एलेक्ट्रोन
अतृप्त होते हैं
अकेले होते हैं
और वे ही हैं
इस धरती के संबंधो
के आधार ।
रासायनिक गठबंधन के लिए
नए निर्माण के लिए
नए सृजन के लिए
नई उर्जा के लिए
नई सम्भावना के लिए
जरुरी है
अतृप्त होना
अकेले होना
विचरते रहना
एलेक्ट्रोन की तरह
एलेक्ट्रोन हैं हम
एलेक्ट्रोन हो तुम
चलो रचे नई सम्भावना !
2.
तालिकाओं में
खोये
आकड़ों के जाल में
उलझे उलझे
हम
मानो अंक
अंक ना हो...
तुम्हारा अंक हो !
रासायनिक गठबंधन के लिए
ReplyDeleteनए निर्माण के लिए
नए सृजन के लिए
नई उर्जा के लिए
नई सम्भावना के लिए
जरुरी है
अतृप्त होना
अकेले होना
विचरते रहना
एलेक्ट्रोन की तरह
kya baat hai...achi lagi rachnaye
अगर मैं कहूं कि पहली कविता केवल विज्ञान जानने वालों के लिए है तो अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। कवि का दायित्व बनता है कि वह जिस बिम्ब का चयन कर रहा है वह बिम्ब ऐसा होना चाहिए जो हर पाठक को समझ आए। या फिर उस बिम्ब को कविता में स्थापित भी करना चाहिए। मेरी जानकारी में शब्द इलेक्ट्रान है न कि कि एलेक्ट्रान।
ReplyDeleteदूसरी कविता में भी जिस बिम्ब के साथ साम्यता खोजी गई है वह कुछ जमता नहीं है। प्रेयसी का अंक और अंकों की दुनिया दो अलग चीजें हैं। अरुण जी विज्ञापन की दुनिया से संबंध रखते हैं अगर उनका इशारा 34-23-36 जैसे अंकों से है तो फिर बात अलग है।
(अरुण भी और अन्य पाठकगण भी माफ करें। मेरा अरुण जी के साथ कुछ इस तरह का रिश्ता बन गया है कि जहां भी मुझे उनकी कविता मिलती है मैं उसके बारे में इसी तरह बात करता हूं। वह इसलिए कि मुझे उनमें एक उम्दा कवि नजर आता है,पर वह कभी कभी बहुत उतावला होता है। जिस दिन उनका यह उतावलापन थोड़ा ठहर जाएगा,वे भी पाठक के अंदर बहुत समय ठहरने लायक योग्यता हासिल कर लेंगे।)
लगे हाथ कहता चलूं कि कल ही मैने यहां आखरकलश पर पहले प्रकाशित उनकी तीन कविताएं पढ़ीं । उनमें से पहली दो बहुत ही अच्छी हैं। पर तीसरी में वे फिर गोता खा गए । जहां उन्हें अपनी प्रेयसी में माडल नजर आती हैं।
अंक में डूबा है जो वो खो गया
ReplyDeleteदूर रहकर चार पल जी लीजिये।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (4/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
swchhndta vad ki jhlk liye kvitaye kvi ke atript mans ki dyotk hai
ReplyDeletekvi ka adhikar hai vh kya vishy chune pr "akn " shbd doosri bar preysi ke ank se samy sthapit krta sa prtit nhi ho rha bhai rajesh ji ne bhi yhi khi haismbhvt
doosri bat ye tino hi alg 2 nhi ek hi sthan pr snchrn krte hai in ki visheshta hi snchrn hai elektron 2 nhi apitu us ke sath proton milta hai yani nkaratmk +skaratmk ++-tb rchna hoti hai
pr aap miln ki bat krte hai achchha hai
bdhai
विज्ञान और गणित के तथ्य और शब्दों के ढांचे में आपने कोमल कविता का सृजन किया है, और वह भी पूरे काव्यगत सौंदर्य के साथ,...अपने आप में अनोखी और यथार्थपरक रचना...बधाई
ReplyDeleteबिल्कुल अलग और खूबसूरत अंदाज़ में प्रस्तुत की गई रचना...
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी...बधाई.
"नई सम्भावना के लिए
ReplyDeleteजरुरी है
अतृप्त होना"
अरुण राय जी की रचनाएँ अपनी अलग पहचान रखती हैं और प्रभावित करती हैं ये दोनों रचनाएँ भी मेरे उसी विश्वास को दृढ करती है.
विज्ञान के विषयों पर लिखी कवितायें या इन बिम्बों पर लिखी कवितायें मुझे बेहद पसन्द हैं ।
ReplyDeleteयहाँ भी देखेंhttp://wwwsharadkokas.blogspot.com/
बधाई
ReplyDeleteएलेक्ट्रोन हैं हम
ReplyDeleteएलेक्ट्रोन हो तुम
चलो रचे नई सम्भावना !
बहुत सुन्दर एलेक्ट्रोनिक सम्भावना ..
कभी मैनें भी एलेक्ट्रोनिक सम्भावना को निहारा था :
http://verma8829.blogspot.com/2009/07/blog-post_11.html
राय साहब की विज्ञान की पृष्ठभूमि लगती है, जो विज्ञान के विद्यार्थी हैं, जैसा राजेश ने कहा, उनकी समझ में तो यह अभिव्यक्ति आसानी से आ जायेगी लेकिन फिर भी जो सम्वेदन राय साहब हम तक पहुंचाना चाहते हैं, वह पहुंच रहा है, मुक्ति रचना के द्वार खोल देती है, मुक्ति वह नहीं जो हमारे साधु संत गाते फिरते हैं बल्कि वह जो स्वतंत्र दृष्टि प्रदान करती है.
ReplyDeletewah wah.. kya baat hai
ReplyDeletebahut hi sundar kavitayein....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर इस बार ....
क्या बांटना चाहेंगे हमसे आपकी रचनायें...
अपनी टिप्पणी ज़रूर दें...
http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html
सुन्दर रचनायें !!!
ReplyDeleteaap ki dono hi rachnayen behad pasand aayeen ....santushti aadmi ko nishkriya hi bana deti hai ..sahi kaha hai aapne kee nayi sambhaavnaayen rachne ke liye atriptta zaroori hai ...doosri kavita me ank aur ank dono ka jaadooo chal gaya ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, कुछ अलग अंदाज़ लिए रचनाए!
ReplyDeletekuch shabd apni pahchaan her din gahri karte jate hain aur aakarshit karte hain
ReplyDeleteArunji ki donon hi kavitaayen bahut achchhi hain . nootan vimb ka prayog kiya hai jo ki aapki kavita ki pahchan banta ja raha hai. aam jiwan se uthaya gaya achhoota vishay, anootha vimb prayog, parimarjit shaili aapki kavitaaon ko naya aayam de rahi hai. shubhkamna sweekar kare.
ReplyDelete