स्व. शिवराम- हिंदी और राजस्थानी साहित्य का एक ऐसा चमकता सितारा जिसने अपनी रोशनाई से समूचे साहित्य जगत को जगमगाया..! अब ये सितारा हमारे बीच नहीं रहा..पर समूचे साहित्य जगत में उनके योगदान तक युगों-युगों तक नहीं भूल पायेगा..! आइये आज उन्ही की एक अमर कृति से उनको श्रद्धांजली अर्पित करें..!
शिक्षा - गांव गढ़ी बांदुवा, करौली और अजमेर में।
प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े रहे। जनवादी लेखक संघ के संस्थापकों में से वे एक । अखिल भारतीय जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा 'विकल्प' के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका । वर्तमान में 'विकल्प' के महासचिव थे।
भारत की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (यूनाइटेड) सदस्यता ग्रहण की। पार्टी के पोलिट ब्यूरो के सदस्य ।
प्रकाशित पुस्तकें
• जनता पागल हो गई है (नाटक संग्रह)
• घुसपैठिए (नाटक संग्रह)
• दुलारी की माँ (नाटक)
• एक गाँव की कहानी (नाटक)
• राधेया की कहानी (नाटक)
• सूली ऊपर सेज (सेज पर विवेचनात्मक पुस्तक)
• पुनर्नव (नाट्य रूपांतर संग्रह)
• गटक चूरमा (नाटक संग्रह)
• माटी मुळकेगी एक दिन (कविता संग्रह)
• कुछ तो हाथ गहो (कविता संग्रह)
• खुद साधो पतवार (कविता संग्रह)
बरसात की रात के
खुले आकाश मेँ
दमकता चाँद हो तुम
सर्दियोँ की सुबह का
उगता हुआ सुरज
फलोँ से लक-दक
पेड हो आम का
कल-कल बहती
नदी हो, सदानीरा
चुल्हे की आँच हो
टँगस्टन तार हो
बल्ब के भीतर का
कौन कहता है
कि अबला हो तुम
तुम सम्बल हो,प्रेरणा हो
ह्रदयहीन दुनिया का
ह्रदय हो
तुम्हारे ही बल पर
कायम है यह कायनात
स्वाधीनता हक है तुम्हारा और
यही तुम्हारे पास नहीँ
***
तुम्हारे ही बल पर
ReplyDeleteकायम है यह कायनात
स्वाधीनता हक है तुम्हारा और
यही तुम्हारे पास नहीँ
बहुत जबरदस्त रचना.
-स्व. शिवराम जी को श्रद्धांजलि!
बहुत सुंदर चरित्र चित्रण है नारी का ,उम्दा नज़्म है
ReplyDeleteस्व.शिवराम जी को श्रद्धांजलि
बहुत अच्छी रचना . बधाई.
ReplyDeleteHe was really deserving personality.Deep Condolance
ReplyDeleteमार्मिक कविता है। अनुरोध है कि शिवराम जी की कुछ और कविताएं आखर कलश के पाठकों को पढ़वाएं। इस कविता में पारम्पारिक बिम्बों के साथ कवि ने नए बिम्ब भी स्त्री को दिए हैं। और वे बहुत गहरे हैं। टंगस्टन का तार निर्वात या किसी खास गैस की कैद मे ही जलता है। यह भी एक बिम्ब है।
ReplyDelete"चुल्हे की आँच हो
ReplyDeleteटँगस्टन तार हो
बल्ब के भीतर का
कौन कहता है
कि अबला हो तुम "... नारी के प्रति सकारात्मक सोच को दर्शाती अच्छी कविता है.. स्व. शिवराम जी को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि!
स्व. शिवरां जी की कविता के सम्मान में मेरी कुछ पंक्तियाँ:-
ReplyDeleteहे जगधात्री
हे जग शक्ति
हे पौरुष अर्धांगिणी
तुम समान अधिकार की हो पात्र
फिर विशेष अधिकार क्यूँ?
एक संवेदन शील लेखक की रचना संवेदना से परिपूर्ण होती है ,शिवराम जी के व्यक्तित्व की झलक उनकी रचनाओ में देखने को मिलती है ,आज वो हमारे बीच नहीं है पर अपने सृजन में वो हमेशा अपने होने
ReplyDeleteका अहसास कराते रहेंगे ,
स्वाधीनता हक है तुम्हारा और
यही तुम्हारे पास नहीँ ......नारी जीवन की कटु सच्चाई बयां की है
आत्मिक श्रदांजलि
कौन कहता है
ReplyDeleteकि अबला हो तुम
तुम सम्बल हो,प्रेरणा हो
ह्रदयहीन दुनिया का
ह्रदय हो
तुम्हारे ही बल पर
कायम है यह कायनात
स्वाधीनता हक है तुम्हारा और
यही तुम्हारे पास नहीँ
नारी जीवन को बिम्ब प्रयोग से बखूबी चित्रित किया है…………बेहतरीन रचना।
स्वर्गीय शिवराम जी को हार्दिक श्रद्धॉंजलि।
ReplyDeleteनारी की महिमा पर ऐसी संतुलित कवितायें कम ही पढने को मिलती हैं।
तुम्हारे ही बल पर
ReplyDeleteकायम है यह कायनात
स्वाधीनता हक है तुम्हारा और
यही तुम्हारे पास नहीँ
बहुत प्रभावशाली रचना ....
परिचय के लिए आपका धन्यवाद !
स्व. शिवराम जी को भावभीनी श्रद्धांजलि!
स्व .शिवराम जी की कविता नारी के अस्तित्वबोध को पूरी गरिमा और संवेदना के साथ उकेरने में सफल रही है उन्हें पुरे सम्मान के साथ बधाई .
ReplyDeleteप्रेषित कविता प्रकाशित करने पर हार्दिक आभार।
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