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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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दीवाली - *दीवाली * एक गंठड़ी मिली मिट्टी से भरी फटे -पुराने कपड़ो की कमरे की पंछेती पर पड़ी ! यादे उभरने लगी खादी का कुर्ता , बाबूजी का पर्याय बेलबूटे की साडी साडी ...
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सम्पादक मंडल
- Narendra Vyas
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
जयाजी, आपने अपनी कविता के द्वारा "पितृ दिन" को वास्तव में उत्सव बना दिया... आपकी भावनाएं उंके दिल को छू गयी होदी और हमें भी ...
ReplyDeleteहम परमपिता की बात तो करते हैं लेकिन साहित्य में मॉं का वर्चस्व रहा है ऐसे में विश्व पिता दिवस पर इस कविता से अच्छी भेंट और क्या हो सकती है।
ReplyDeleteवाह जया जी वाह क्या बात है। आपकी कविता ने तो पितृ दिवस को सार्थक कर दिया। धन्य है आपके पिताजी जिन्हें ऐसी पुत्री रत्न मिली। आज मुझे भी अपने पिता की याद आ रही है। उनकी याद में चन्द पंक्तियाँ कहना चाहूँगी:
ReplyDeleteशाम की मुँडेर पर बैठा नीरस सूरज, अचानक डूब जाता है
एक अटूट विश्वास सा जम जाता है, दीपक अचानक बुझ जाता है
कभी कहीं कुछ ऐसा घट जाता है, नदी जिसके भरोसे होती है वो किनारा ही कट जाता है।
कभी कभी हृदय भावनाओं से इतना भर जाता है
कि असह्य हो जाता है, जहाँ भी जाओ हर आदमी
साथी नजर आता है.... कभी कहीं कुछ ऐसा घट जाता है....
पिता जी को समर्पित अच्छी कविता !
ReplyDeleteवाह जया जी ! वाह, क्या बात है। विश्व पिता दिवस पर अच्छी भेंट !आपकी कविता दिल को छू गयी !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति है
बधाइयाँ
Jaya Ji,
ReplyDeleteNamaste,
Father's day per likhi sunder rachna ke liye dhanyavaad.
सिर्फ मेरा सहारा ही नहीं हैं,
वो मेरी गलतियों के सुधारक,
मेरे मार्गदर्शक, मेरे पथ-प्रदर्शक,
और भी इससे बढकर हैं वो।।
Surinder Ratti
Is sunder aur sashakt Rachna ke liye aapko bahut abhut badhayi. Apne janm daataon ke naam apne manobhav kavita ki sarita mein nirjhar bahte rahein..yahi shradha bhav samarpit hota hai..lajawaab!!!
ReplyDeletebahut khub.............:)
ReplyDeletebahut umda ,padhkar mujhe bhi bachpan ki saari baate yaad aa gayi ,sundar
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