प्राण शर्मा की दो ग़ज़लें
















(1)
आज नहीं तो कल- परसों को अपने  आप ही  गंद्लायेगा 
झील का ठहरा-ठहरा  पानी कब तक सुथरा रह  पायेगा 

मेरे हमसाये  का  क्या कुछ उसकी लपट से बच पायेगा 
मेरे घर को आग लगी तो उसका घर भी जल जाएगा 

इतनी जोर से फैंक नहीं तू ऊँचे पर्बत से पत्थर    को 
पत्थर  तो पत्थर है प्यारे जिसको लगा वो  चिल्लाएगा 

अनजानी राहों में रहबर जैसा मिले तो बात बने   कुछ 
इक अनजाना अनजाने को राह भला क्या  दिखलाएगा 

" प्राण" जुटाओ पहले रोटी फिर कोई भी बात करो तुम 
भूखे  पेट किसी को कैसे प्यार तुम्हारा    बहलायेगा 

*******
 (2)
उन लोगों के संग साथियो नचना- और नचाना   क्या
जलने वालों   की  महफ़िल में हंसना और हंसाना क्या

भूला-  बिसरा है तो उसको  भूला-  बिसरा   रहने    दो
करके  याद पुराना  किस्सा   सोया दर्द    जगाना    क्या

सजी - सजाई   कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता
मन की  सूनी  सी   कुटिया  को ए यारो दिखलाना   क्या

मन से मन  ए मीत मिले तो एक   निराली  बात  बने
पल दो पल के लिए किसी के हाथ से हाथ मिलाना क्या

दो दिन की ही रंगरली है दो दिन का ही उत्सव     है
" प्राण " किसी  के हँसते- गाते घर में    आग   लगाना क्या

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14 Responses to प्राण शर्मा की दो ग़ज़लें

  1. प्राण शर्मा जी स्‍थापित हस्‍ताक्षर हैं साहित्‍य जगत में। उनकी ग़ज़लें हमेशा कुछ नयापन लिये होती हैं कुछ अनुभव कुछ फलसफ़ा लिये।
    अनजानी राहों में रहबर जैसा मिले तो बात बने कुछ
    इक अनजाना अनजाने को राह भला क्या दिखलाएगा
    और
    भूला- बिसरा है तो उसको भूला- बिसरा रहने दो
    करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या
    विशेष रूप से अच्‍छे लगे।

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  2. प्राण जी की दोनों गजलें मन को बंधने में समर्थ हैं. साधुवाद.

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  3. प्राण साहिब की दोनों ग़ज़लें बहुत उम्दा हैं। क्या खूब शे'र है-
    "प्राण" जुटाओ पहले रोटी फिर कोई भी बात करो तुम
    भूखे पेट किसी को कैसे प्यार तुम्हारा बहलायेगा ।

    सुभाष नीरव

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  4. प्राण शर्मा जी की शानदार ग़ज़लों से रूबरू कराने के लिए "आखर कलश"
    को बधाई !
    सजी - सजाई कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता
    मन की सूनी सी कुटिया को ए यारो दिखलाना क्या
    मर्म छू लिया इस शे'र ने ।
    और… मानवीय संवेदनाओं से पूर्ण है मक़्ते का शे'र…
    दो दिन की ही रंगरली है दो दिन का ही उत्सव है
    "प्राण" किसी के हँसते-गाते घर में आग लगाना क्या
    प्राण शर्माजी को बधाई देना मुझ नाचीज़ के लिए उचित नहीं ।
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    ReplyDelete
  5. केवल हँसी,प्यार, श्रंगार और पायल की झनकार से जीवन नहीँ कटता,जीवन के लिए रोटी की दरकार होती है।पेट भरा हो तो बाकी सुख याद आते हैँ।जनकवि हरीश भादाणी जी का लोकप्रिय गीत याद आया-'रोटी नाम सत्त है,खाए से मुगत है'

    ReplyDelete
  6. दोनों ही गज़ले बहुत उम्दा है और आज की दुनिया में सीख देती:

    उन लोगों के संग साथियो नचना- और नचाना क्या
    जलने वालों की महफ़िल में हंसना और हंसाना क्या


    -क्या बात है. बहुत बेहतरीन!

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  7. दोनों ही उम्दा गज़लें प्राण जी की ........बहुत खूब

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  8. आज नहीं तो कल- परसों को अपने आप ही गंद्लायेगा
    झील का थार-- ठहरा पानी कब तक सुथरा रह पायेगा
    ***
    उन लोगों के संग साथियो नचना- और नचाना क्या
    जलने वालों की महफ़िल में हंसना और हंसाना क्या

    शब्दों का ये तिलस्म सिर्फ और सिर्फ प्राण साहब जैसे महान ग़ज़लगो ही अपनी ग़ज़लों में जगा सकते हैं...गंद्लायेगा सुथरा नचना नचाना आदि जैसे शब्द और कहाँ पढने को मिलेंगे...??? वाह..कृतार्थ हो गए उनकी ग़ज़लें पढ़ कर...आप का बहुत बहुत शुक्रिया...
    नीरज

    ReplyDelete
  9. प्राण जी की दोनों गज़लें बहुत ही उत्कृष्ट हैं. नीरव ठीक ही अंश का उल्लेख किया है. प्राण जी को बधाई.

    रूपसिंह चन्देल

    ReplyDelete
  10. आदरणीय प्राण शर्मा जी की रचनाएं हमेशा प्रेरणा देती है.
    प्रस्तुत दोनों ग़ज़लों के सभी शेर कोई न कोई दर्स दे रहे हैं
    ये शेर यादगार बने हैं-
    १-अनजानी राहों में रहबर जैसा मिले तो बात बने कुछ
    इक अनजाना अनजाने को राह भला क्या दिखलाएगा
    २-भूला- बिसरा है तो उसको भूला- बिसरा रहने दो
    करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या

    ReplyDelete
  11. प्राण जी दूसरी वाली ग़ज़ल का हर शे'र बहुत पसंद आया ......
    मतला और मक्ता दोनों लाजवाब .....

    उन लोगों के संग साथियो नचना- और नचाना क्या
    जलने वालों की महफ़िल में हंसना और हंसाना क्या

    बहुत खूब .....!!

    भूला- बिसरा है तो उसको भूला- बिसरा रहने दो
    करके याद पुराना किस्सा सोया दर्द जगाना क्या

    सही कहा ......!!
    सजी - सजाई कुछ होती तो हर इक को मैं दिखलाता
    मन की सूनी सी कुटिया को ए यारो दिखलाना क्या

    बहुत खूब .....!!

    दो दिन की ही रंगरली है दो दिन का ही उत्सव है
    " प्राण " किसी के हँसते- गाते घर में आग लगाना क्या

    लाजवाब ......!!

    नरेन्द्र जी प्राण जी तो हमेशा ही लाजवाब लिखते हैं ......
    इनकी ये बेहतरीन गजलें पढवाने के लिए शुक्रिया ......!!

    ReplyDelete
  12. आ. प्रान सा'ब ग़ज़लों को इस तरहा बन कर पेश करते हैं मानों खालिस पश्मीने पे असल जामावार का हुन्नर कसीदे में फूल और
    बारीक घुमावदार रेशम के ख़म से सजा हो ...दुनियादारी , इंसानियत और मन के भाव सब सलीके से समाये हैं ..
    इन्हें पढवाने के लिए आपका शुक्रिया जी ..
    सादर , स - स्नेह,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  13. आ. प्रान सा'ब ग़ज़लों को इस तरहा बन कर पेश करते हैं मानों खालिस पश्मीने पे असल जामावार का हुन्नर कसीदे में फूल और
    बारीक घुमावदार रेशम के ख़म से सजा हो ...
    दुनियादारी , इंसानियत और मन के भाव सब सलीके से समाये हैं ..
    इन्हें पढवाने के लिए आपका शुक्रिया जी ..
    सादर , स - स्नेह,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  14. अनजानी राहों में रहबर जैसा मिले तो बात बने कुछ
    इक अनजाना अनजाने को राह भला क्या दिखलाएगा
    baat mein gaharyi bhi hai geerayi bhi. aisi pukhtagi shabdon ke rakh-rakhav se apni dakshata dikha rahi hai..Pran ji se bahut aur seekhne ko mil raha hai..

    ReplyDelete

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