नाम: मायामृग
जन्म: 26 अगस्त, 1965
...कि जीवन ठहर न जाए (1999, बोधि प्रकाशन, जयपुर)
एफ-77, सेक्टर-9, रोड नं.-11, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाईस गोदाम, जयपुर
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भाई मायामृग चिँतनशील कवि हैँ।हर पल उनके हृदय मेँ कुछ न कुछ उथल पुथल मची रहती है।उनकी चिँताओँ मेँ व्यष्टि भी है और समष्टि भी,चेतन है तो जड़ भी है।वे कहीँ से भी सम्बन्धित हो जाते है और सुक्षम संवेदना उकेर जाते हैँ।इनकी कविताओँ मेँ भीतरी व बाहरी लय देखते-पढ़ते और सुनते ही बनती है।यह उनकी कविताओँ की विशिष्टता है।यहां इनकी पाँचोँ कविताएं बेहतरीन हैँ।बधाई!
ReplyDeleteबेहतरीन कविताएँ
ReplyDelete'सांप और आदमी' कविता पढ़कर अज्ञेयजी की कविता याद हो आई
सभी रचनाएँ प्रभावशाली हैं.
बधाइयाँ.
बहुत ही गहरा भाव लिए है मायामृग जी की ये रचनाएँ, धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति हमेशा संग्रहणीय होती हैं।
ReplyDeleteइस बार भी है।
उत्तम!
सुनील जी, नरेन्द्र जी, आदाब
ReplyDeleteआखर कलश ब्लॉग के माध्यम से
नियमित रूप से आप
बेहतरीन रचनाएं पाठकों तक पहुंचा रहे हैं...
इसके लिये आपका आभार....
मायामृग जी की सभी कविताएं प्रभावशाली हैं.
’पगडंडी से सडक तक’ और
’साँप और आदमी’ खास तौर पर पसंद आईं.
Shayad in kavitaaon ko shabdon me paribhashit nahi kiya ja sakta......par nadi to boli.......ek vish kanya ke samaan apna raudra roop dikha kar leel gayi sab kuchh............
ReplyDeleteShayad in kavitaon ko shabdon me paribhashit nahi kiya ja sakta.........par nadi boli........raudra roop me vish kanya ban leel gayi.......na jaane kya kya!!!
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