लावण्या शाह की कविता - तुलसी के बिरवे

रचनाकार का संक्षिप्त परिचय:
लावण्या शाह सुप्रसिद्ध कवि स्व० श्री नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं और वर्तमान में अमेरिका में रह कर अपने पिता से प्राप्त काव्य-परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।समाजशा्स्त्र और मनोविज्ञान में बी.ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या जी प्रसिद्ध पौराणिक धारावाहिक "महाभारत" के लिये कुछ दोहे भी लिख चुकी हैं। इनकी कुछ रचनायें और स्व० नरेन्द्र शर्मा और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर से जुड़े संस्मरण रेडियो से भी प्रसारित हो चुके हैं। इनकी एक पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी"प्रकाशित हो चुकी है जो इन्होंने अपने पिता जी की प्रसिद्ध कृति"प्रवासी के गीत" को श्रद्धांजलि देते हुये लिखी है।






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तुलसी के बिरवे के पास , रखा एक जलता दिया 
जल रहा जो अकम्पित, मंद मंद , नित  नया 
बिरवा जतन से उगा जो तुलसी क्यारे मध्य सजीला 
नैवैध्य जल से अभिसिक्त प्रतिदिन , वह मैं हूँ 
सांध्य छाया में सुरभित , थमी थमी सी बाट  
और घर तक आता वह परिचित सा लघु पथ 
जहां विश्राम लेते  सभी परींदे , प्राणी , स्वजन 
गृह में आराम पाते,  वह भी तो मैं ही हूँ न 

पदचाप , शांत संयत , निश्वास गहरा बिखरा हुआ
कैद रह गया आँगन में जो, सब के चले जाने के बाद 
हल्दी, नमक, धान के कण जो सहजता मौन हो कर 
जो उलट्त्ता आंच पर , पकाता रोटियों को , धान को 
थपकी दिलाकर जो सुलाता भोले अबोध  शिशु को 
प्यार से चूमता माथा , हथेली , बारम्बार वो मैं हूँ 
रसोई घर दुवारी पास पडौस नाते रिश्तों का पुलिन्दा
जो बांधती , पोसती प्रतिदिन वह , बस मैं एक माँ हूँ !
********
- लावण्या शाह

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10 Responses to लावण्या शाह की कविता - तुलसी के बिरवे

  1. लावण्या दीदी की तारीफ करने की हिम्मत मैंने कभी नहीं की है...आज भी नहीं करुँगी....
    उनके उदगार उनकी क्षमता के स्वयं साक्षी हैं...
    आभार...

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  2. नैवेद्य जल से अभिसिंचित, तुलसी के चौबारे पर रखा दिया, भक्ति भाव से ज्योतिर्मान, सतत शुभाकांक्षी, वह सब आपके अंतस का उजागर रूप है.
    सात्विकता का मानवीयकरण है.
    ममत्व की ऊर्जामय शक्ति, चित्त में चिन्मय की भक्ति कर्त्तव्य कर्म यह सब ही तो कृष्ण के उपदिष्ट विषय है.
    शुभ विचारों का सृजन और लव लीनता जन्म का शुभ लक्षण है.
    आपकी इस कृति को नमन है
    डॉ.मृदुल कीर्ति

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  3. हिन्‍दी काव्‍य मैनें उतना ही पढ़ा जितना 60 के दशक में उच्‍चतर माध्‍यमिक शालाओं में पढ़ाया जाता था। अब जब कभी अच्‍छी कविता पढ़ने को मिलती है तो आनंद मिलता है। आज भी मिला। कविता में प्रयुक्‍त शब्‍दों से ही ये शब्‍द जिन्‍दा हैं।

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  4. Lavanya jee kee kavitaaon ko padhna sadaa hee
    sukhad lagtaa hai.Unke shabdon mein sangeet
    bastaa hai.

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  5. Aisi rachnakaron ki rachna pe kuchh bhi kahne ki qabiliyat nahi rakhti!

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  6. Aise diggaj rachnakaron ki rachna pe mere jaisi adna-si wyakti kya kahe?

    ReplyDelete
  7. प्यार से चूमता माथा , हथेली , बारम्बार वो मैं हूँ
    रसोई घर दुवारी पास पडौस नाते रिश्तों का पुलिन्दा
    जो बांधती , पोसती प्रतिदिन वह , बस मैं एक माँ हूँ !
    lavanya ji ko padna aur guftaar karna sach mein sukhad raha hai.. atmeeyata unki rachanon ki neev hai jo unhein varse mein mili hai aur karya kshamta, kya kahiye. Hum aur aap donon sakshi hai. Lavanya aapki kalam ka zor aur aage..aur aage...

    ReplyDelete
  8. tulsi ke birve si sarthak maa ,or utani hi sarthak hai aapki rachna ......badhai

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  9. lavanya sahiba ko aadab mukhtalif tahazib me apni tahzib ko zinda rakhe hove ho is ke liye mubarak bad aapki kavitao me os ki khushbu mahsus ki jasakti h

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  10. आप सभी का बहुत बहुत आभार व मंगल कामना सह:
    - लावण्या

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