संजय ग्रोवर की पाँच ग़ज़लें

रचनाकार परिचय
नामः       संजय ग्रोवर                                   
शिक्षाः      बी.कॉम. 
जन्म तिथिः   05-04-1963 
सम्प्रतिः     स्वतंत्र-लेखन
रुचियां :     पढना,  संगीत सुनना (लाइट एवं क्लासिकल), कार्टूनिन्ग,फैशन-डिज़ाइनिन्ग, कॉपी-राइटिंग....
प्रकाशनः
जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा, दै.हिन्दुस्तान, अमर-उजाला, दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी, दैनिक जागरण, जेवीजी टाइम्स, दैनिक आज, राजस्थान-पत्रिका, अक्षर-भारत, हंस, कादम्बिनी, अन्यथा, मुक्ता, चंपक, बालहंस, कथादेश ,सण्डे मेल वार्षिकी, समयांतर, अक्षरा आदि कई छोटे-बडे़  पत्र-पत्रिकाओं व (अनुभूति, अभिव्यक्ति, वेबदुनिया, शब्दांजलि, कलायन, साहित्यकुंज, रचनाकार, हिन्दी-नेस्ट, देशकाल, मोहल्लालाइव आदि) वेबसाइटस्, फ़ीचर एजेंसिंयों एवं आकाशवाणी/दूरदर्शन पर व्यंग्य-लेख, ग़ज़लें, कविताएं,  बालगीत, कार्टून व नारी-मुक्ति पर लेख प्रकाशित/प्रसारित
गजल-संग्रह ‘खुदाओं के शहर में आदमी’ 
एवं व्यंग्य-संग्रह ‘मरा हुआ लेखक सवा लाख का’ प्रकाशित.
विशेषः-तकरीबन 15-16 की आयु में हस्तलिखित सचित्र बाल पत्रिका ‘निर्माण’ का संपादन व चित्रांकन
***********************************************************************************
 
1.
अपनी तरह का जब भी उन्हें माफ़िया मिला
बोले उछलके देखो कैसा काफ़िया मिला

फ़िर नस्ल-वर्ण-दल्ले हैं इंसान पे काबिज़
यूँ जंगली शहर में मुझे हाशिया मिला

मुझतक कब उनके शहर में आती थी ढंग से डाक
यां ख़बर तक न मिल सकी, वां डाकिया मिला

जब मेरे जामे-मय में मिलाया सभी ने ज़ह्र
तो तू भी पीछे क्यों रहे, आ साक़िया, मिला

मुझको जहाँ पे सच दिखा, हिम्मत दिखी, ग़ज़ब-
उनको वहीं पे फ़ोबिया.....सिज़ोफ्रीनिया मिला

उनको जहाँ पे सभ्यता औ’ संस्कृति दिखी
मुझको वहीं पैरेनॉइका...सीज़ोफ्रीनिया मिला

2.
जबसे धरती के पास रहता है
चाँद अकसर उदास रहता है

आओ झुग्गी से ये पता पूछें
किस गली में विकास रहता है

साफ़गोई से डरती भाषा में         
अलंकार औ’ समास रहता है

जबकि कहने को कुछ नहीं रहता
क्यूं ख़लिश है कि ख़ास रहता है

छोड़ पाया नहीं ‘वरन’ वरना
कहने को वो बिन्दास रहता है

3.
‘मैं हूँ’ कि ‘मैं हूँ’, ‘मैं हूँ’, ‘मैं हूँ आज का कबीर’ 
पहले तो सुनके रो पड़े फ़िर हंस दिए कबीर

कांधे को छूके जब कहा ‘कुर्बां मेरे फ़कीर’
मैं उसके घरके सामने उस दिन हुआ अमीर

बदलाव, बग़ावत या तरक्क़ी की ये तस्वीर
नदियां सुनीं थीं दूध की, यां उठ रहा खमीर

असदुल्ला खां ने एक वज़ीफा क्या ले लिया
मौकापरस्तों को तो जैसे मिल गयी नज़ीर

4.

हक़ीकत में नहीं कुछ भी दिखा है
क़िताबों में मगर सब कुछ लिखा है

मुझे समझा के वो मज़हब का मतलब-
डर औ’ लालच में आए दिन बिका है  

जो रात और दिन पढ़ा करते हो पोथे
कभी उनका असर ख़ुदपर दिखा है !   

जब हाथों से नहीं कुछ कर सका वो
तो बोला ये ही क़िस्मत में लिखा है     

असल में रीढ़ ही उसकी नहीं है
वो सदियों से इसी फन पे टिका है

5.

समंदर सी आंखें उधर तौबा तौबा
इधर डूब जाने का डर तौबा तौबा

न कर ये, न कर वो, न कर तौबा तौबा    
यूँ गुज़री है सारी उमर, तौबा तौबा

वो नज़रें  बचाकर नज़र से हैं पीते
लगे ना किसीकी नज़र, तौबा तौबा

झुके थे वो जितना, हुआ नाम उतना
था घुटनों में उनका हुनर, तौबा तौबा

मैं टेढ़ी-सी दुनिया में सीधा खड़ा हूँ 
गो दुखने लगी है कमर, तौबा तौबा

यूँ ज़ालिम ने सारे, चुराए हैं नारे
कि करने लगा है ग़दर तौबा तौबा
 ***
-संजय ग्रोवर
147-ए,पॉकेट-ए,
दिलशाद गार्डन,
दिल्ली-110095
संपर्क:
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 फोन: 9910344787,011-43029750

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8 Responses to संजय ग्रोवर की पाँच ग़ज़लें

  1. बहुत सुन्दर गजलें प्रेषित की हैं धन्यवाद।

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  2. Shabad apne kadvahat bhare andaaz main bhi khoobsurat lagty hain...Sanjay ji ki Gazalen Sach ko apne hi andaaz main dikhati hain...Bahut achhi hain sabhi gazalen...!!!

    जबसे धरती के पास रहता है
    चाँद अकसर उदास रहता है
    Sahi hi to kaha hai...!!!

    ReplyDelete
  3. सभी रचनाएं शानदार लगीं
    बधाई.

    ReplyDelete
  4. achchee gazalen. kathy ke lihaj se magar angrejee shabdon ke prayog se ridam par asar dikhata hai. abhee in shabdon kee itani sweekriti naheen hai ki inhen geet ya gazal me daalaa ja sake.

    ReplyDelete
  5. झको जहाँ पे सच दिखा, हिम्मत दिखी, ग़ज़ब-
    उनको वहीं पे फ़ोबिया.....सिज़ोफ्रीनिया मिला
    _________

    जबसे धरती के पास रहता है
    चाँद अकसर उदास रहता है


    बेहतरीन ग़ज़लें

    ReplyDelete
  6. संजय ग्रोवर जी के ख़यालात प्रभावित करते हैं मगर ग़ज़ल के अशआर कहीं कहीं अपनी पटरी से उतर जाते हैं. जरा सी मेहनत से यह कमी दूर हो सकती है. आशा है मेरी बात को संजय जी अन्यथा न लेंगे. क्योंकि यह बात मैं सह्रदयता से कह रहा हूँ. वरना वाह वाह कर के आगे बढ़ जाना ज़ियादा आसान था.

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