अज़ीज़ आज़ाद की पाँच ग़ज़लें

अवाम की आवाज, साम्प्रदायिक सौहार्द इंसानी भाईचारे के अव्वल अलमबरदार और मशहूर शायर अजीज आजाद साहब को मेरी और समस्त आखर कलश मण्डल की और से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पेश है उनकी कुछ चुनिन्दा ग़ज़लें।  आशा है आप सभी को पसन्द आएंगी और मेरा ये सेवा कार्य भी सफल होगा। - सम्पादक मंडल


रचनाकार परिचय
नामः अजीज आजाद
जन्मः २१ मार्च, १९४४
शिक्षाः एम.ए. (इतिहास)

प्रकाशित कृतियाँ: टूटे हुए लोग (उपन्यास), उम्र बस नींद सी, भरे घर का सन्नाटा (दोनो गजल संग्रह), हवा और हवा के बीच (कविता संग्रह), कोहरे की धूप (कहानी संग्रह)
सम्पादनः राजस्थान उर्दू अकादमी द्वारा पकाशित तजकरा शोरा-ए-बीकानेर (उर्दू)
प्रकाशनः विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व संग्रहों में गजलें, कविताएँ, कहानियाँ व लेख।
आकाशवाणी व दूरदर्शन से उर्दू-हिन्दी रचनाओं के अनेक प्रसारण।
गायक रफीक सागर की आवाज में गजलों का एलबम आजाद परिन्दा रिलीज।
राष्ट्रीय मुशायरों व कवि सम्मेलनों में शिरकत करते हुए लोकप्रिय शायर के रूप में भरपूर पहचान अर्जित की।
राजस्थान उर्दू अकादमी की संचालिका के सदस्य रहे।
पी.यू.सी.एल. के जिला अध्यक्ष रहे।
महामहिम राज्यपाल, जिला प्रशासन, नगर विकास न्यास, बीकानेर समेत कई साहित्यक, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं से पुरस्कृत व सम्मानित हुए।
निधनः २० सितम्बर, २००६ को थोडी-सी अवधि तक बीमार रह कर देहावसान। 
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१.
चलो ये तो सलीका है बुरे को मत बुरा कहिए
मगर उनकी तो ये जिद है हमें तो अब खुदा कहिए

सलीकेमन्द लोगों पे यूँ ओछे वार करना भी
सरासर बदतमीजी है इसे मत हौसला कहिए

तुम्हारे दम पै जीते हम तो यारों कब के मर जाते
अगर ज़िंदा हैं किस्मत से बुजुर्गों की दुआ कहिए

हमारा नाम शामिल है वतन के जाँनिसारों में
मगर यूँ तंगनजरी से हमें मत बेवफा कहिए

तुम्हीं पे नाज था हमको वतन के मोतबर लोगों
चमन वीरान-सा क्यूँ है गुलों को क्या हुआ कहिए

किसी की जान ले लेना तो इनका शौक है आजाद
जिसे तुम कत्ल कहते हो उसे इनकी अदा कहिए

२.
चार दिनों की उम्र मिली है और फासले जन्मों के
इतने कच्चे रिश्ते क्यूँ हैं इस दुनिया में अपनो के

सिर्फ मुहब्बत की दुनिया में सारी जबानें अपनी हैं
बाकी बोली अपनी-अपनी खेल तमाशे लफ्जों के

आँखों ने आँखों को पल में जाने क्या-क्या कह डाला
खामोशी ने खोल दिये हैं राज छुपे सब बरसों के

अबके सावन ऐसा आया दिल ही अपना डूब गया
अश्कों के सैलाब में गुम है गाँव हमारे सपनों के

किसी मनचली मौज ने आकर इतने फूल खिला डाले
कोई पागल लहर ले गई सारे घरौंदे बच्चों के

नई हवा ने दुनिया बदली सुर-संगीत बदल डाले
हम आशिकआजादहैं अब भी उन्हीं पुराने नगमों के

३.
अजब जलवे दिखाए जा रहे हैं
खुदी को हम भुलाए जा रहे हैं

शराफत कौन-सी चिडया है आखिर
फकत किस्से सुनाए जा रहे हैं

बुजुर्गों को छुपाकर अब घरों में
सजे कमरे दिखाए जा रहे हैं

खुद अपने हाथ से इज्जत गँवा कर
अब आँसू बहाए जा रहे हैं

हमें जो पेड साया दे रहे थे
उन्हीं के कद घटाए जा रहे हैं

सुखनवर अब कहाँ हैं महफलों में
लतीफे ही सुनाए जा रहे हैं

अजीजअब मजहबों का नाम लेकर
लहू अपना बहाए जा रहे हैं

४.
तेरे बदन की खुशबू आई
हवा चमन की फिर गर्माई

पत्ता-पत्ता नाच रहा है
बूढे शजर की शामत आई

भँवरों ने कलियों को चूमा
सारी फजा में मस्ती छाई

प्यार का जब पैमाना छलका
दिल की प्यास लबों पे आई

रूप का आँचल सरक रहा है
मस्त हवा ने ली अँगडाई

चाँद नदी में डूब रहा है
काँप रही है अब परछाई

५.
अब मेरा दिल कोई मजहब न मसीहा मांगे
ये तो बस प्यार से जीने का सलीका माँगे

ऐसी फसलों को उगाने की जरूरत क्या है
जो पनपने के लिए खून का दरिया माँगे

सिर्फ खुशियों में ही शामिल है जमाना सारा
कौन है वो जो मेरे दर्द का हिस्सा माँगे

जुल्म है, जहर है, नफरत है, जुनूँ है हर सू
जन्दगी मुझसे कोई प्यार का रिश्ता माँगे

ये तआलुक है कि सौदा है या क्या है आखर
लोग हर जश्न पे पेहमान से पैसा माँगे

कितना लाजम है मुहब्बत में सलीका ऐअजीज
ये गजल जैसा कोई नर्म-सा लहजा माँगे
 

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9 Responses to अज़ीज़ आज़ाद की पाँच ग़ज़लें

  1. अज़ीज़ साहब की बेहद खूबसूरत ग़ज़लें हम तक पहुँचाने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया...चारों ग़ज़लें दिल में घर कर गयीं...हर शेर उफ़ युम्मा है...
    नीरज

    ReplyDelete
  2. अज़ीज़ साहिब की इतनी खूबसूरत ग़ज़लें पढ़वाने के लिए आपका बहुत शुक्रिया !

    ReplyDelete
  3. अबके सावन ऐसा आया दिल ही अपना डूब गया
    अश्कों के सैलाब में गुम है गाँव हमारे सपनों के
    Aziz Saheb ko padna ek sukhad sira laga. sadhe hue sher dil ko choote hue, vaar karte hue bhi mom ki katar bane rahe ...bahut khoob !!!

    ReplyDelete
  4. अजीज साहब की गजलें तो बहुत ऊंचे मेयार की हैं ,मुहब्बत भी है ,तल्खी भी, शिकवा भी है, निराकरण भी.
    लेकिन कुछ खटक भी रहा है- ये ज्ञान तो मुझे है कि उर्दू में छोटी मात्राओं को अक्सर नहीं लिखा जाता ,लेकिन जब आप उसे हिंदी लिपि में लिखते हैं तो कृपया जिद को जिद ही लिखें क्योंकि जद शब्द अनेक हिंदी भाषियों को नहीं समझ में आएगा ,ऐसे कई शब्द इन गजलों में हैं
    आपसे मेरा निवेदन है कि मेरा ये पैगाम अजीज साहब तक जरूर पहुंचा दीजिये

    ReplyDelete
  5. अलका जी,
    मरहूम शायर अज़ीज आज़ाद की ग़ज़लोँ मेँ वो सब कुछ है जो एक अच्छी ग़ज़ल मेँ होना चाहिए।मात्रा का छोटा बड़ा होना या करना इतना आसान नहीँ जितना लगता है।यह सब उर्दू के छन्दानुकूल है।छन्द की मांग,बहर ओ वज़न का तआलुक है।वज़न का घटना बढ़ना और गिरना गिराना ग़ज़ल की ज़रुरत है जिसे हमेँ जानना चाहिए।
    *अज़ीज साहब बेहतरीन शायर थे।उनकी मौज़ूदगी मेँ कवि सम्मेलन और मुशायरोँ मेँ गम्भीरता आती थी।ऐसे फनकार कभी कभी पैदा होते हैँ।उन्हे नमन !
    *आखर कलश परिवार को स्वर्गीय अज़ीज साहब की उम्दा ग़ज़लेँ प्रकाशित करने लिए साधुवाद एवम् बधाई !

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  6. Azeez sahab ki gazlen padhi waah kya kamal ke sher hai Narendra ji aapki bahut abhaari hun inki gazlen padh kar bahut sakun mila .

    ReplyDelete
  7. aziz aazad us masti kaa naam hai jaha wo swayam ko bhul jaate hai ..khyaal kerte hai logo se milne kaa unki sukh suvidhaon ko dhyaan kerne kaa ..etne saral insaan aaj ..ab kaha ?/pyaar se bhere ..aapke liye jameen ki tarah biche hue ..wo likhte the ...likh ker use theek kerte the ..muqabla kerte the ..sahi ko sahi kehne ki himmat rekhte the ..wo khud ek gazal the ..muskarte hue ..befikra ..kabhi bhi ve bache nahi ..hamesha un logo ke saath rehe jo unki rachnao mein meen mekh nikalte the magar ve sache doston ki bhookh rekhte the ...azizi saheb ki yaad aate hi bahut si batte bahut si raate ..shammen jo unke saath bitayi hai wo yaad aati hai yaad aata hai unka wo dhire dhire hasna pahile mana ker hamariu mher maang ko maan lena ....aur unki saafgoi kamal ki thi ..ek baar bikaner mein naye kaviyon ka kavya paath tha ..sthal per aagantuko shrotaon ke liye ek register rekha hua tha jisme sabse ye anrodh kiya gaya tha ki kripiya apni tippani likhe ...unhone likhea ....ki kavitayen sunker aisa anbhav hua hai jaise band andhere kamre mein kisi ne aankh band ki ho .......unke saath ..bahut si baaten unki gazal mein aapko vehi imandaari vehi sahajta vehi vastviokta aas paas gujarta jeeven milega jo wo jeete the ...erade ke pakke honsle se bulund aziz saheb ki aaj aapne yaad dilayi ...unki gazlon ke liye mein kya kehu ..ve swyan samrath hai ..aur bahut der bahut samay tak jivit rehengi

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