सनसनी-सी फैली हुई,
सुनसान रास्तों पर शायद कोई आतंक का राही है!!
यह सीमा पार के हमले हैं या अपनों के हैं विद्रोह,
सारी रात कश्मीर ने इस सोच में बितायी है!!
जंग-ए-मैदान में पल-पल छलनी होते सीने,
मौत के सामानों ने कैसी होड़ मचाई है!!
‘एकता' अब तुमको भी हथियार उठाने होंगे,
अब फीकी पड़ने लगी तुम्हारी कलम की स्याही है!!
ग़ज़ल दो
तन्हा नहीं कटते ज़िन्दगी के रास्ते,
हमसफ़र किसी को तो बनाना चाहिए था !!
शब् के अँधेरे गहरे थे बहुत,
मेरे लिए रौशनी किसी को तो जलाना चाहिए था !!
रोते हुए दिल की बात वो समझ ना सके,
शायद आँखों को भी आँसू गिराना चाहिए था !!
यूँ ही ऐतवार कर बेठे एक अजनबी पर हम,
एक बार तो उस शख्स को आजमाना चाहिए था !!
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
ReplyDeleteआपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
ReplyDeleteयह सीमा पार के हमले हैं या अपनों के हैं विद्रोह,
ReplyDeleteसारी रात कश्मीर ने इस सोच में बितायी है!!
खुबसूरत शेर बधाई
भाव हैं,विचार भी है। एकता से एक ही अनुरोध है कि वे युवा हैं अपने लेखन में थोड़ी सी सकारात्मक भी लाएं। बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteदोनों ग़ज़लों से साफ़ संकेत मिल रहे हैं कि एकता जी इस विधा में सफ़लता की बुलंदियों पर जाने वाली हैं...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
बहुत अच्छा प्रयास .. सोच नई है.. और भाव भी.
ReplyDeleteइसे बनाये रखें व और बेहतर करें ....
- prithvi
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteदूसरी गज़ल जादा अच्छी लगी !
अच्छी और भावपूर्ण ग़ज़लें हैं।
ReplyDeleteजनाब नरेन्द्र व्यास जी
ReplyDeleteएकता नाहर की यह अभिवयक्ति ,ग़ज़ल कहने का एक अच्छा प्रयास है
किन्तु यह बह्र से खरिज तो हैं ही तथा काफ़िया भी दोष पूर्ण है
इनको अभी और प्रयास करना चाहिए ताकि आगे चल ग़ज़लें कह सकें !
धन्यवाद
अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteकविताओं में प्रतीक-शब्दों में नए सूक्ष्म अर्थ भरता है
देसिल बयना - 53 : जाके बलम विदेसी वाके सिंगार कैसी ?
अच्छे शब्द और भाव. ये पंक्तियाँ विशेष लगीं
ReplyDeleteरोते हुए दिल की बात वो समझ ना सके,
शायद आँखों को भी आँसू गिराना चाहिए था!!
- शुभकामनाएं.
आदरणीय पुरुषोत्तम 'अज़र' जी, प्रणाम ! जी सही फ़रमाया आपने, चूँकि एकता जी अभी प्रयासरत हैं, इनकी कोशिश काबिले तारीफ है. इनके सृजन को मौजीज़ गुणीजनो की कसौटी पर रखने का एक प्रयोजन भी था कि एकता जी का talent और अधिक निखरने की और अग्रसर हों..कमियाँ दूर हों और इनका सृजन और निखरे..जो कि हमारा मूल उद्धेय भी है..! आपका बेहद आभार !! साथ ही समस्त गुनीजनो का भी दिल से आभार जो उहोने एकता जी को appreciate किया..नमन करता हूँ !
ReplyDeleteekta ko kalam ki sayahi nasib nahi hoti , lahu ki ek bund hi kafi hai..
ReplyDelete2.kuch logo ki aankhe behri hoti hai unhe dil ke rone ki aawaj sunai nahi deti is like aankhe bhi unki nahi roti..
sadar..
yogendra kumar porohit
M.F.A.
BIKANER,INDIA
http://yogendra-art.blogspot.com
बहुत सुंदर..बढ़िया ग़ज़ल पढ़ने को मिली..एकता जी को बधाई
ReplyDeleteदोनों रचनाएँ बेहद पसंद आयीं.....
ReplyDeleteekta ki kavitayen good ......thanx
ReplyDeleteमुझ अबोध बालिका को आप सभी का अपार स्नेह और आशिर्वाद मिला !
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत आभार
धन्यवाद
नरेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने अपने विचारो से मेरी रचनाओ को और भी खूबसूरत बनाया!
पुरुसोत्तम जी,मॆ अपनी लेख्ननी मे सुधार लाने का पूरा प्रयास करूगी!
भूल चूक के लिये माफ़ी चाहती हू!
आशा है आप सभी का मार्गदर्शन,प्यार और आशीर्वाद ्मिलता रहेगा!
सादर
एकता नाहर
Ekta ki dono gazalon main nayapann hai..! Bhaav khoobsurat hain...! Shubhkamnayen...!
ReplyDeletedono hi gazalein shaandaar hain ... likhti rahiye
ReplyDeleteशायरी में लड़कपन लगता है, जो उम्र के मुताबिक़ तो ठीक ही है, जारी रखिये ....
ReplyDeleteEkta,
ReplyDeleteBahut sunder bhaav yukt ghazal
‘एकता' अब तुमको भी हथियार उठाने होंगे,
अब फीकी पड़ने लगी तुम्हारी कलम की स्याही है!!
Surinder Ratti
Mumbai
ये वो उम्र है जब मुझे ग़़ज़ल का ग़ भी नहीं आता था। एकता इस उम्र में प्रयास कर रही हैं, भाव हैं शब्द हैं, शिल्प भी आ जायेगा। इंटरनैट के माध्यम से ग़़ज़ल पर आधार ज्ञान का लाभ तो इस पीढ़़ी को सहज उपलब्ध है।
ReplyDeletecongratulation ekta ji and i fully appreciate that you have soul for nationality this is great sign for forthcoming young writer . i would like that you have to affert through "Kalam" very positively these sensation matter we want a solution in favour of india.
ReplyDeleteand next nazma i like very very much. your creation with emotion and bottom of heart . very lovely i really appreciate. again thanks to you and narendra vyas and sunil gajjani for AAKHAR KALASH
Markanday
सहमा-सा हर मंजर सनसनी-सी फैली हुई,
ReplyDeleteसुनसान रास्तों पर शायद कोई आतंक का राही है!!
achchha prayas... dono gajle bhavpurn hain. shubhkamna
Nice way of expressing inner flow but it has to be flawless too... Meter is missing & so is the structure which is bare-essential for a ghazal!
ReplyDeleteAll the best...
ह्रदय से बहुत बहुत बधाई एकता जी
ReplyDeleteआपकी पहली ग़ज़ल जो कि देश भक्ति से ओत प्रोत है और आपने अद्भुत राष्ट्र भक्ति का जज्बाटी प्रस्तुत किया है
तथा आपकी दूसरी ग़ज़ल ह्रदय को छूते हुए निकली है तथा मैं आपकी भावना कि कद्र करता हु आपकी विविधता विलक्षण है कि दो बिलकुल भिन्न विषय पर आपने लिखा है एक और देश प्रेम दूसरी और प्रेम सन्देश का सार आप कि इजाजत हो तो मैं इन गजलो को संगीत बध्द कर आपको माननीय संपादक महोदय के माध्यम से प्रेषित करना है
धन्यवाद और पुनह बधाई आपको और आखर कलश के नरेन्द्र जी एवं सुनील जी को
मार्कंडेय रंगा
Markanday jee
ReplyDeleteआपने मेरि रचनायो को इतना सराहा और उन्हे सन्गीत्बध्द करने का सोचा,मे आपकी आभारी हू!
आप उचित समझे तो बिल्कुल आप मेरि रचनायो को सन्गीत्बध्द करे!
मे अपनी रचनायो को सन्गीत के सुरो मे सुनने के लिये उत्सुक हू!
उम्मीद है आप मुझे अपने सन्गीतमय सुरो मे मेरी रचनायो को प्रेषित करेगे!
सादर
एकता नाहर
आप सभी का बेहद शुक्रिया,
ReplyDeleteआभारी हू
एकता नाहर
सहज काव्य प्रतिभा!!
ReplyDeleteहमारी शुभेच्छा आपके साथ, उँचाईयां सर करें,यही भाव॥
ekta jee, achchhi aur pyari gajal ke liye bahut bahut badhai......:)
ReplyDeleteजनाब नरेन्द्र व्यास जी,
ReplyDeleteआपके अनुरोध के मुताबिक ग़ज़ल को बहर (छंद) व शब्दों का परिभाषित करते हुए प्रेशित कर रहा हूं !
आशा करता हूं एकता को यह ग़ज़ल पसंद आएगी और साथ में उत्साहवर्धन भी होगा !
फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन ,फ़ाइलातुन
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जिंदगी का लुत्फ़ उठाना चाहिए था
बात बिगड़ी को बनाना चाहिए था
मंजिलें मिलती कहां हैं जिंदगी में
हमसफ़र अपना बनाना चाहिए था
किस कदर गहरा अंधेरा छा गया है
राह में दीपक जलाना चाहिए था
दिल कि बातें वो मेरी समझा नहीं जब
क्यूं मुझे आँसू गिराना चाहिए था
अजनबी पर था भरोसा कर लिया यूं
आजमाना भी तो आना चाहिए था
आपने सही कहा parushottam जी,
ReplyDeleteपर साहित्यिक माहौल के अभाव के कारण सहित्य की विधाओ को स्पस्ट रूप से नही समझ पाई!फ़िर भी सहित्य मे असीम रुचि और लगाव है!आप जैसे साहित्य से धनी महानुभावो का मार्गदर्शन यू ही मिलता रहेगा तो जल्द ही सारी शिकायते दूर कर दूगी!
पर मे
फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन ,फ़ाइलातुन
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को अपनी रचना के शब्दो मे अच्छी तरह से कैसे समाहित करू...
इस बात पर भी आप अपनी टिप्पडी दे तो बेहतर होगा!
फ़ाइलातुन, फ़ाइलातुन ,फ़ाइलातुन
ReplyDelete2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2
ये क्या है...मुझे भी बताएं..मैं भी कुछ सीख जाऊं..लिखने का तो सभी कुछ न कुछ जोड़ तोड़ कर लिख लेते हैं लेकिन वो साहित्य के नियम के अनुसार हो ऐसी मेरी भी तमन्ना है...जवाब जानने को उत्सुक हूँ..
उम्दा ग़ज़लें ...
ReplyDeleteप्रिय एकता नाहर व शेखर सुमन ग़ज़ल को बहर (छंद) को समझने के लिए आप उत्सुक है
ReplyDeleteयह एक महत्वपूर्ण विषय है मुझे हार्दिक खुशी है ! आप मेरा नाम कोपी करके गूगल साइट में पेस्ट कर दें !
पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
आप ई-मेल भी कर सकते हैं !
p.abbi@yahoo.co.in
धन्यवाद
अब फीकी पड़ने लगी तुम्हारी कलम की स्याही है!!
ReplyDeletenahi ekata. kalam sabse dhardar hathiyar hai.isaki shyahi ko fiki nahi hone dena hai.
aapme dam hai.
sadhna karte rahiye.
ssneh-
manoj bhawuk
www.manojbhawuk.com
दोनों रचनाएँ बेहद पसंद आयीं.....
ReplyDeleteregards
एकता जी आपकी दोनों गज़लों को पढ़ा मैं इससे अत्यंत प्रभावित हुआ दोनों गज़ले बेहद प्रेरणास्पद है की मैं निशब्द हूँ आपको दीपावली की अग्रीम शुभकामनाये हार्दिक आभार
ReplyDeleteYe gazle apne likhi hai ???
ReplyDeletewakai laazawab hai...
mere khayal se ap 1 ache kaviyatri ho sakti hai.
ap meri kavitaye bhi kpbhai.blogspot.com dekh skti hai
विचार नए हैं ... कहने का अंदाज़ भी है .. शिल्प आते आते आ ही जाएगा ... बहुत बहुत शुभकामनाएं ....
ReplyDeletevichar nye or aalokik h....sabdo me tajgi h ..ubharte telent ko hmari subhkamnaye..
ReplyDeleteU.N. singh B-32 aakriti garden Bhopal
ReplyDeletenai sugandh ke sath sabdno ka tana bana buna gaya hai chalte rahiye!