मालचंद तिवाड़ी की कविताएँ

रचनाकार पिरचयः
नामः मालचन्द तिवाडी
जन्मः १९ मार्च, १९५८
स्थानः बीकानेर
शिक्षाः एम.ए. (हिन्दी साहित्य)
लेखनः हिन्दी और राजस्थानी में समान रूप से (गद्य-पद्य)
प्रकाशनः हिन्दी-
सभी कहानी संग्रह- जालियाँ और झरोखे, पानीदार तथा अन्य कहानियाँ, सुकान्त के सपनों में और त्राण
उपन्यास- पर्यायवाची
राजस्थानी उपन्यास- भोळावण
राजस्थानी कहानी संग्रह- सेलिब्रेशन और धडन्द
राजस्थानी कविता संग्रह- उतर्यो है आभौ
अनुवाद- एच.जी. वेल्स की कालजयी विज्ञान कथा ‘टाईम मशीन’ का ‘काल की कल’ के नाम से हिन्दी अनुवाद
पुरस्कार- साहित्य अकादमी, सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार, लखोटिया पुरस्कार, गणेशीलाल व्यास पुरस्कार ‘उस्ताद’ पद्य पुरस्कार समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित
साहित्यिक भ्रमण- भारत सरकार की सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजनार्त्गत दस प्रतिनिधि भारतीय लेखकों के मण्डल के अंगरूप सितम्बर, २००७ में चीन व मलेशिया की यात्रा कर चुके हैं
पूर्व में आप साहितय अकादमी नई दिल्ली के सौजन्य से ‘इंडियन इन्स्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज, शिमला से संबद्ध ‘राईटर्स इन रेजीडेंस’ रहे हैं
स्थायी पता- प्रहेलिका, सोनगिरि कुआँ, बीकानेर- ३३४००५ 
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१.
भूलना-सीखना

बहुत मुश्किल नहीं होता सीखना
सारा संसार सीखता है
सीख-सीख कर चलता है
नया होता रहता है
बालक से आइन्सटाईन तलक
बहुत मुश्किल हो जाता है भूलना
इस शास्त्र की तो एक ही पण्डित थीं तुम
भूल कर मुझे भूलना सिखला दिया
देखो, मैं योगी हो गया
भूल गया संसार को
तुम्हें भूलने के पथ पर चलता
.......................................................
२. 
कुमकुम के छींटे

घर में आहूत
प्रत्येक मांगलिक अवसर पर
अक्षर-विहीन मेरी माँ
लिखवाया करती मुँह से बोल
मेरे हाथों से पोस्टकार्ड
निमन्त्रित करने दूरस्थ रिश्तेदारों को
लिख लिये जाने पर पोस्टकार्ड
घोला करती कुमकुम
छींटा करती उसे एक-एक निमन्त्रण पर
डुबोती हुई अपनी कनिष्ठा
कटोरी भर रतन-तलाई में
तुम्हारे लिये याद करता हूँ
वही माँ की कनिष्ठा अंगुली
वही सुगंधित कुमकुम
अर्पित करने को फिर से तुम्हें
सोचता हूँ
मेरे जीवन के पोस्टकार्ड पर
कुमकुम के छींटे ही तो है तुम्हारा प्यार
उन्हें अर्थ देने सिवाय
और क्या है कविता !
........................................
३.
मैला दर्पण

चेचक नहीं निकला करती
दर्पण के मुखडे पर
सिर्फ इतना हुआ था
कंघी करते समय
तुम्हारी गीली केश-राशि से उडे छींटे
पौंछ नहीं सका था मैं
यत्न करता-सा
कि इस जाली के नीचे
जस का तस मिल जाएगा तुम्हारा रूप
पडा हुआ दर्पण के अंतस में

वह मेरी भोली आशा
अब पौंछ दिया करती है
बिम्ब-प्रतिबिम्ब के कितने ही रिश्ते
क्योंकि कृतघ्न नहीं थी वह मेरी आँख
जिसने देखा था तुम्हें
देखते उस दर्पण को
निकालते समय अपने गीले केश

निथारने पर जल
सरोवर-सरोवर मिलता है चाँद
मैं खडा हूं अपने सरोवर के तीर
लिए हाथों में अपने
वही मैला दर्पण अपना
..............................................
४.
आँसुओं की सुमिरनी

दिन ?
यह मैंने फेंकी
सिरहाने से निकाल
आकाश में किरणों की गेंद

यह किरणों का सूत
नित्यप्रति सुलझाता हूं मैं
कि किसी तंतु को तान
कभी तो पहुंचूंगा तुम्हारे द्वार
मैं थक कर
सूत सिरहाने रखता हूं
और रात हो जाती है
पतरा ?
टपकता है हर बरस
स्मृति की आँख से एक आँसू
आँसुओं की सुमिरनी
यह मेरी कविता !
....................................
५.
तुम्हारी सौंपी यह दुनिया

मैं स्पर्श से बचता हूं
भुरने न लग जाए
दीमक चाटे काठ की मानिंद
यह दुनिया

मैं अँगुली नहीं उठाता
सुराख न हो जाए कहीं
जर्जर पवन की छाती में

मैं पुकारता नहीं तुम्हारा नाम
अनसुनी मेरी पुकार पर
ढेर ना हो जाए सारे शब्द
टूटे हुए खिलौनों की तरह

कैसे बयान करूं
किस एहतियात से संजोये बैठा हूं
तुम्हारे बगैर
तुम्हारी सौंपी यह दुनिया !
.......................................
६.
कैमरे के सम्मुख

कोई सी भी तारीख
जैसे कि २० जून १९८९
मैंने खींची थी तुम्हारी तस्वीर
हँसती हुई की
हँसी ऐसी थी वह कि जैसे हाथ से छूट गिरा हो
काँसे का थाल !

क्या तुम्हें याद है
वह बात
कही थी जो मैने
तुम्हें हँसाने के निमित्त !

हँसती तो अब भी होंगी तुम
क्योंकि मैं कहे जा रहा  हूं वही बात
बिसराए बैठा
अपनी आँखों बहता अश्रु-धार
सुनो !
एकबात फिर से तो देखो
उसी दिन की तर्ज पर
इस कैमरे के सम्मुख !

*******
**समस्त कविताएँ राजस्थानी से हिंदी में लेखक के स्वयं के द्वारा अनुवादित |               

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14 Responses to मालचंद तिवाड़ी की कविताएँ

  1. पुनः एक बेजोड़ प्रस्तुति..... सुनील जी और व्यास जी बढ़िया चयन बोध है आपका.. साधुवाद..

    ReplyDelete
  2. क्या कहूँ इन कविताओं के बारे में ...अनूठी रचनाएँ हैं ...पढ़कर मन प्रसन्न हो गया...एक से बढ़कर एक कविता....क्या भाव-बोध और क्या शिल्प ...हार्दिक आभार..

    ReplyDelete
  3. वाह !
    बधाई हो सुनील जी एवम् नरेन्द्र जी !
    आप अब लय और रफ्तार पकड़ रहे हो! पहले आप ने नंद किशोर आचार्य, नंद भारद्वाज,अज़ीज आज़ाद,रश्मि प्रभा,गुलशन जी और संगीता सेठी जैसे रचनाकारोँ को पढ़ने का अवसर दिया और अब भाई मालचंद तिवाड़ी जैसे सशक्त रचनाकार को लाए हो।इस हेतु आपकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है।मुझे गर्व है कि मैँ 'आखर कलश' का पाठक व रचनाकार हूं।एक बार फिर बधाई !
    भाई माल चंद तिवाड़ी हिन्दी एवम् राजस्थानी के ख्यातनाम रचनाकार हैँ।उन्हेँ यहां पढ़ना अच्छा लगा।यहां शामिल उनकी समस्त कविताएं लाजवाब हैँ।भाई तिवाड़ी जी को हार्दिक बधाई!

    ReplyDelete
  4. HALANKI MAINE MALCHAND JI KI KEVAL KUCH KAHANIYAN PADHI HAIN KINTU KAVITAEIN BHI ALAG KISM KI HAIN

    ReplyDelete
  5. श्रद्देय भाई मालचंद तिवाड़ी जी कवितायेँ पढ़ीं ...मन को छु गई.. आखर कलश और कवि तिवाड़ी जी को हार्दिक बधाई..

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  6. मालचंद जी की नए रंग की कविताए पढ़कर उनके अंतस में छिपे दर्द को जाना | संवेदनशील कविताओं के लिए बधाई !

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  7. मालचंद जी सर की सारी रचनाएँ बहुत ही खूब सूरत है ..जैसे दर्पण में कोई खूबसूरत अक्श उतर आता है और दर्पण भी सुन्दर लगने लगता है उसी तरह आपकी कविताओं को पढ़कर मन को एक खूबसूरत अहसास हुआ है ..बहुत ही उम्दा कोटि की रचनाएँ हैं ..काबिले तारीफ

    ReplyDelete
  8. मालचंद जी सर की सारी रचनाएँ बहुत ही खूब सूरत है ..जैसे दर्पण में कोई खूबसूरत अक्श उतर आता है और दर्पण भी सुन्दर लगने लगता है उसी तरह आपकी कविताओं को पढ़कर मन को एक खूबसूरत अहसास हुआ है ..बहुत ही उम्दा कोटि की रचनाएँ हैं ..काबिले तारीफ

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  9. ye aaina hai,
    hum sab k liye;
    jo samajte hain
    kavita likhne bhar se
    kavita ka hona.
    "ARTH DENE SIWAY
    OR KYA HAI KAVITA"!!

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  10. आखर कलश एक बेहतरीन प्रयास---- बधाई।
    मालचंदजी की रचनाएं अच्‍छी लगीं, उन्‍हें भी बधाई पहुंचा दें।

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  11. तिवाड़ी जी की कवितायें ज़मीं से जुडी हुई संवेदना से भरपूर हैं /पठनीय हैं /हार्दिक बधाई /आखर कलश को धन्यवाद/

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  12. Aakhar kalash ka naya swaroop bahut akarshak laga..rachnatmak oorja ko banaye rakhne ke aapke prayason ko mera naman

    ReplyDelete
  13. मैला दर्पण


    चेचक नहीं निकला करती
    दर्पण के मुखडे पर
    सिर्फ इतना हुआ था
    कंघी करते समय
    तुम्हारी गीली केश-राशि से उडे छींटे
    पौंछ नहीं सका था मैं
    यत्न करता-सा
    Anuwaad yatharth ke bahut qareeb le aay ahai....Bahut hi marmik v sateek rachna hai Maila Darpan..Maalchand Tiwari ji ki....Narendra Vyaas ji aapko dher sari shubhkamnayein is sahity ke safal prayaas ke liye...

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