हरकीरत हक़ीर की पाँच नज़्मे

रचनाकार परिचय

नाम: हरकीरत 'हक़ीर'
जन्म स्थान: लोंगसवाल(असम)

कृतत्व:
1) हिन्दी तथा पंजाबी में काव्य, आलेख, कहानियाँ, स्तंभ आदि।
2) हंस, वर्तमान साहित्य, पर्वत- राग , कथा शिखर सरिता, मुक्ता,पदेश जन-आवाज़, हम साथ साथ हैं, कर्म निष्ठा आदि में रचनाएं प्रकाशित । 
3) नेट पर सेतु साहित्य ब्लाग स्पाट.काम तथा हिन्द-युग्म ब्लाग स्पाट में रचनायें प्रकाशित व पुरस्कृत। 4) नेट पर 'हरकीरत हकी़र ब्लाग स्पाट.काम' नामक ब्लाग। विशेष : आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से काव्य- पाठ। 
विविध:
 ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद (.प्र.) द्वारा सम्मान पत्र। पुष्पगंधा प्रकाशन कवर्धा (...) द्वारा श्री हरिठाकुर स्मृति सम्मान। राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा 'भारती भूषण' सम्मान।
संपर्क : 18, ईस्ट लेन, सुन्दरपुर,हाउस न. 5, गुवाहाटी-5 दूरभाष : 9864171300 
**********************************************************************************

()

औरत ......

हक़ तो जीने का
मुझे भी उतना ही था
बता फिर क्यूँ क़त्ल होती रहीं
मेरे हिस्से की ख्वाहिशें ...?
रब्बा ....!
तेरे फैंसले बड़े खुदसर निकले .....!!
***
()
भंवर ......

ज़िन्दगी  चारों ओर
पानी से घिरी  है ...
 जिसके दोनों किनारे
कहीं  खो से गए हैं
मैं पतवार लिखती हूँ
'वो' भंवर लिख देता है .....!!
***
()

तुम ही कहो .....

जब भी जोडती हूँ
तुम्हारे उछाले अल्फ़ाज़
मुहब्बतों की आड़ी-तिरछी
लकीरें सी खिंच  जाती हैं
तभी वादियों से आती है रांझे की आवाज़ ....
मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
मैं घबरा कर मिटा देती हूँ
वो सारी लकीरें ....
ऐसे में तुम ही कहो
मैं कैसे लिखूं
तुम्हारे नाम की  नज़्म .....!!
***
()

सुर्ख ख्याल ......
 

अय मोहब्बत...!
अपने गीतों का
चुम्बन रख दे मेरी
नज्मों की पलकों पर
शायद कोई सुर्ख ख्याल
उतर आये उसकी....
जर्द आँखों में ......!! 
***
()

आखिरी शाम ....

कुछ इस कदर अँधेरे
पैर पसारे बैठे हैं
के मैं लिख ही नहीं पाई
दिल की तख्ती पर
तेरा नाम ....
उम्मीदें भी अब थकने सी  लगी हैं
...इस टूटते तारे से मांग लें
एक साथ ज़िन्दगी की
आखिरी शाम .....!!
*******

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25 Responses to हरकीरत हक़ीर की पाँच नज़्मे

  1. भावनाओं की अभिव्यक्ति में हरकीरत जी हर रचना के माध्यम से अपना प्रभाव छोड़ती हैं...
    सभी नज़्में दिल को छू गईं.

    ReplyDelete
  2. आपकी कवितायें हमेशा ही गंभीर होती हैं! विमर्श के लिए प्रेरित करती हैं और उसी क्रम में ये छोटी कवितायें हैं.. जिंदगी की विडंबना को कितनी सहजता से लिख दिया आपने..
    "मैं पतवार लिखती हूँ
    'वो' भंवर लिख देता है .....!!"
    हर कविता गहरी बात लिए ! बधाई

    ReplyDelete
  3. सभी एक से बढ़ कर एक बहुत पसंद आई सभी शुक्रिया इनको पढवाने के लिए

    ReplyDelete
  4. जब भी जोडती हूँ
    तुम्हारे उछाले अल्फ़ाज़
    मुहब्बतों की आड़ी-तिरछी
    लकीरें सी खिंच जाती हैं
    तभी वादियों से आती है रांझे की आवाज़ ....
    मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
    मैं घबरा कर मिटा देती हूँ
    वो सारी लकीरें ....
    ऐसे में तुम ही कहो
    मैं कैसे लिखूं
    तुम्हारे नाम की नज़्म .....!!

    वाह ,
    क्या तारीफ़ करूं मैं ||
    हीर जी , तो निशब्द ही कर देती हैं ..

    ReplyDelete
  5. Harkeerat jee ki paanchon chhotee kavitayen bahut
    achchhee lagee hain.Unkee chhotee kavitaaon mein
    bhee badee baat nazar aayee hai.Badhaaee.

    ReplyDelete
  6. Harkeerat ji'
    Nazmen padkar aisa ahasas hua ki kahin main Amrita Preetam ko to nahin pad gayaa. Dheron hardik badhaiyan. Bhai Narendra vyas ko bhi is sunder prastuti ke liye badhai.Purusottam ji ki ghazalon ki comments par galati se 'Narendra' ki jagah 'Rajendra' likh gaya tha use bhi kripaya sudhar len. Dhanyawaad.

    ReplyDelete
  7. Harkeerat ji,
    Nazmen padkar aisa ahasaas hua ki kahin main Amrita Preetam ko to nahin padh raha. Itni subder nazmon ke liye dheron hardik badhaiya. Bhai Narendra ko bhi is sunder prastuti ke liye badhai.

    ReplyDelete
  8. ज़िन्दगी चारों ओर
    पानी से घिरी है ...
    जिसके दोनों किनारे
    कहीं खो से गए हैं
    मैं पतवार लिखती हूँ
    'वो' भंवर लिख देता है .....!!

    बेहतरीन पंक्तियाँ

    ReplyDelete
  9. मैं पतवार लिखती हूँ
    'वो' भंवर लिख देता है...क्या खूब हरकीरत जी .....अच्छी नज़्में पढ़ने को मिल गईं,और क्या चाहिए..शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  10. हरकीरत जी की नज़्में दिल को छू जाती हैं
    शानदार्

    ReplyDelete
  11. हरकीरत की कलम को सौ-सौ बार सलाम.
    जो दिल को छू जाये वह देती रहे कलाम..
    Acharya Sanjiv Salil

    http://divyanarmada.blogspot.com

    ReplyDelete
  12. बला की खूबसूरती लिये पॉंच नज्‍़मों पर एक शेर:
    औरत भंवर है सुर्ख खयालों का, तुम कहो
    इसमें कटे तो कैसे कटे शाम आखिरी।

    ReplyDelete
  13. नरेन्द्र व्यास जी, आपने हरकीरत हीर की बेहद हृदयस्पर्शी कविताएं लगाई हैं। "इक दर्द" की हरकीरत 'हकीर' अब वाकई 'हीर' बन गई है, उसकी कविताओं में दर्द और संवेदना की जो गहरी अभिव्यक्ति मिलती है, वह नि:संदेह समकालीन कविता में विशेषकर स्त्री कविता में बहुत कम ही दिखाई देती है। हरकीरत हीर जी इसी तरह कलम और शब्द से रिश्ता बनाए रखें और अपने दर्द के साथ साथ दुनिया के उन सब लोगों के दर्द को आप वाणी देती रहें, जो चाह कर भी अपने दर्द का इज़हार नहीं कर पाते।

    ReplyDelete
  14. जब आपकी कलम चलती है तो सब कुछ मौन हो जाता है. मेरी तरह!!!!!!!

    ReplyDelete
  15. हरकीरत जी को पढना एक विलक्षण अनुभूति होती है !

    ReplyDelete
  16. रूखा बंजर कल तलक था जो रेगिस्तान !
    हरकीरत की क़लम से आज है नख़लिस्तान !!


    पधारो म्हांरै देश हरकीरत हीरजी ,
    आपकी नज़्मों से लेखनी धन्य हुई ,आखर कलश धन्य हुआ , मुझ जैसे अदब-ओ-फ़न के मुरीद धन्य हुए ।


    क्या अंदाज़-ए-सुख़न है…
    मैं पतवार लिखती हूँ
    'वो' भंवर लिख देता है .....!!


    मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
    … … …
    मैं कैसे लिखूं
    तुम्हारे नाम की नज़्म .....!!


    आ...इस टूटते तारे से मांग लें
    एक साथ ज़िंदगी की
    आख़िरी शाम .....!!


    दुआ के अलावा कुछ नहीं …

    हां , नरेन्द्रजी को ज़रूर दे सकता हूं बधाई !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    ReplyDelete
  17. रूखा बंजर कल तलक था जो रेगिस्तान !
    हरकीरत की क़लम से आज है नख़लिस्तान !!


    पधारो म्हांरै देश
    हरकीरत हीरजी ,
    आपकी नज़्मों से लेखनी धन्य हुई ,आखर कलश धन्य हुआ , मुझ जैसे अदब-ओ-फ़न के मुरीद धन्य हुए ।


    क्या अंदाज़-ए-सुख़न है…
    मैं पतवार लिखती हूँ
    'वो' भंवर लिख देता है .....!!


    मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
    … … …
    मैं कैसे लिखूं
    तुम्हारे नाम की नज़्म .....!!


    आ...इस टूटते तारे से मांग लें
    एक साथ ज़िंदगी की
    आख़िरी शाम .....!!


    दुआ के अलावा कुछ नहीं …

    हां , नरेन्द्रजी को ज़रूर दे सकता हूं बधाई !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    ReplyDelete
  18. आप सब की टिप्पणियों पर नम आँखों में शुक्रिया है ......!!

    तिलक जी के इस शे'र पे दाद देती हूँ......

    औरत भंवर है सुर्ख खयालों का, तुम कहो
    इसमें कटे तो कैसे कटे शाम आखिरी....

    ReplyDelete
  19. जब भी जोडती हूँ
    तुम्हारे उछाले अल्फ़ाज़
    मुहब्बतों की आड़ी-तिरछी
    लकीरें सी खिंच जाती हैं
    तभी वादियों से आती है रांझे की आवाज़ ....
    मोहब्बतों की उम्रें नहीं होती 'हीर'
    मैं घबरा कर मिटा देती हूँ
    वो सारी लकीरें ....
    ऐसे में तुम ही कहो
    मैं कैसे लिखूं
    तुम्हारे नाम की नज़्म ....
    aur main kya kahun ab ....

    ReplyDelete
  20. behtareen...bemisaal rachnaaen..
    harkeerat ji..aapka abhaar..
    narendra ji...dhanyawad..

    ReplyDelete
  21. gahantaa liye in rachnaon men apne sang bahaa le jaane kee kshmta hai.
    "मैं पतवार लिखती हूँ
    'वो' भंवर लिख देता है '-peeda bhee hai aur akrosh bhee !
    harkeerat jee ka dhanyavaad,itnee shreshth rachnaon ke liye.
    --ashok lav

    ReplyDelete
  22. हरकीरत जी की नज़्में ! उफ़ ! क्या कहें, शब्दों में इनकी तारीफ़ करना मुश्किल है!

    ReplyDelete
  23. हरकीरत जी
    आप गजब लिखती हैं
    मासूम चेहरे में छिपी
    दर्द की तस्वीर दिखती हैं !
    नज्म नहीं
    अंगार हैं
    जो शब्दों की चादर
    औढ निकले हैं
    दर-ऐ-दिल से आपके !
    ....फ़िर आह....और.....वाह !

    ReplyDelete
  24. harkirat sahiba bahtarin nazmo ke liye mubarak

    ReplyDelete
  25. हरकीरत जी आपकी नज्मे बेहद उमदा लगी बहुत ही सुंदर और नाजुक ख्याल है...
    आ अपने गीतों का
    चुम्बन रख दे मेरी
    नज्मों की पलकों पर
    शायद कोई सुर्ख ख्याल
    उतर आये उसकी....
    जर्द आँखों में

    ReplyDelete

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