3) नेट पर सेतु साहित्य ब्लाग स्पाट.काम तथा हिन्द-युग्म ब्लाग स्पाट में रचनायें प्रकाशित व पुरस्कृत। 4) नेट पर 'हरकीरत हकी़र ब्लाग स्पाट.काम' नामक ब्लाग। विशेष : आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से काव्य- पाठ।
औरत ......
हक़ तो जीने का
मुझे भी उतना ही था
बता फिर क्यूँ क़त्ल होती रहीं
मेरे हिस्से की ख्वाहिशें ...?
रब्बा ....!
तेरे फैंसले बड़े खुदसर निकले .....!!
भंवर ......
ज़िन्दगी चारों ओर
पानी से घिरी है ...
जिसके दोनों किनारे
कहीं खो से गए हैं
मैं पतवार लिखती हूँ
'वो' भंवर लिख देता है .....!!
तुम ही कहो .....
जब भी जोडती हूँ
तुम्हारे उछाले अल्फ़ाज़
मुहब्बतों की आड़ी-तिरछी
लकीरें सी खिंच जाती हैं
तभी वादियों से आती है रांझे की आवाज़ ....
मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
मैं घबरा कर मिटा देती हूँ
वो सारी लकीरें ....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं कैसे लिखूं
तुम्हारे नाम की नज़्म .....!!
सुर्ख ख्याल ......
अय मोहब्बत...!
आ अपने गीतों का
चुम्बन रख दे मेरी
नज्मों की पलकों पर
शायद कोई सुर्ख ख्याल
उतर आये उसकी....
आखिरी शाम ....
कुछ इस कदर अँधेरे
पैर पसारे बैठे हैं
के मैं लिख ही नहीं पाई
दिल की तख्ती पर
तेरा नाम ....
उम्मीदें भी अब थकने सी लगी हैं
आ...इस टूटते तारे से मांग लें
एक साथ ज़िन्दगी की
आखिरी शाम .....!!
भावनाओं की अभिव्यक्ति में हरकीरत जी हर रचना के माध्यम से अपना प्रभाव छोड़ती हैं...
ReplyDeleteसभी नज़्में दिल को छू गईं.
आपकी कवितायें हमेशा ही गंभीर होती हैं! विमर्श के लिए प्रेरित करती हैं और उसी क्रम में ये छोटी कवितायें हैं.. जिंदगी की विडंबना को कितनी सहजता से लिख दिया आपने..
ReplyDelete"मैं पतवार लिखती हूँ
'वो' भंवर लिख देता है .....!!"
हर कविता गहरी बात लिए ! बधाई
सभी एक से बढ़ कर एक बहुत पसंद आई सभी शुक्रिया इनको पढवाने के लिए
ReplyDeleteजब भी जोडती हूँ
ReplyDeleteतुम्हारे उछाले अल्फ़ाज़
मुहब्बतों की आड़ी-तिरछी
लकीरें सी खिंच जाती हैं
तभी वादियों से आती है रांझे की आवाज़ ....
मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
मैं घबरा कर मिटा देती हूँ
वो सारी लकीरें ....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं कैसे लिखूं
तुम्हारे नाम की नज़्म .....!!
वाह ,
क्या तारीफ़ करूं मैं ||
हीर जी , तो निशब्द ही कर देती हैं ..
Harkeerat jee ki paanchon chhotee kavitayen bahut
ReplyDeleteachchhee lagee hain.Unkee chhotee kavitaaon mein
bhee badee baat nazar aayee hai.Badhaaee.
Harkeerat ji'
ReplyDeleteNazmen padkar aisa ahasas hua ki kahin main Amrita Preetam ko to nahin pad gayaa. Dheron hardik badhaiyan. Bhai Narendra vyas ko bhi is sunder prastuti ke liye badhai.Purusottam ji ki ghazalon ki comments par galati se 'Narendra' ki jagah 'Rajendra' likh gaya tha use bhi kripaya sudhar len. Dhanyawaad.
Harkeerat ji,
ReplyDeleteNazmen padkar aisa ahasaas hua ki kahin main Amrita Preetam ko to nahin padh raha. Itni subder nazmon ke liye dheron hardik badhaiya. Bhai Narendra ko bhi is sunder prastuti ke liye badhai.
ज़िन्दगी चारों ओर
ReplyDeleteपानी से घिरी है ...
जिसके दोनों किनारे
कहीं खो से गए हैं
मैं पतवार लिखती हूँ
'वो' भंवर लिख देता है .....!!
बेहतरीन पंक्तियाँ
मैं पतवार लिखती हूँ
ReplyDelete'वो' भंवर लिख देता है...क्या खूब हरकीरत जी .....अच्छी नज़्में पढ़ने को मिल गईं,और क्या चाहिए..शुभकामनाएं
हरकीरत जी की नज़्में दिल को छू जाती हैं
ReplyDeleteशानदार्
हरकीरत की कलम को सौ-सौ बार सलाम.
ReplyDeleteजो दिल को छू जाये वह देती रहे कलाम..
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
बला की खूबसूरती लिये पॉंच नज़्मों पर एक शेर:
ReplyDeleteऔरत भंवर है सुर्ख खयालों का, तुम कहो
इसमें कटे तो कैसे कटे शाम आखिरी।
नरेन्द्र व्यास जी, आपने हरकीरत हीर की बेहद हृदयस्पर्शी कविताएं लगाई हैं। "इक दर्द" की हरकीरत 'हकीर' अब वाकई 'हीर' बन गई है, उसकी कविताओं में दर्द और संवेदना की जो गहरी अभिव्यक्ति मिलती है, वह नि:संदेह समकालीन कविता में विशेषकर स्त्री कविता में बहुत कम ही दिखाई देती है। हरकीरत हीर जी इसी तरह कलम और शब्द से रिश्ता बनाए रखें और अपने दर्द के साथ साथ दुनिया के उन सब लोगों के दर्द को आप वाणी देती रहें, जो चाह कर भी अपने दर्द का इज़हार नहीं कर पाते।
ReplyDeleteजब आपकी कलम चलती है तो सब कुछ मौन हो जाता है. मेरी तरह!!!!!!!
ReplyDeleteहरकीरत जी को पढना एक विलक्षण अनुभूति होती है !
ReplyDeleteरूखा बंजर कल तलक था जो रेगिस्तान !
ReplyDeleteहरकीरत की क़लम से आज है नख़लिस्तान !!
पधारो म्हांरै देश हरकीरत हीरजी ,
आपकी नज़्मों से लेखनी धन्य हुई ,आखर कलश धन्य हुआ , मुझ जैसे अदब-ओ-फ़न के मुरीद धन्य हुए ।
क्या अंदाज़-ए-सुख़न है…
मैं पतवार लिखती हूँ
'वो' भंवर लिख देता है .....!!
मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
… … …
मैं कैसे लिखूं
तुम्हारे नाम की नज़्म .....!!
आ...इस टूटते तारे से मांग लें
एक साथ ज़िंदगी की
आख़िरी शाम .....!!
दुआ के अलावा कुछ नहीं …
हां , नरेन्द्रजी को ज़रूर दे सकता हूं बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
रूखा बंजर कल तलक था जो रेगिस्तान !
ReplyDeleteहरकीरत की क़लम से आज है नख़लिस्तान !!
पधारो म्हांरै देश
हरकीरत हीरजी ,
आपकी नज़्मों से लेखनी धन्य हुई ,आखर कलश धन्य हुआ , मुझ जैसे अदब-ओ-फ़न के मुरीद धन्य हुए ।
क्या अंदाज़-ए-सुख़न है…
मैं पतवार लिखती हूँ
'वो' भंवर लिख देता है .....!!
मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
… … …
मैं कैसे लिखूं
तुम्हारे नाम की नज़्म .....!!
आ...इस टूटते तारे से मांग लें
एक साथ ज़िंदगी की
आख़िरी शाम .....!!
दुआ के अलावा कुछ नहीं …
हां , नरेन्द्रजी को ज़रूर दे सकता हूं बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
आप सब की टिप्पणियों पर नम आँखों में शुक्रिया है ......!!
ReplyDeleteतिलक जी के इस शे'र पे दाद देती हूँ......
औरत भंवर है सुर्ख खयालों का, तुम कहो
इसमें कटे तो कैसे कटे शाम आखिरी....
जब भी जोडती हूँ
ReplyDeleteतुम्हारे उछाले अल्फ़ाज़
मुहब्बतों की आड़ी-तिरछी
लकीरें सी खिंच जाती हैं
तभी वादियों से आती है रांझे की आवाज़ ....
मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
मैं घबरा कर मिटा देती हूँ
वो सारी लकीरें ....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं कैसे लिखूं
तुम्हारे नाम की नज़्म ....
aur main kya kahun ab ....
behtareen...bemisaal rachnaaen..
ReplyDeleteharkeerat ji..aapka abhaar..
narendra ji...dhanyawad..
gahantaa liye in rachnaon men apne sang bahaa le jaane kee kshmta hai.
ReplyDelete"मैं पतवार लिखती हूँ
'वो' भंवर लिख देता है '-peeda bhee hai aur akrosh bhee !
harkeerat jee ka dhanyavaad,itnee shreshth rachnaon ke liye.
--ashok lav
हरकीरत जी की नज़्में ! उफ़ ! क्या कहें, शब्दों में इनकी तारीफ़ करना मुश्किल है!
ReplyDeleteहरकीरत जी
ReplyDeleteआप गजब लिखती हैं
मासूम चेहरे में छिपी
दर्द की तस्वीर दिखती हैं !
नज्म नहीं
अंगार हैं
जो शब्दों की चादर
औढ निकले हैं
दर-ऐ-दिल से आपके !
....फ़िर आह....और.....वाह !
harkirat sahiba bahtarin nazmo ke liye mubarak
ReplyDeleteहरकीरत जी आपकी नज्मे बेहद उमदा लगी बहुत ही सुंदर और नाजुक ख्याल है...
ReplyDeleteआ अपने गीतों का
चुम्बन रख दे मेरी
नज्मों की पलकों पर
शायद कोई सुर्ख ख्याल
उतर आये उसकी....
जर्द आँखों में