जन्म : 6 फरवरी, (अमृतसर)
शिक्षा : एम.ए.-- हिंदी (भाषा एवं साहित्य),
एम.फिल.--(स्वर्णपदक)
पी.एच.डी.प्रभाकर-- हिन्दी साहित्य एवं भाषा,
शास्त्री – संस्कृत साहित्य
भाषाज्ञान : पंजाबी (मातृभाषा), हिंदी, संस्कृत, मराठी, अंग्रेजी
प्रवास : नॉर्वे, जर्मनी, थाईलैंड, यू.के., यू.एस.ए.
प्रकाशन :1)----"महर्षि दयानन्द और उनकी योगनिष्ठा" (शोध पुस्तक) 1984 / (गोविन्दराम हासानन्द प्रकाशन, नई दिल्ली)
2)----"मैं चल तो दूँ" (कविता पुस्तक) 2005 (सुमन प्रकाशन, हैदराबाद)
3)----"समाज-भाषाविज्ञान : रंग-शब्दावली : निराला-काव्य" ( पुस्तक ) जनवरी 2009 / (हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद)
4)----"कविता की जातीयता" (आलोचना-ग्रन्थ ) मार्च 2009 / हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद)
5)----कविता, गीत, कहानी, शोध, 50 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएँ, संस्मरण, ललित निबंध, साक्षात्कार तथा रिपोर्ताज आदि विधाओं में देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन
6)----अनेक रचनाओं के पंजाबी, नेपाली, असमिया, बोडो, तेलुगु व अंग्रेजी में अनुवाद हुए
7)----एन.सी.ई.आर.टी.की अन्यभाषा/ हिन्दी की पाठ्यपुस्तक (कविता सम्मिलित) 2002
8)----'ओरियंट लाँगमैन' की 'नवरंग रीडर' (दोहे सम्मिलित) 2003
9)----केरल राज्य की 7वीं व 8वीं की द्वितीय भाषा हिन्दी की पाठ्यपुस्तक (बाल कविताएँ सम्मिलित ) 2002
10)----टीवी विज्ञापनों के लिए लेखन11)--- समवेत संकलनों में रचनाएँ
संपादन
1)---स्त्री सशक्तिकरण के विविध आयाम (ग्रंथ) (2004)
2)---दक्षिण भारत कान्यकुब्ज सभा स्मारिका (2003)
सम्मान :
1) अक्षरम् सूचना प्रौद्योगिकी सम्मान' ( `Aksharam IT Award' for contribution to Hindi Langu.& Lit. through technology ) (2010)
2) `कर्पूर वसंत सम्मान' (2003),
2) `राष्ट्रीय एकता सद्भावना पुरस्कार' (2002),
4) `दलित मित्र' (2003),
5) `विद्यामार्तंड' (2004),
6) `महारानी झाँसी सम्मान' (2001)
संप्रति :-
1)----संस्थापक-महासचिव – 'विश्वम्भरा' – भारतीय जीवनमूल्यों के प्रसार की संकल्पना (संस्था)
2)---- सदस्य - ‘केदारसम्मान समिति’
3)----सहसम्पादक - ‘वचन’ त्रैमासिक (अनामिका प्रकाशन, इलाहाबाद)
4)--- अध्यक्ष - राष्ट्रीय विचारमंच , आ.प्र.प्रकोष्ठ
5)--- सचिव – स्त्री समाज, अंतर्राष्ट्रीय वेद प्रतिष्ठान न्यास
6)----केंद्रीयविद्यालय मैनेजमेंट कमेटी (एयरफ़ोर्स स्टेशन) में संस्कृतिविद् के रूप में मनोनीत
अन्य :
1)---वर्ष 1995, 1996 में नॉर्वे में योग व ध्यान की कक्षाओं का संचालन, संयोजन व नियमन
2)---'आर्य लेखक कोश' (सं.- डॉ.भवानीलाल भारतीय) में परिचय व उल्लेख (सन् 1989)
3)----केंद्र सरकार के विविध उपक्रमों में राजभाषा हिन्दी के क्रियान्वयन विषयक आयोजनों में वक्ता के रूप में भागीदरी
4)----- आर्यसमाज बैंकॉक के आमंत्रण पर दिसंबर 1999 से फ़रवरी 2000 तक 'संस्कृत एवं हिन्दी भाषा-साहित्य में भारतीय वैदिक संस्कृति' विषयक व्याख्यान-यात्रा
5)----जीवनमूल्यों-पर केंद्रित सर्टिफ़िकेट-कोर्स का नियमन व संचालन
6)----केंद्रीय विद्यालय संगठन, नई दिल्ली द्वारा आयोजित 10 राज्यों के स्नातकोत्तर हिन्दी अध्यापकों के 3 सेवाकालीन प्रशिक्षण शिविरों में 'रिसोर्स पर्सन' के रूप में साहित्य, भाषा, भारतीयता और मूल्यशिक्षा का दीर्घकालीन अध्यापन
7)----50 से अधिक गंभीर गवेषणापूर्ण शोध आलेख
8)----विविध अखिल भारतीय संगोष्ठियों में पत्र-प्रस्तुति, संयोजन, अध्यक्षता एवम् संचालन
9)----डॉ.नामवर सिंह, डॉ.विद्यानिवास मिश्र, डॉ.प्रभाकर श्रोत्रिय, श्री अशोक वाजपेयी प्रभृति कवि, विद्वान् , आलोचकों आदि से समीक्षा-दृष्टियों, काव्य-विमर्श, साहित्य, भाषा, संस्कृति व विविध विधाओं आदि पर केंद्रित 35 से अधिक गहन विचार-विमर्शपूर्ण साक्षात्कार
10)----महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय एवम् उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, विश्वविद्यालय विभाग, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा में अतिथि –अध्यापक के रूप में अंशकालिक अध्यापन
11)---- साहित्य अकादमी, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, वैज्ञानिक एवम् तकनीकी शब्दावली आयोग, नैशनल बुक ट्रस्ट प्रभृति संस्थाओं की संगोष्ठियों, सम्मेलनों व कार्यशालाओं में आमन्त्रित, भागीदारी, पत्र प्रस्तुति
12)----- बिहार सरकार द्वारा राज्य में संस्कृत शिक्षा के अध्ययन अध्यापन के स्तर में सुधार हेतु आमन्त्रित संगोष्ठी की अध्यक्षता ( दिसम्बर 2008)
13)---- 20वीं शती की श्रेष्ठ महिला कथाकार (सं.- श्री सुरेन्द्र तिवारी ) में सम्मिलित ( 2009 में प्रकाश्य)
14)----- हिन्दी व इंडिक (भारतीय भाषा) कम्यूटिंग की कार्यशालाओं हेतु विविध प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा आमंत्रित //सम्मानित
15)----- हिंदी कम्प्यूटिंग में तकनीक / नेट लेखन / पत्रकारिता में सक्रिय
kavita ji ko padhna hamesha hi sukhad raha hai, jitni prabhavshaali vyaktitv ki wo maalkin hain unti bhi prabhavshaali uki lekhni hai...
ReplyDeleteunka smariddh anubhav spasht drishtigat hai unki lekhni mein...
aapka aabhar..
स्वप्न ने
ReplyDeleteकुछ पास खींचा,
आँख का
अंजन नहीं हूँ
स्वप्न हूँ
मत आँख खोलो
कविता जी आप की सभी रचनाएँ एक से बढ कर एक है | आप की एक रचना" काल जल्लाद है " आज भी याद आती है | सुंदर अतिसुन्दर बधाई
sabhi prastutiyaan ek se ek behtareen hain.
ReplyDeleteabhinandan!
मेरी ओर से कविता जी को इन सुन्दर और प्रेरणा देने वली अनुभुती से भरी रचनओं के लिये बहुत बधाईे।
ReplyDeleteनरेन्द्र जी आपका सहित्य को बढ़ावा देने क यह प्रयास वास्तव मे बहुत महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय है।
कविता जी की इन सुन्दर और बेहद भावपूर्ण कविताओं को पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
ReplyDelete1. और इसी से बनेगा स्त्री की मजबूती का किला।
ReplyDelete2. यह भी तो हो सकता है पिछली बार जब वे जमे हों तो सूर्य नमस्कार में ही खड़े हों
3. बहुत खूब, छाया को घेरता है
4. विचार खूब बहो
5. हो हो कीचड़ को धो धो।
mujhko kavitayen rucheen
ReplyDeleteman ko chhoota kathya.
kavita ji kee kalam se
nisrat hota satya..
कविता जी का स्वास्थ्य अब कैसा है
ReplyDeleteक्या उसी काल की कविताएं हैं
kavita ji ko parhana sukhad hi lagataa hai. is baar ki bhi kavitayen arthvaan hai. har kavitaa par lambi baten ho sakati hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविताएँ है !
ReplyDeleteडॉ.कविता वाचक्नवी जी की सभी कविताएं एक दम सरल, सहज हैं. बहुत की सुन्दरता की प्रस्तुति के साथ अपना एक संदेश छोड़ जाती है. सभी कविताएं एक ही सांस में पढ़ जाती हैं और कविता जब खत्म होती है तो सोचने पर मजबूर कर देती है. सशक्त अभिव्यक्ति के लिए बधाई!
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई को सच साबित करती एक बेहतरीन रचनाओं के लिए बधाई।
ReplyDeleteहड्डियों तक
ReplyDeleteबर्फ़ जमे लोग
कैसे करें
सूर्य-नमस्कार ?
...सभी कविताएँ अच्छी हैं लेकिन इन पंक्तियों में जिस दर्द की अभिव्यक्ति है वह दिल को छू लेती है. जनवादी चिंतन से ओतप्रोत सभी कविताओं के लिए बधाई.
kavita ji ki sabhi kaviyayen ek se badh kr ek lagi itni sunder prastuti pr badhaii
ReplyDelete[१]
ReplyDeleteइतनी सीधी और सपाट अभिव्यक्ति कम ही देखने को मिलती है कविता जी:-
"पानी लगातार तुम्हारे डूबने की
साजिशों में लगा है"
[२]
शायद आप धर्म परिवर्तन पर कुछ कहना चाह रही हैं:-
"हड्डियों तक
बर्फ़ जमे लोग
कैसे करें
सूर्य-नमस्कार ?"
अगर मेरा सोचना ग़लत है, तो कृपया बताएँ ज़रूर|
सुन्दर रचना, भावमयी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुन्दर रचना, भावमयी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteभावपूर्ण शब्दाभिव्यक्ति
ReplyDeleteशायर कहते हैं औरत से
कि
तेरे माथे पे ये चुनरी क्या खूब लगे है,
मगर इसका परचम बना लेती तो क्या बात होती
achha laga pad ker .........kavita ji se parichit nahi hu per unki rachnaye unka parichay de rahi hai ,,behad bhavpurn ..aabhar
ReplyDeleteबहुआयामी व्यक्तित्व की धनी
ReplyDeleteकभी आग उगलती कविताएँ
तो कभी कंप्यूटर की यांत्रिकता
और कितने सारे सामाजिक सरोकार
हर बार कविता नई लगती है
अगला रूप क्या होगा
हम सब दम साधे बैठे हैं
वशिनी
कविता जी काव्य-अभिव्यक्तियाँ मर्मस्पर्शी होती हैं। सधी हुई शब्दावली के साथ भाव-बिम्बों का सहज प्रवाह बरबस पाठक की सॉंसें साध देता है। कहो, खिलाड़ी !... वाह क्या मिठास है.. चीनी में छान कर जीवन-सत्यों का कुनैन पिलाती हैं कविता जी की कवितायें। ...साधुवाद।
ReplyDeleteडॉ. कविता जी,
ReplyDeleteआपके कृतित्व से परिचित करवाने का श्रेय बड़े भाई प्रोफेसर ऋषभदेव जी शर्मा को जाता है। मैं उनकी उदारता और आपकी प्रतिभा को नमन करता हूँ।
अश्विनीकुमार शुक्ल, संपादक "नूतनवाग्धारा" बाँदा (उ.प्र.)।
कविता जी नमस्कार, भावपूर्ण शब्दों के साथ यर्थाथ की अभिव्यक्ति है कविता मे कीच -कीच धो कहो खिलाड़ी-----बहुत खूब पढ कर आप को अच्छा लगा ।
ReplyDeleteसुंदर सुंदर अति सुंदर ..................
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक सार्थक कविताएँ ....वाह
ReplyDeleteअति सुंदर
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