शाहिद मिर्ज़ा शाहिद की ग़ज़ल

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
अजब वफ़ा के उसूलों से ये ”वफ़ाएं” हैं
तेरी जफ़ाएं, ”अदाएं”, मेरी ”ख़ताएं” हैं

महकती जाती ये जज़्बात से फ़िज़ाएं हैं
कोई कहीं मेरे अश’आर गुनगुनाएं हैं

वो दादी-नानी के किस्सों की गुम सदाएं हैं
परी कथाएं भी अब तो ”परी कथाएं” हैं

ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं

बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
मैं मानता हूं मेरी भी कई ख़ताएं है

मेरे ख़्यालों में करती हैं रक़्स ये शाहिद
तुम्हारी याद की जितनी भी अप्सराएं हैं

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24 Responses to शाहिद मिर्ज़ा शाहिद की ग़ज़ल

  1. बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
    मैं मानता हूं मेरी भी कई ख़ताएं है
    क्या कहूं? शाहिद साहब मौजूदा दौर के उन शायरों में से एक हैं, जो ज़मीन के करीब हैं, जिनकी शायरी में ज़िन्दगी के तमाम रंग सिमट जाते हैं.

    महकती जाती ये जज़्बात से फ़िज़ाएं हैं
    कोई कहीं मेरे अश’आर गुनगुनाएं हैं
    इस शेर के ज़रिये वे रोमानी हो जाते हैं, तो-
    अगले ही शेर में देश-दुनिया के प्रति उनकी चिन्ता खुल कर सामने आ जाती है-
    ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
    जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं
    इतनी सुन्दर गज़ल पढवाने के लिये ’ आखर-कलश’ की आभारी हूं.

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  2. अहा!! आनन्द आ गया..बहुत आभार पढ़वाने का.

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  3. शाहिद जी यह रचना पसंद आई। ग़ज़ल के पैमाने पर कसने वाले कसेंगे।
    इस टिप्‍पणी में फिर एक बात कहना चाहता हूं। किसी भी रचनाकार की रचना कम से कम एक हफ्ते तो आखर कलश पर रहने दें।

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  4. शहीद मिर्ज़ा साहब, बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति है | आपसे सलाम करता हूँ |
    हमें "आखर कलश" के लिएँ उत्तम रचनाएं ही चाहिएं | आपने देखा होगा कि सम्पादक मंडल के श्रीमान नरेन्द्र व्यास जी काफी मेहनत करते हैं | "आखर कलश" का नया रूप सभी पाठकों को मोहित करने वाला है | हम और भी सुधार करते रहेंगे | आपका सहयोग हमेशा बनाये रखें |
    - पंकज त्रिवेदी

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  5. वो दादी-नानी के किस्सों की गुम सदाएं हैं
    परी कथाएं भी अब तो ”परी कथाएं” हैं
    वाक़ई वो मासूमियत कहां खोती जा रही है ,क्या इस के ज़िम्मेदार हम भी नहीं हैं????

    ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
    जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं

    बहुत उम्दा अक्कासी है आज के हालात की सारे रिश्तों के इन्हेदाम की ज़िम्मेदार ये अना ही तो है

    बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
    मैं मानता हूं मेरी भी कई ख़ताएं है
    शिकायत और ऐतराफ़ दोनों का बेहद ख़ूबसूरत संगम
    बहुत ख़ूब!
    मुबारक हो

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  6. ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
    जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं

    मेरे ख़्यालों में करती हैं रक़्स ये शाहिद
    तुम्हारी याद की जितनी भी अप्सराएं हैं

    अब ऐसे हसीन बा-कमाल अशआरों पर क्या कहें...?? शाहिद साहब की शायरी की शान में बस अपना सर झुकाते हैं. ऐसे बेहतरीन को शायर को हमेशा पढ़ते रहने का जी करता है.
    उनका कलाम हम तक पहुँचाने के लिए आपका शुक्रिया

    नीरज

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  7. अजब वफ़ा के उसूलों से ये ”वफ़ाएं” हैं
    तेरी जफ़ाएं, ”अदाएं”, मेरी ”ख़ताएं” हैं

    Achchha sher hai.

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  8. बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
    मैं मानता हूं मेरी भी कई ख़ताएं है
    waah

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  9. आपको हमेशा ब्लॉग पर देखा पढ़ा है...
    जाने इधर कैसे आ गए भटकते हुए..


    अजब वफ़ा के उसूलों से ये वफ़ाएं हैं
    तेरी जफ़ाएं, ”अदाएं”, मेरी ”ख़ताएं” हैं..

    दिल पर चोट करता मतला...

    ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
    जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं

    बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
    मैं मानता हूं मेरी भी कई ख़ताएं है



    kamaal ke she'r hain huzoor...

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  10. अछि कविता है .. ..........
    http://oshotheone.blogspot.com/

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  11. ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
    जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं

    बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
    मैं मानता हूं मेरी भी कई ख़ताएं है

    बेहतर !! सुन्दर रचना !


    समय हों तो ज़रूर पढ़ें:
    पैसे से खलनायकी सफ़र कबाड़ का http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_26.html

    शहरोज़

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  12. बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
    मैं मानता हूं मेरी भी कई ख़ताएं है
    शाहिद जी, आपकी गज़ल पढी, जज़्बात पर हमेशा पढता हूं, आप बहुत सुन्दर लिखते हैं. बधाई.

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  13. आपकी गज़ल का यह शेर बहुत उम्दा है- ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
    जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं।
    कठिन शब्दों के अर्थ भी फुटनोट में दे दें तो और भी अच्छा रहे ।

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  14. कमाल किया है मिर्ज़ा साहब ने. उम्दा ग़ज़ल, हर शेर खुबसूरत.

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  15. बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
    मैं मानता हूं मेरी भी कई ख़ताएं है॥
    अपनी ख़ता मानने के चलन को शायरी ने ज़िन्दा रखा हुआ है, वरना यह तहजीब भी राजनीति और बाज़ार के घने जंगल में ग़ुम हो चुकी है। बहुत अच्छी ग़ज़ल है।
    पाठकों की दो बातों का समर्थन मैं भी करूँगा--पहली यह कि कठिन शब्दों के अर्थ यथासंभव फुटनोट में दिये जाएं और दूसरी यह कि कम से कम सात दिनों तक अन्य पोस्ट न डाली जाय।

    ReplyDelete
  16. शाहिद साहब के क्या कहने हैं ..... बहुत ही बेहतरीन गज़ाल कहते हैं ..... ज़माने के हालात बहुत ही प्रखर रूप पेश करते हैं ....

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  17. अजब वफ़ा के उसूलों से ये ”वफ़ाएं” हैं
    तेरी जफ़ाएं, ”अदाएं”, मेरी ”ख़ताएं” हैं

    बहुत ही सुंदर कलाम, वैसे शहीद जी से उम्मीद भी ज्यादा की ही रहती है ढेर सारी बधाई.

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  18. बहुत आभार पढ़वाने का.

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  19. ग़ज़ल पसंद करने के लिए सभी साहेबान का शुक्रिया...
    @ 'सहज साहित्य’ जी और बलराम जी अर्ज़ ये है कि हमारा प्रयास रहता है अश’आर में आम ज़बान के शब्दों का प्रयोग किया जाए...इस ग़ज़ल के एक शेर में अलबत्ता ’अना’ शब्द आया है, जिसका अर्थ अहंकार होता है
    @ आदरणीय नरेन्द्र व्यास जी से गुज़ारिश है कि अना* के सामने ये स्टार लगाकर नीचे अर्थ लिखने की मेहरबानी फ़रमाएं...शुक्रिया.

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  20. वो दादी-नानी के किस्सों की गुम सदाएं हैं
    परी कथाएं भी अब तो ”परी कथाएं” हैं

    behatareen gazal

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  21. अजब वफ़ा के उसूलों से ये ”वफ़ाएं” हैं
    तेरी जफ़ाएं, ”अदाएं”, मेरी ”ख़ताएं” हैं

    हम तो मत्ले पर ही फ़िदा हैं .....!!

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  22. शहीद मिर्ज़ा जी की ग़ज़ल पढ़वाने के लिए धन्यवाद! बहत ही सुन्दर और उम्दा ग़ज़ल है! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  23. ज़ेहन में कैसा ये जंगल उगा लिया लोगो
    जिधर भी देखिए, बस हर तरफ़ अनाएं हैं.... सुन्दर

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  24. बिगडते रिश्तों को तुम भी संभाल सकते थे
    मैं मानता हूं मेरी भी कई ख़ताएं है

    मेरे ख़्यालों में करती हैं रक़्स ये शाहिद
    तुम्हारी याद की जितनी भी अप्सराएं हैं
    वाह वाह ....क्या कहा जाए !!
    बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है ......इतनी खुबसूरत प्रस्तुति पर आभार .

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