शिक्षा: बी.ए. (हिन्दी- ऑनर्स), एम.ए. (हिन्दी), बी.एड., पी.एच.डी. (हिन्दी linguistics )
प्रकाशन: "साहित्यकुञ्ज","अनुभूति",और"
सम्प्रति: होशियारपुर (पंजाब) कॉलेज में लेक्चरार
सम्पर्क: drpriyasaini@gmail.com
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शानदार पोस्ट
ReplyDeleteशानदार पोस्ट
ReplyDeleteमन तो आवारा सा पंछी दूर तक भटका किया,
ReplyDeleteइसमें क्या क्या चल रहा है, आज तुमसे कह दिया।
अतृप्ति का भाव लिये दोनों कविताओं में सशक्त अभिव्यक्ति है।
bahut sunder rahnaayen ! prem me bhigi hui!
ReplyDeleteSEEDE- SAADE SHABDON MEIN SEEDE -SAADHE BHAAV
ReplyDeleteACHCHHE LAGE HAIN.BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN.
अति सुन्दर ......
ReplyDeleteसद्भावी -डंडा लखनवी
पहली कविता:
ReplyDeleteचलो आज फिर से इन्हें
मुक्त करें...!
फिर नई कहानी
की तलाश में
मन आकाश से
युक्त करें....!
स्वर्गानन्द समर्थित मौन को शाब्दिक होजाने का निहोरा करती अनुभूतियाँ अप्रतीम व्याकुलता के साथ नवीन विवेचनाओं की उन्मुक्त खोज में हैं. इस सार्थक किन्तु गूढ़ प्रक्रिया को शब्द देने हेतु कवयित्री को मेरा हार्दिक अभिनन्दन..
दूसरी कविता:
अनंत काल की यायावरी को इतनी प्रतिष्ठा? कैसे कहें जीवन का लक्ष्य अनंत मौन है.. उन्मुक्तता है.. मोक्ष है..? जीवन है तभी मोक्ष है. इस साहसी अभिव्यक्ति को सादर स्वीकृति.
इतनी गूढ़ मनोदशाओं को रचनाबद्ध करने के क्रम में सहज शब्दों का प्रयोग. धन्यवाद..
बहुत सुन्दर कविताएँ हैं!
ReplyDeleteआपकी रचना अच्छी लगी. आपके गीत को पड़कर मुझे देश के प्रख्यात कवी रामावतार त्यागी की पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं.
ReplyDeleteहम ऐसे बंजारे
जो आंसू की खातिर धोते अंगारे
मैंने भी लिखा है
हम गीत प्यार के गाते हैं
हम क्रांति बिगुल बजाते हैं
परिवर्तन के अग्रदूत हम
पानी में आग लगते हैं.
सुंदर गीत के लिए बधाई.
रचना अच्छी लगी, कवयित्री को हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteसुन्दर और सहज कविताएं !
ReplyDeleteपहली कविता:
ReplyDeleteचलो आज फिर से इन्हें
मुक्त करें...!
फिर नई कहानी
की तलाश में
मन आकाश से
युक्त करें....!!!!!!
Priya jee..behadd sunder aur guuud rachna. badhai sweekar karen.
Manyavar,
ReplyDeleteMain sabhi mitron ko Tahe dil se Dhanyavaad dena chahti hoon...jinhon ne mere bhavo, shabdon ko saraha, maan diya...!!! Bahut Bahut Dhanyavaad!!!
Vaisy sab se pahle Shukriya ke haqdaar to Narender ji Hain...!!!
Sangeeta ji,
ReplyDeleteDhanyavaad !!!
प्रिया जी आपकी दोनों कविताएँ अत्यंत प्रभावशाली हैं.....
ReplyDeleteकिसी और गहराई में...
बंद गुफा से निकल कर...
आकाश की ऊंचाई में...
अपना मन तो टटोलो..
इन पंक्तियों में अनुग्रह बहुत सार्थक रूप से परिलक्षित होता है....
सुन्दर रचनाओं के लिए आभार
bahut sundar rachnaye hai....!!
ReplyDeleteदोनों ही कविताएं मन के एहसासों को झिन्झूरती हुई.
ReplyDeleteदोनों ही रचनाएँ मौलिक और विलक्षण हैं...मेरी बधाई स्वीकार करें...
ReplyDeleteनीरज
bahut hi sunder kavita hain
ReplyDeleteyeh aap ki vilakshan prathiba ka darpan hain
aap ki kitab mein prakashit kavitayen bhi bahut anupam lagi.
sader dhanyavaad sahit naman
Aap sab sudhi jano ka tahe dil se Dhanyavaad !!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद
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