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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||

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लेखा-जोखा
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सम्पादक मंडल

- राज एन.के.वी.
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।

पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, अभी तो दिल्ली दूर है को ध्यान में रखते हुए निरंतर प्रयास जारी रखें। अब पाठकों की रुचि फास्ट फूड में रह गयी है, हाईकु, क्षणिकाऍं जल्दी आकर्षित करती हैं, लेकिन पारंपरिक रस नहीं छूटना चाहिये। अब आपकी पहली कविता को ही लें, इसमें कई क्षणिकाऍं छुपी हुई हैं।
ReplyDeleteSABHEE KAVITAYEN PADH KAR AANAND AA GAYAA HAI.
ReplyDeleteSUNDAR AUR SAHAJ BHAVABHIVYAKTI KE LIYE BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNA.
nice
ReplyDeleteसंजय जी की कवितायेँ मन को बेहद संजीदा होकर लिखी गयी है |
ReplyDeleteइन कविताओं से संजय जी की एक और छवि उभर कर आई है |
इतनी अच्छी रचनाओं के लिए बधाई !
कोई तो है-कविता बहुत सुन्दर है !
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन लगीं संजय पुरोहित जी की तीनों ही रचनाएँ...अनेक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteकविताओं को पढ़कर लगता है कि संजय पुरोहित अपने भीतर की दुनिया से क्षुब्ध हैं। इस क्षोभ को जुझारुता से जोड़ने की आवश्यकता है। इन कविताओं के बारे में मैं भाई तिलकराज कपूर जी के कमेंट्स से भी सहमत हूँ। सृजन से जुड़े रहने हेतु मेरी ओर से शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteतीनो कविताएँ बेहद अच्छी लगी.
ReplyDeleteregards
मन को बांध लेने वाली कविताएं है आपकी। यूं ही बेहतर लिखते रहे यही शुभकामना।
ReplyDeleteकुछ गुजरे कल, कुछ बहके पल
ReplyDeleteकुछ रेखाएं रंगीन, कुछ श्वेत औ श्याम
कुछ योजनाएं, कुछ घोषणाएं
कुछ शुभ कामनाएं, कुछ संवेदनाएं
समेटे हुए ऑंचल में अपने
पडा रहा, पडा ही रहा
भीगे अखबार सा मैं
*********
उमदा ख़यालात हैं
मुबारकबाद
शानदार रचनाएँ हैं, खास तौर पर भीगे अखबार सा मैं, एक अलग अंदाज़ है!
ReplyDeleteARE OH SAMBHA KITNE KAVITA HAI IS MAI
ReplyDeleteSARDAR 3 , ARE WAH TEENO SHAANDAR , IS KO PADH KAR SARDAR KUSH HUA OR MOGAMBO BHI
sanjay ji, ab tak news me mike ki aawaz sahi nahi, gunjan se sunaideti hai.mere pass ek idea hai. plz contact.
ReplyDelete