भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीयश्री लाल बहादुर शास्त्री (2 अक्तूबर, 1904 से 11 जनवरी, 1966 ) का आज जन्मदिन है | अपने पिता मिर्ज़ापुर के श्री शारदा प्रसाद और अपनी माता श्रीमती रामदुलारी देवी के तीन पुत्रो में से वे दूसरे थे। शास्त्रीजी की दो बहनें भी थीं। शास्त्रीजी के शैशव मे ही उनके पिता का निधन हो गया। 1928 में उनका विवाह श्री गणेशप्रसाद की पुत्री ललितादेवी से हुआ और उनके छ: संतान हुई।
स्नातक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात वो भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुये यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी विशुद्ध गाँधीवादी थे जो सारा जीवन सादगी से रहे और गरीबों की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी को समर्पित किया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी रही, और जेलों मे रहना पड़ा जिसमें 1921 का असहयोग आंदोलन और 1941 का सत्याग्रह आंदोलन सबसे प्रमुख है। उनके राजनैतिक दिग्दर्शकों में से श्री पुरुषोत्तमदास टंडन, पंडित गोविंदबल्लभ पंत, जवाहरलाल नेहरू इत्यादि प्रमुख हैं। 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने श्री टंडनजी के साथ भारत सेवक संघ के इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम किया। यहीं उनकी नज़दीकी नेहरू से भी बढी। इसके बाद से उनका कद निरंतर बढता गया जिसकी परिणति नेहरू मंत्रिमंडल मे गृहमंत्री के तौर पर उनका शामिल होना था। इस पद पर वे 1951 तक बने रहे।
शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और इमानदारी के लिये पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हे वर्ष 1966 मे भारत रत्न से सम्मनित किया गया। लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसी हस्ती थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी दूरदर्शिता से देश को न सिर्फ वीरतापूर्ण विजय का तोहफा दिया, बल्कि हरित क्रांति को भी अंजाम दिया। भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 की लड़ाई में छोटे कद के शास्त्री जी विश्व मंच पर एक साहसिक नेता के रूप में उभर कर सामने आए। महर्षि दयांनद विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर रजनीश सिंह के अनुसार लाल बहादुर शास्त्री के छोटे कद को देखकर ही शायद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान उनके व्यक्तित्व की महानता को पहचानने में गच्चा खा गए थे।
उन्होंने बताया कि जुलाई, 1964 में शास्त्री जी जब राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक में भाग लेने लंदन गए, तो रास्ते में ईंधन भरने के लिए उनका विमान कराची शहर में उतरा, जहां उनका स्वागत अयूब खान ने किया। उनके अनुसार अयूब खान ने शास्त्री जी के छोटे कद को देखकर अपने एक सहयोगी से पूछा था कि क्या यही आदमी जवाहर लाल नेहरू का वारिस है। इस घटना का महत्व इसलिए बहुत अधिक था, क्योंकि उसके बाद के साल 1965 में अयूब खान ने कश्मीर घाटी को भारत से छीनने के लिए हमले की योजना बनाई थी। पाकिस्तान ने योजना के अनुसार कश्मीर में नियंत्रण रेखा से घुसपैठिए भेजे और पीछे-पीछे पाकिस्तानी फौज भी आ गई।
इस पर शास्त्री जी ने मेजर जनरल हरबख्श सिंह की सलाह पर पंजाब में दूसरा मोर्चा खुलवा दिया। अपने अत्यधिक महत्वपूर्ण शहर लाहौर को भारत के कब्जे में जाते देख पाकिस्तान ने कश्मीर से अपनी सेना वापस बुला ली। इस तरह लाल बहादुर शास्त्री ने अयूब खान का सारा गुरूर तोड़ दिया।
अपनी नाक बचाने के लिए अयूब खान ने सोवियत नेताओं से संपर्क साधा, जिनके आमंत्रण पर शास्त्री जी 1966 में पाकिस्तान के साथ शांति समझौता करने के लिए ताशकंद गए। वहां दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। हालांकि उनकी मौत की आधिकारिक रिपोर्ट आज तक जारी नहीं हुई है |
सिंह के अनुसार शास्त्री जी ने अयूब खान जैसे घमंडी शासक का गुरूर ही नहीं तोड़ा, बल्कि उन्हें अपने सामने गिड़गिड़ाने पर भी मजबूर कर दिया था। ताशकंद में खान ने शास्त्री जी से कहा कि कुछ ऐसा कर दीजिए, जिससे वह पाकिस्तान में अपने लोगों को मुंह दिखा सकें।
प्रोफेसर नीरकंवल ने कहा कि देश में हरित क्रांति की नींव रखने का श्रेय भी शास्त्री जी को जाता है, जिन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री बनते ही कृषि क्षेत्र की शक्ल सूरत बदलनी शुरू कर दी थी और उद्योगों को सरकारी नियंत्रण से बाहर निकलवाने के लिए भी काम किया।
स्वर्गीय श्री लाल बहादुर श्रीवास्तव शास्त्री अपने विनम्र स्वभाव और मधुर वाणी के लिए प्रसिद्द थे | प्रयाग में एक दिन उनके घर पर किसी नौकर से कोइ काम बिगड़ गया | उनकी श्रीमतीजी का क्रोध में आना स्वाभाविक था | उन्होंने नौकर को बहुत डाँटा और उसके साथ सख्ती से पेश आई | शास्त्रीजी भोजन कर रहे थे | उन्होंने अपनी पत्नी से कहा - "अपनी जबान ख़राब क्यों कर रही हो? लो, तुम्हें एक शेर सुनाऊँ -"
और फिर मुस्कुराते हुए शास्त्रीजी ने आगे कहा - "जब एक शेर सूना है, तो एक दूसरा शेर भी -"
कहना न होगा, इन शेरों को सुनकर श्रीमती शास्त्री के क्रोध का पारा बहुत नीचे उतर गया था |
bahut achchi baat likhi hai.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteकोटि-कोटि नमन बापू, ‘मनोज’ पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छा लगा लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे में और जान कर ...
ReplyDeleteमहात्मा गॉंधी के बाद जो नाम सर्वमान्य श्रद्धा से लिया जाता है वह स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी का ही है। क्या यह मात्र एक संयोग है कि दोनों का जन्मदिन ग्रेगोरियन कैलेंडर में एक ही है।
ReplyDelete