सुलेखा पांडे की तीन कविताएँ

रचनाकार परिचय 
नाम: श्रीमती सुलेखा पांडे 
शिक्षा: एम. . फिलोसफी और साइकोलोजी (बॉम्बे युनिवेर्सिटी) 
डिप्लोमा: ब्रिटिश काउंसिल (अंग्रेजी अध्यापन) 
आप MNCs और विभिन्न संस्थानों के लिए PERSONALITY DEVELOPMENT  AND  VOICE ACCENT TRAINING का आयोजन भी करती हैं.
आप हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी, मराठी, उर्दू, भोजपुरी और गुजरती भाषा में भी प्रवीण हैं.
*********************************************************************************
अजनबीपन

दर्पण के पीछे है
एक और दर्पण
मन के भीतर है
एक और मन

शब्दों के जाल में
अनजाने भाव है
ऊपर से गहराई
नापते हैं हम

रात की सियाही में
दर्द के सैलाब पर
अंधेरे की चादर
तानते हैं हम

शूलों के दर्द में
फूल जो महका
उसकी ही रुह से
अनजान है हम

अपनी ही काया के
भीतर जो छाया है
उसकी सच्चाई कब
पहचानते हैं हम

दर्पण के पीछे..
मन के भीतर
***
मृत्युंजय

यह सच होगा कि
शिव ने किया था
विषपान
क्या आज भी
हम सभी
अपने कंठ के नीचे
नही उतारते
हलाहल
रोज रोज ?
फिर क्यों नहीं
बन जाते हम भी
मृत्युंजय
***
उम्र

उम्र
हथेली में थमा
रेशमी धागों का
गुच्छा...
जिसे जितना
थामने का प्रयास करो
वह उतना ही
फिसलती जाती है...
*******

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13 Responses to सुलेखा पांडे की तीन कविताएँ

  1. roj dekhata hai aaina'.kya bolta hai aaina,tumne socha hai kabhi.kyasoch ta hai aaina,

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छी कविताएं पढ़ने को मिली हैं..
    तीनों रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं...
    अजनबीपन कुछ खास बन गई है.
    लेखिका के साथ-साथ....
    नरेन्द्र जी और सुनील जी...
    आप भी बधाई के पात्र हैं....

    ReplyDelete
  3. Shekhawat ji ,, Irshad ji and Shahid ji ,,
    my heartfelt thanks to you..........
    Sneh banaye rakhein...
    Sadhanyavad............
    Sulekha..

    ReplyDelete
  4. संक्षिप्त और सारगर्भित कविताएं.अच्छी लगीं.

    ReplyDelete
  5. शब्‍दों की मितव्‍ययिता अच्‍छी लगी।

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर रचनाएँ, बेहद प्रभावशाली!

    ReplyDelete
  7. Jeevan darshan ko janne ki utkantha hi in Rachnayeon ki khoobsurti hai, Badhai, Sulekha Ji,

    ReplyDelete
  8. तीनों ही रचनाएँ एक दर्शन समेटे हैं अपने आप में, बढ़िया.

    ReplyDelete
  9. सुलेखा बहत बहत बधाई! बहत अच्छी सुन्दर रचनाएँ आपके मन को प्रतिबिम्बित करती हुईं...एक रचनाकार के पास अनिवार्यतः अपना एक जीवन दर्शन होना चाहिए इत्ती सी उम्र में इस जीवन दर्शन को पा लेना सच में बड़ी उपलब्धी है..

    ReplyDelete
  10. सुलेखा जी - पहली कविता के लिए -

    खुद अक्स उलट जाये तो दोष है मेरा
    मैं वक्त का आईना हूँ सच बोल रहा हूँ

    और दूसरी कविता के लिए-

    मरने से पहले मरते सौ बार हम जहाँ में
    चाहत बिना भी सच का पड़ता गला दबाना

    बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  11. Dear friends,,
    PL accept my humblest THANK YOU for your overwhelmingly kind comments , encouragement and solidarity... I can't be grateful enough of RES. NARENDRA JI for giving me the opportunity...
    A BIG THANK YOU............
    SULEKHA PANDE..

    ReplyDelete
  12. sulekha ji bahut badhai .bahut hi achhi kavitaye hai .aap bahut achha lokhati hai

    ReplyDelete

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