Search
“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
प्रवर्ग
"विविध रचनाएँ
(1)
अनुवाद
(3)
अमित पुरोहित की लघुकथा
(1)
अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य
(1)
आचार्य संजीव वर्मा ’सलिल’- वासंती दोहा गजल
(1)
आलेख
(11)
कथांचल
(1)
कविताएँ
(140)
कहानियाँ
(4)
क्षणिकाएँ
(2)
क्षणिकाएं
(1)
गजलें
(49)
गीत
(9)
टी. महादेव राव की गजलें
(1)
डा. अनिल चड्ढा की कविता
(1)
त्रिपदी
(1)
दीपावली विशेषांक
(1)
देवी नागरानी की गजलें
(1)
दोहे
(1)
नज़्म
(1)
नज्में
(2)
नन्दलाल भारती की कविताएँ
(1)
नव गीतिका
(1)
नवगीत
(1)
नाटक - सुनील गज्जाणी
(1)
पुरू मालव की रचनाएँ
(1)
पुस्तक समीक्षा
(2)
फादर्स-डे
(1)
बाल कविताएँ
(1)
बाल कहानियाँ
(1)
महादेवी वर्मा
(1)
महोत्सव
(2)
मातृ दिवस
(1)
यात्रा वृत्तांत
(1)
रश्मि प्रभा की कविता
(1)
लघु कथाएँ
(3)
लघुकथाएँ
(9)
विजय सिंह नाहटा की कविताएँ
(3)
विविध रचनाएँ
(6)
व्यंग्य
(4)
व्यंग्य - सूर्यकुमार पांडेय
(1)
संकलन
(1)
संजय जनागल की लघुकथाएँ
(3)
समसामयिक
(1)
समीक्षा- एक अवलोकन
(1)
संस्मरण - यशवन्त कोठारी
(1)
सीमा गुप्ता की कविताएँ
(3)
सुनील गज्जाणी की लघु कथाएँ
(4)
सुनील गज्जाणी की कविताएँ
(6)
सुलभ जायसवाल की कविता
(1)
हरीश बी. शर्मा की कविताएँ
(1)
हाइकू
(1)
हास-परिहास
(2)
हास्य-व्यंग्य कविताएँ
(1)
होली विशेषांक
(1)
ताज़ी प्रविष्टियाँ
लोकप्रिय कलम
-
संक्षिप्त परिचय नाम : डॉ. सुनील जोगी जन्म : १ जनवरी १९७१ को कानपुर में। शिक्षा : एम. ए., पी-एच. डी. हिंदी में। कार्यक्षेत्र : विभि...
-
आप सभी को कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ! श्री कृष्ण की कृपा से आप और आपका परिवार सभी सुखी हो, मंगलमय हों, ऐसी प्रभ...
-
नामः- श्रीमती साधना राय पिताः- स्वर्गीय श्री हरि गोविन्द राय (अध्यापक) माता:- श्रीमती प्रभा राय...
-
नाम : डॉ. कविता वाचक्नवी जन्म : 6 फरवरी, (अमृतसर) शिक्षा : एम.ए.-- हिंदी (भाषा एवं साहित्य), एम.फिल.--(स्वर्णपदक) पी.एच.डी. प...
-
रोज गढती हूं एक ख्वाब सहेजती हूं उसे श्रम से क्लांत हथेलियों के बीच आपके दिए अपमान के नश्तर अपने सीने में झेलती हूं सह जा...
-
परिचय सुधीर सक्सेना 'सुधि' की साहित्य लेखन में रुचि बचपन से ही रही। बारह वर्ष की आयु से ही इनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित ...
-
(1) जब कुरेदोगे उसे तुम, फिर हरा हो जाएगा ज़ख्म अपनों का दिया,मुमकिन नहीं भर पायेगा वक्त को पहचान कर जो शख्स चलता है नहीं वक्त ...
-
समीक्षा दिनेश कुमार माली जाने माने प्रकाशक " राज पाल एंड संज "द्वारा प्रकाशित पुस्तक " रेप तथा अन्य कहानियाँ "...
-
आपके समक्ष लगनशील और युवा लेखिका एकता नाहर की कुछ रचनाएँ प्रस्तुत हैं. इनकी खूबी है कि आप तकनीकी क्षेत्र में अध्ययनरत होने के उपरांत भी हिं...
-
संक्षिप्त परिचय नाम : दीपा जोशी जन्मतिथि : 7 जुलाई 1970 स्थान : नई दिल्ली शिक्षा : कला व शिक्षा स्नातक, क्रियेटिव राइटिंग में डिप्लोमा ...
हम साथ-साथ हैं
लेखा-जोखा
-
▼
2010
(216)
-
▼
August
(15)
- डॉ. विजय कुमार सुखवानी की चार गज़लें
- शाहिद मिर्ज़ा शाहिद की ग़ज़ल
- लोकेन्द्र सिंह कोट की पाँच कविताएँ
- जया केतकी का आलेख- रक्षा बंधन सामाजिक समरसता का अट...
- फ़ज़ल इमाम मल्लिक की दो कविताएँ
- मकेश कुमार सिन्हा की कविता- वो बचपन !
- देवमणि पांडेय के दो गीत
- अनामिका की तीन कविताएँ
- आस्वाद : राजवी फ़किरी का राजकवि - पंकज त...
- नज़्म - पंकज त्रिवेदी
- सुनील गज्जाणी की तीन लघु कविताएँ
- ममता किरण के तीन गीत
- संजय ग्रोवर की पाँच ग़ज़लें
- अमित कुलश्रेष्ठ की दो रचनाएँ
- सुलेखा पांडे की तीन कविताएँ
-
▼
August
(15)
मेरी पसन्द
-
हां, आज ही, जरूर आयें - विजय नरेश की स्मृति में आज कहानी पाठ कैफी आजमी सभागार में शाम 5.30 बजे जुटेंगे शहर के बुद्धिजीवी, लेखक और कलाकार विजय नरेश की स्मृति में कैफ़ी आज़मी ...
-
-
डेढ़ दिन की दिल्ली में तीन मुलाकातें - *दिल्ली जिनसे आबाद है :* कहने को दिल्ली में दस दिन रहा, पर दस मित्रों से भी मुलाकात नहीं हो सकी। शिक्षा के सरोकार संगोष्ठी में भी तमाम मित्र आए थे, पर...
-
‘खबर’ से ‘बयानबाज़ी’ में बदलती पत्रकारिता - मीडिया और खासतौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया से ‘खबर’ गायब हो गयी है और इसका स्थान ‘बयानबाज़ी’ ने ले लिया है और वह भी ज्यादातर बेफ़िजूल की बयानबाज़ी. नेता,अभिनेता...
-
दीवाली - *दीवाली * एक गंठड़ी मिली मिट्टी से भरी फटे -पुराने कपड़ो की कमरे की पंछेती पर पड़ी ! यादे उभरने लगी खादी का कुर्ता , बाबूजी का पर्याय बेलबूटे की साडी साडी ...
-
-
-
नए घरोंदों की नीव में- दो बिम्ब - *नतमस्तक हूं* ======== मैने नहीं चखा जेठ की दुपहरी में निराई करते उस व्यक्ति के माथे से रिसते पसीने को, मैं नहीं जानता पौष की खून जमा देने वाली बर...
-
-
थार में प्यास - जब लोग गा रहे थे पानी के गीत हम सपनों में देखते थे प्यास भर पानी। समुद्र था भी रेत का इतराया पानी देखता था चेहरों का या फिर चेहरों के पीछे छुपे पौरूष का ही ...
-
-
Advertisement
BThemes
Powered by Blogger.
सम्पादक मंडल
- Narendra Vyas
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
वाह सुनील जी, कमाल का लेखन है..
ReplyDeleteवो कहा है न...देखन में छोटे लगे....
बहुत बहुत शुभकामनाएं.
वाह गज़ाणी !
ReplyDeleteवाह गज़ाणी !
आं कवितावा में
खूब है
आणी-जाणी !
alag vimb, alag andaaj- kamaal ki lekhni
ReplyDeleteसुनील जी,
ReplyDeleteअभी
सर्दी भोत दूर है
कोट उतार देवो !
गर्मी लागती होसी !!
कोई और
फ़ोटू लगाओ आई.डी. में !
आवक्ष चित्र !
क्लोजप !
कमाल कि रचनाएँ है, बेहतरीन!
ReplyDeletesunil ji kafi dinon baad aapki rachnaayen padhi.. chintan ko prerit kar gai rachnaayen.. ye panktiya behand prabhavit kar gai...:
ReplyDelete"वो मंदिर के पथ की ओर हमेशा जाता है
मगर मूर्ती के दर्शन कभी नहीं करता
रुक जाता है परिसर में
भूखों को खाना खिलाने
वृद्धों की सेवा करने
असहायों की मदद करने
वो, इश्वर को प्रत्यक्ष देखना चाहता है!"
बहुत ही अच्छी है। पर है क्या? लघु कथा,अतिलघुकथा, कविता, व्यंग्य,क्षणिका ..। कितनी विधाएं शामिल है एक विधा में .जो जिस रूप में पढना चाहे। यही तो कमाल हसिल है आप को।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी है। पर है क्या? लघुकथा, अतिलघुकथा, कविता, व्यंग्य,क्षणिका..? कितनी विधाएं शामिल है एक विधा में। जो जिस रूप में पढना चाहे। ये कमाल भी बस आप को आता है।
ReplyDeleteबहुत उम्दा लघु कवितायें।
ReplyDeleteबधाई
सुनील भाई कविताओं का विषय बहुत तीखा है। पर मुझे लगता है थोड़ी मेहनत और संपादन की जरूरत है,जिससे कसाव पैदा हो। अभी कविताएं बिखरी बिखरी लगती हैं। भाई ओमपुरोहित ने इन कविताओं को फिर से लिखा है। पर मुझे नहीं लगता है कि इतने विस्तार की जरूरत है। उदाहरण के लिए आपकी आखिरी कविता अगर इस तरह हो तो ज्यादा प्रभाव छोड़ेगी-
ReplyDeleteवे
छूआछूत के पक्षधर हैं
अपने प्रवचन में कही ना कही
ऐसा प्रसंग अवश्य लाते हैं
मगर
प्रवचन के लिए
अछूत बस्ती से गुज़र कर ही
जाते हैं ।
सुनील भाई शायद आपको यह जानकारी भी होगी कि हरिजन शब्द का उपयोग अब कानूनन जुर्म है।
Dear Sunil ji..
ReplyDeletethis poetry is very simple and very rich with your vision so thanks for this poetry. i am happy i have read your this poetry from your blog , my best wishes and thanks if you have change the 2 poetry concept i like it.
keep it up you are going well.
yogendra kumar purohit
M.F.A.
BIKANER,INDIA
http://yogendra-art.blogspot.com
यह चकित करती लघु कविताएँ हैं, ठ जमीनी अंदाज में हैं भावावेग से भरी कविताएं। कविताएं पाठक के मन को छू लेती है और कवि की सामर्थ्य और कलात्मक शक्ति से परिचय कराती है। समकालीन जीवन और समाज पर कवि की दृष्टि पैनी है....तभी तो कहा है कि ......
ReplyDelete१. वो, इश्वर को प्रत्यक्ष देखना चाहता है!
२. मंदिर हरिजन बस्ती से गुज़र कर ही
आते हैं वो !
wah sunil sir, wah..............chha gaye sir!! bahut pyari rachna!
ReplyDeleteप्रिय सुनील,
ReplyDeleteकितना पैनापन है इन कविताओं में ! कहेने को तो बहुत कह सके मगर मन करता है इन कविताओं को अपने मन-ह्रदय के पिटारे में बंद कर दूं | कोइ शब्द नहीं |
अर्थपूर्ण कविताएँ.शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
सुंदर।
ReplyDelete"मूर्ती के दर्शन कभी नहीं करता
ReplyDeleteरुक जाता है परिसर में
भूखों को खाना खिलाने
वृद्धों की सेवा करने"
यथार्थ की गलियों से गुजरती आपकी क्षणिकाएँ बेहद सुंदर एवं मार्गदर्शी है . मन को छूकर जाती हुई रचनाएँ .
Sunil ji
ReplyDeleteBahut badhiya vichar prastut kiye
samaj ko disha di hai
bahut achchhe vichar hain Suneeljee. man prasann hua in chhotee rachanaon ke badepan se. ham sab isee tarah sochenge to usakaa asar to logon par padega, yahee inkee saarthakata hai. badhaaiyan.
ReplyDeleteपसंद आई तीनों कवितायें.
ReplyDeleteACHCHHEE KAVITAAON KE LIYE BADHAAEE AUR SHUBH
ReplyDeleteKAMNA.
मन को छूती रचनाएँ .
ReplyDeleteतीनों लघु कवितायें..संयत, स्पष्ट, भावपूर्ण और सदियों से अंधे समाज को धक्का देकर हिलाने वाली है..बधाई.
ReplyDeleteबहुत अच्छी और प्रभावकारी कविताएं हैं। सुनील जी को बधाई !
ReplyDeleteतीनों ही टुकडे..ऐसे मानो भीतर तक बींध कर सब टुकडे टुकडे कर देने वाले ..........बेहतरीन सोच का परिचायक
ReplyDelete@ वो, इश्वर को प्रत्यक्ष देखना चाहता है!
ReplyDelete@ मंदिर अछूत बस्ती से गुज़र कर ही
आते हैं वो !
वाह...वाह....क्या बात है .....!!
लाजवाब ......!!
gagar mein sagar! achhi lagi rachnayen.
ReplyDeletegahari soch...
ReplyDeleteaapki ye chhoti chhoti kavitayen mujhe achhi lagi.
ReplyDeleteHarmohinder Chahal
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुनील जी
ReplyDeleteअच्छी लघु कविताओंके लिए बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपके ब्लॉग पर आकर बहत अच्छा लगा! बहुत सुन्दर, शानदार, भावपूर्ण और लाजवाब लघु कवितायेँ लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDelete