रविवार का दिन! घर पर बैठा पुराने कागजात को तरतीब से लगाने का प्रयास कर रहा था। इन्ही कागजों में अचानक एक पुरानी फोटो हाथ आ गई। इस फोटो में मैं अपने पुराने सबसे अजीज मित्र महेश के साथ खडा हूँ। फोटो क्या दिखा! अतीत को कुरेदती हुयी स्मृतियां फिल्म की तरह दिमाग में चलने लगी। एक वो समय था कि जब हम दोनो एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकते थे। एक ये समय कि मिले हुए अरसा बीत गया। अरे! महेश से मिले हुए तो दो वर्ष हो गए। उसकी माताजी के स्वर्गवास के समय उसके घर जाना हुआ था। उस समय तो लगातार पांच-सात बार जाना हो गया था। क्या करें भाई! महेश ने घर भी तो बहुत दूर बना लिया। फिर लाईने भी हमारी अलग-अलग! वो बैंक में कार्यरत, मैं स्कूल में टीचर। अब तो दोस्तों से मिलना सुख-दुःख में ही हो पाता है। वो भी अगर मालूम चले तो। दोस्तों से मिलने का मन तो बहुत करता है पर वक्त मिले तब ना!
चलो आज कुछ काम नहीं हैं, फ्री हूँ, एक दम फ्री महेश से मिल ही लेते हूँ। फोन कर लूं ..... नहीं नहीं अचानक पहुँच कर ही उसे सरप्राईज दूंगा। सर .... प्राईज ... ! स्कूटर पर किक लगाकर रवाना हुआ। कुछ ही समय में उसके घर के सामने। डोर बैल दबाई, अन्दर से महेश के बाऊजी ने दरवाजा खोला। मैं महेश का पूछता उससे पहले ही बाऊजी बोले बहुत दिनों से आया है। भूल गया क्या ? मैने कहा नहीं नहीं ऐसा नहीं है। क्या करूँ ? समय ही नहीं मिलता। बाऊजी हंसते हुए बोले आजकल की पीढी के पास समय के अलावा सब कुछ है। अच्छा अब ये सब छोड तु अन्दर भी आएगा या समय नहीं है। उनके आग्रह के अपनेपन व मिठास ने मुझे अन्दर बैठने को मजबूर कर दिया। बाऊजी ने बताया महेश बच्चों को लेकर मेला देखने गया है। उसे भी तो रविवार को ही समय मिलता है। काफी देर हो गई है, वो लोग आने वाले ही होगें। मैने सहज होते हुए कहा कोई बात नहीं बाऊजी वो लोग आ जाऐंगे। मै आज महेश से मिलने की ठान कर आया हूँ, मिलकर ही जाऊंगा। जब तक महेश नही आता आप से बातचीत करके अनुभवों का लाभ लुंगा। हाँ हाँ क्यो नहीं तुम्हारे आने से मुझ रिटायर आदमी का भी कुछ समय पास हो जाऐगा। महेश के बाऊजी से बातचीत चलती रही। बाऊजी पहले बडे ही हँसमुख व जिन्दादिल प्रकृति के हुआ करते थे। आज मुझे उनकी बातचीत से लगा जैसे वों महेश की माताजी के देहान्त के बाद काफी अकेलापन महसूस करते है। महेश के घर बैठकर जब हम पढा करते थे तब बाऊजी बीच में आकर हमें जरूरी टिप्स बताया करते थे। महेश के साथ दोस्तों का सा व्यवहार करते थे। महेश भी तो अपने बाऊजी की तारीफ करने नहीं थकता था। इन सब बातों का गवाह मैं भी हूँ।
बाऊजी से बाते करते करते एक घण्टा बीत गया समय का मालूम ही नहीं चला। तभी स्कूटर के हार्न की आवाज आयी, लगता है वो लोग आ गये। बाऊजी ने उठते हुए कहा, अच्छा बेटा ! कभी कभार आ जाया कर, तुझसे बात करके आज अच्छा लगा। इतना कहकर वे अन्दर चले गए।
महेश ने बाहर ही मेरे स्कूटर को पहचान लिया था। कमरें में आकर बडी गर्मजोशी से गले मिला। हमारे बीच कुछ शिकवे शिकायत हुई। आपस मे एक दुसरे का हाल-चाल जानने के बाद, महेश ने पूछा अच्छा ये बता कितनी देर हुई तुझको यहाँ आये हुए। मैने बताया यही कोई घण्टा सवा घण्टा हुआ होगा। बाऊजी के साथ बातचीत में समय का पता ही नही चला। इतना सुनते ही उसके चेहरे के भाव बदल गये। मेरे पास खिसकते हुए धीरे से फुसफुसा कर बोला! क्या बताऊं यार ? बाऊजी भी न आजकल हर किसी को पकड कर बैठ जाते हैं। मेरे सारे दोस्तों ने उनके डर से घर आना ही बंद कर दिया। सॉरी यार तू पहले फोन कर देता तो तुझे इतना बोर नही होना पडता। इतना सुनते ही मुझे लगा कि मैं बिना फोन किये आकर महेश को सरप्राईज देना चाहता था पर महेश ने सर्प्राईज मुझे दे दिया। मेरा ध्यान अब महेश के बाऊजी की कही उन बातों पर जा रहा था जिन्हे मैं उनकी जिन्दादिली या मजाकिया अन्दाज के विपरीत समझ रहा था। जिनकों मैं उनका पत्नी वियोग समझ बैठा था। वो सभी बातें महेश से मिले इस सरप्राईज के बाद मुझे अच्छी तरह समझ आ रही थी।
नामः प्रमोद कुमार चमोली
पिता का नामः श्री प्रेमलाल चमोली
जन्मतिथिः ०५-०५-१९६६
योग्यताः एम.ए., एम.एड., बी.जे.एम.सी.
पताः राधा स्वामी सत्संग भवन के सामने, गली नं. २, अम्बेडकर कॉलोनी, पुरानी शिवबाडी रोड, बीकानेर-३ (राज.)
लेखन अभिरूचिः कथा, लघुकथा, व्यंग्य, संस्मरण, नाटक व आलेख
प्रकाशनः
(१) हंस, पाखी, मधुमति, दैनिक भास्कर (रसरंग), राजस्थान पत्रिका, अक्षर खबर, विकल्प, गवरजा, दैनिक युगपक्ष, लोकमत व नोखा जनपक्ष इत्यादि में कथा/लघुकथा/व्यंग्य तथा आलेख प्रकाशित।
(२) समतुल्य शिक्षा कार्यक्रम (सतत शिक्षा) के लिये स्तर ’ए‘ (कक्षा तीन के समकक्ष) के लिए पर्यावरण अध्ययन की पुस्तक का लेखन।
(३) शिक्षक दिवस प्रकाशन में जीवन के कितने पाठ तथा सृजन के रंग, कथा संग्रह में कहानियां प्रकाशित।
(४) आकाशवाणी से वार्ता, रेडियो नाटक व झलकी प्रसारित।
(५) विभिन्न स्मारिकाओं में लेखन व सम्पादन कार्य
पुरस्कार एवं सम्मानः
(१) २००५-०६ में जवाहरकला केन्द्र जयपुर द्वारा आयोजित लघु नाट्य प्रतियोगिता में लघुनाटक ’आशियाना‘ को प्रथम स्थान।
(२) २००७-०८ की जवाहर कला केन्द्र जयपुर द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में लघुनाटक ’जिन्दगी फिर मुस्करायेगी‘ को प्रथम दस स्थानों में चयन।
(३) राव बीकाजी संस्थान बीकानेर द्वारा शिक्षा और साहित्य में उल्लेखनीय सेवाओं के लिये सम्मान।
(४) रेडियो नाटक ’सही रास्ता‘ का राज्य स्तरीय प्रसारण।
(५) शिक्षा में उल्लेखनीय सेवा के लिए २००७ में लॉयन क्लब बीकानेर द्वारा सम्मान।
(६) दैनिक भास्कर द्वारा २००८ का शिक्षक सम्मान।
(७) आदर्श मौहल्ला नागरिक समिति द्वारा शिक्षक सम्मान।
(८) नगर विकास न्यास, बीकानेर द्वारा वर्ष २००९-१० हेतु हिन्दी साहित्य का मैथलीशरण गुप्त सम्मान।
अन्यः बीकानेर में विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं नाट्य प्रस्तुतियों में मंच और मंच पार्श्व में सहयोग।
सम्प्रतिः राजकीय नेत्रहीन छात्रावासित विद्यालय, बीकानेर में वरिष्ठ अध्यापक (विज्ञान) के पद पर कार्यरत।
प्रमोद जी की लघुकथा माँ-बाप के प्रति लोगों की बदलती सोच के रुख को दर्शाती है.. आभार उनकी लघुकथा को पढ़वाने के लिए..
ReplyDeleteआखरकलश का बदला रूप देखकर अच्छा लगा।
ReplyDeleteमाफ करें। इस कथा में बात कुछ बनी नहीं। लगा जैसे एक लम्बी कथा के नोट्स पढ़ रहे हैं। अगर इसे लघुकथा का रूप देना है तो प्रमोद जी को बहुत सारे विवरण हटाने चाहिए। लघुकथा में आमतौर पर इतना विस्तार नहीं होता है। लघुकथा बिना किसी भूमिका के केन्द्रीय बात कहती है। बाकी सारा विस्तार पाठक खुद सोचता है। या यूं कहें कि लघुकथा ऐसी होती है जो पाठक को बाकी सारा विस्तार खुद से सोचने के लिए मजबूर करती है।
बदलते परिवेश और माता पिता का एकाकीपन का दर्द अगर बोर होना है तो फिर हम क्यों ऐसा नहीं करते कि उनको अपने में शामिल कर लें क्यों वो दीवार बना रखते हैं जिससे वे हमें अपने बच्चे कहने में तक कतराते हैं. या कहो हम उससे किसी को बात नहीं करने देते हैं. हमारे पास वक्त नहीं है और दूसरों को वक्त देने नहीं देते. कुछ सोचने को मजबूर करती कथा सुन्दर है.
ReplyDeleteअपने से पहले की पीढी से मैं घंटों बातें करता हूँ और इस कथानक के विपरीत बहुत कुछ पाता हूँ। जिस संवाद में व्यतीत हुआ समय ज्ञात ही न हो, वह निरर्थक तो नहीं हो सकता। कमसे कम संवाद क आनंद तो उसमें होता ही है।
ReplyDeleteथीम अच्छी है, लेकिन लघुकथा के लिहाज से कुछ बडी नजर आई, फिर भी रचनाकार का मन्तव्य काबिले तारीफ है, बधाई
ReplyDeletemain bhi bhai rajesh ji se sahmt hoon pr vishy achchha hai nirntr abhyas yh sb swym sikha dega
ReplyDeleteshubhkamnayen
प्र्मोदजी, सरप्राइज के लिए बधाई.क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इस पर अच्छी सी कहानी लिखी जा सकती है?
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