जया शर्मा 'जयाकेतकी' की कविता - पिता


रचनाकार परिचय
नाम: जया शर्मा ’जयाकेतकी’                  
पतिः डॉ दिलीप शर्मा
जन्मः २३ अगस्त
जन्मस्थानः जबलपुर
शिक्षाः एम ए, बी एड, एम ए, एल एल बी, एम जे, कम्प्यूटर डिप्लोमा (शोधरत)
लेखनः एक्सप्रेस मीडिया सर्विस भोपाल के लिए आलेख फीचर, पत्र-पत्रिकाओं के लिए कहानी, कविता, रेडियो के लिए कहानी, झलकी लेखन व वाचन।
रुचिः पठन, पाठन, लेखन, भ्रमण
प्रकाश्यः कविता संग्रह
सम्प्रतिः ईएमएस अकादमी ऑफ जर्नलिज्म में व्याख्याता 
**************************************************************************** 
पितृ-दिवस पर विशेष 


पिता.......

सिर्फ मेरा सहारा ही नहीं हैं,
वो मेरी गलतियों के सुधारक,
मेरे मार्गदर्शक, मेरे पथ-प्रदर्शक,
और भी इससे बढकर हैं वो।।
उनसे जाना कि शीर्ष क्या है?
उनसे जाना कि उलझने कैसे सुलझती हैं।
माँ के लिए वो देवता हैं,
भैया के लिए वो महान् हैं,
पर मेरे लिए इस सब से उपर हैं वो ।
मेरे सपनों को सच करने वाले,
मेरे कदमों को दृढ करने वाले,
मुझको धरा पर खडा करने वाले।।
मेरे मार्गदर्शक, मेरे पथ-प्रदर्शक,
और भी इससे बढकर हैं वो।।
मेरी तकलीफों में सहारा देने वाले
मेरी प्रतिष्ठा, मेरी आत्मा को पहचान देने वाले,
नहीं भूल सकता उनका घोडा बनना,
ऊँचाई को जाना था मैंने जिस पर चढकर,
मेरा हक, मेरा गुरूर,
मेरे मार्गदर्शक, मेरे पथ-प्रदर्शक,
और भी इससे बढकर हैं वो।।
*******
जया शर्मा 'जयाकेतकी'
४५ मंसब मंजिल रोड,
कोहेफिजा, भोपाल
म.प्र. (४६२००१) 


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10 Responses to जया शर्मा 'जयाकेतकी' की कविता - पिता

  1. जयाजी, आपने अपनी कविता के द्वारा "पितृ दिन" को वास्तव में उत्सव बना दिया... आपकी भावनाएं उंके दिल को छू गयी होदी और हमें भी ...

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  2. हम परमपिता की बात तो करते हैं लेकिन साहित्‍य में मॉं का वर्चस्‍व रहा है ऐसे में विश्‍व पिता दिवस पर इस कविता से अच्‍छी भेंट और क्‍या हो सकती है।

    ReplyDelete
  3. वाह जया जी वाह क्या बात है। आपकी कविता ने तो पितृ दिवस को सार्थक कर दिया। धन्य है आपके पिताजी जिन्हें ऐसी पुत्री रत्न मिली। आज मुझे भी अपने पिता की याद आ रही है। उनकी याद में चन्द पंक्तियाँ कहना चाहूँगी:

    शाम की मुँडेर पर बैठा नीरस सूरज, अचानक डूब जाता है
    एक अटूट विश्वास सा जम जाता है, दीपक अचानक बुझ जाता है
    कभी कहीं कुछ ऐसा घट जाता है, नदी जिसके भरोसे होती है वो किनारा ही कट जाता है।

    कभी कभी हृदय भावनाओं से इतना भर जाता है
    कि असह्य हो जाता है, जहाँ भी जाओ हर आदमी
    साथी नजर आता है.... कभी कहीं कुछ ऐसा घट जाता है....

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  4. पिता जी को समर्पित अच्छी कविता !

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  5. वाह जया जी ! वाह, क्या बात है। विश्‍व पिता दिवस पर अच्‍छी भेंट !आपकी कविता दिल को छू गयी !

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  6. बहुत ख़ूब
    सुन्दर प्रस्तुति है
    बधाइयाँ

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  7. Jaya Ji,
    Namaste,
    Father's day per likhi sunder rachna ke liye dhanyavaad.
    सिर्फ मेरा सहारा ही नहीं हैं,
    वो मेरी गलतियों के सुधारक,
    मेरे मार्गदर्शक, मेरे पथ-प्रदर्शक,
    और भी इससे बढकर हैं वो।।
    Surinder Ratti

    ReplyDelete
  8. Is sunder aur sashakt Rachna ke liye aapko bahut abhut badhayi. Apne janm daataon ke naam apne manobhav kavita ki sarita mein nirjhar bahte rahein..yahi shradha bhav samarpit hota hai..lajawaab!!!

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  9. bahut umda ,padhkar mujhe bhi bachpan ki saari baate yaad aa gayi ,sundar

    ReplyDelete

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