नज़म
बड़ी खामोशी से पाला है, आशियाना हमने |
ग़म के सायों से लदे पेड़, झुके है आँगन में ||
हमारी फ़ितरत ही कहाँ, ज़माने से ख़फा होना |
अँगारे से खेलना, मुस्कुराना, अच्छा भी नहीं ||
घर तुम्हारे भी जल रहे हैं, देखो लोग सहमे हुएँ |
दिल की गहराई से दबी, टीस एक सुनाई देगी ||
हसीं आती है हमें, भरोसे की बात पर |
खंजर है तुम्हारे हाथ में, और गोली है पीठ में ||
अब गांधी नहीं रहे, जो अहिंसा की करें बात |
आज़ाद है हम कहते हैं, फिर भी है क्यूं गुलाम !!
-------------------------------------------------------------------
14 , अगस्त, 2010
"ॐ", गोकुलपार्क सोसायटी, 80 फूट रोड, सुरेंद्रनगर-363 002 गुजरात
आपने
ReplyDeleteबहुत उम्दा पोस्ट लगाई है।
लोकहित की बात उठाई है।
स्वतंत्रता दिवस की
हार्दिक बधाई है ॥
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
६३ सालो की पूरी स्थिति ये चंद पंक्तिया बयां कर देती है साथ ही साथ कुछ अनसुलझे सवाल भी छोड़ जाती है| सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये|
ReplyDeleteराष्ट्र-चिंतन का दर्पण है ये रचना...
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
jash-ne-azaadi ke moke par haqbyani karti hui nazm ke liye mubarakbad'pnkaj' ji jai hind
ReplyDelete