राजस्थान के सीमावर्ती जिले बाडमेर के माडपुरा गांव में १ अगस्त, १९४८ को जन्म। राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से सन् १९७१ में हिन्दी साहित्य में स्नात्कोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद जोधपुर विश्वविद्यालय से मुक्तिबोध की रचना-प्रक्रिया पर शोध-कार्य। हिन्दी और राजस्थानी में कवि, कथाकार, समीक्षक और संस्कृतिकर्मी के रूप में सुपरिचित। सन् १९६९ से कविता, कहानी, उपन्यास, आलचना, संवाद और अनुवाद आदि विधाओं में निरन्तर लेखन और प्रकाशन। जन संचार माध्यमों विशेषत; पत्रकारिता, आकाशवाणी और दूरदर्शन में सम्पादन, लेखन, कार्यक्रम नियोजन, निर्माण और पर्यवेक्षण के क्षेत्र में सतीस वर्षों का कार्य अनुभव।
प्रकाशन: राजस्थानी में अंधार पख (कविता संग्रह) ,दौर अर दायरौ (राजस्थानी में आलोचना), सांम्ही खुलतौ मारग (उपन्यास) बदळती सरगम (कहाणी संग्रह) हिन्दी में झील पर हावी रात (कविता संग्रह), संवाद निरन्तर (साक्षात्कारों का संग्रह), और साहित्य परम्परा और नया रचनाकर्म (हिन्दी आलोचना), हरी दूब का सपना (कविता संग्रह), संस्कृति जनसंचार और बाजार (मीडिया पर केन्दि्रत निबंधों का संग्रह) कवि लच्छीराम तावणिया कृत करण-कथा का पाठ-संपादन एवं विवेचन (शोध) और ’आगे खुलता रास्ता‘ (अनुदित हिन्दी उपन्यास) प्रकाशित।
सम्पादन: सन् १९७१-७२ में जोधपुर से प्रकाशित दैनिक ‘जलते दीप‘ का संपादन। सन् १९७२ से १९७५ तक राजस्थानी साहित्यिक पत्रिका ‘हरावळ‘ का संपादन। सन् १९८९ में राजस्थान साहित्य अकादमी से प्रकाशित ‘राजस्थान के कवि‘ श्रृंखला के तीसरे भाग रेत पर नंगे पांव का संपादन, १९८७ में राजस्थान शिक्षा विभाग द्वारा प्रकाशित सृजनधर्मी शिक्षकों की राजस्थानी रचनाओं के संकलन सिरजण री सौरम, और वर्ष २००७ में नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, नई दिल्ली से स्वतंत्रता के बाद की राजस्थानी कहानियों के संकलन तीन बीसी पार का संपादन ।
सम्मान: राजस्थानी ग्रेजुएट्स नेशनल सर्विस एसोसिएशन, मुंबई द्वारा ‘अंधार पख‘ पर वर्ष की श्रेष्ठ कृति का पुरस्कार सन् १९७५ में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा ‘दौर अर दायरौ‘ के लिए नरोत्तमदास स्वामी गद्य पुरस्कार सन् १९८४ में द्वारिका सेवा निधि ट्रस्ट, जयपुर द्वारा राजस्थानी साहित्य की विशिष्ट सेवा के लिए पं ब्रजमोहन जोशी गद्य पुरस्कार सन् १९९५ में मारवाडी सम्मेलन, मुंबई द्वारा ‘सांम्ही खुलतौ मारग‘ पर घनश्यामदास सराफ साहित्य पुरस्कार योजना के अन्तर्गत ‘सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार २००२ में। दूरदर्शन महानिदेशालय द्वारा षरतीय षषाओं की कालजयी कथाओं पर आधारित कार्यक्रम श्रृंखला के निर्माण में उल्लेखनीय योगदान के लिए विशिष्ट सेवा पुरस्कार, सन् २००३ में सांम्ही खुलतौ मारग पर केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार २००४ में और संबोधन संस्थान, कांकरोली द्वारा वर्ष २००५ में हरी दूब का सपना पर आचार्य निरंजननाथ साहित्य पुरस्कार से सम्मानित। के.के. बिडला फाउंडेशन का ’बिहारी पुरस्कार-२००८‘ काव्य-कृति ’हरी दूब का सपना‘ पर और सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा ’संस्कृति जनसंचार और बाजार‘ पर वर्ष २००७ का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार,।
सम्प्रति: दूरदर्शन केन्द्र जयपुर पर वरिष्ठ निदेशक के पद से सेवा-निवृत्त।
स्थाई पता: ७१/२४७, मध्यम मार्ग, मानसरोवर , जयपुर ३०२०२०।
vah!anand aa gaya nand ji ki kavitayen padh kar.aakhar kalash parivar ko is behtreen upkram ke liye sadhuwad! Nand ji ki in panchon kavitao me thaar ke jeevan-bimb sajeev ho uthte hain.aadim jeeveshna kan kan me pal pal rupayit hoti hai or chetan se jad ki or vistrit hoti jati hai.anubhutiyon ki suksham evam vilakshan pratikriyayen man ko aandolit kar jati han.dhori ka tan apne bheetar rache base jeevan ke ateet ko mehsoosta hai ya fir Nand ji!BADHAI HO!
व्यक्तिगत परिस्थितियाँ जो भी रहें सामाजिक परिस्थितियां कहीं न कहीं एक ही होती हैं, आदरणीय नन्द जी की कविताये वर्तमान सत्य को उदघाटित करती लगीं पढने का सौभाग्य मिला रचनाकार को भी धन्यवाद ...... एक अनकही हामी का आपसी रिश्ता ऐसे ही बना रहता है दोनों के बीच बरसों-बरस! ......
आज 'आखर कलश' वेब पत्रिका के चार माह पूर्ण हुए हैँ।यह वेब पत्रिका मेरी प्रिय पत्रिका है अतः मैँ इसके सम्मान मेँ कविताएं आखर कलश से लाया हूँ। मैँ इस वेब पत्रिका के सुदीर्घ भविष्य की कामना करता हूं तथा इस के निस्वार्थ सम्पादकोँ को बधाई प्रेषित करता हूं।
आदरनीय नन्द जी कि कविताओं से रूबरू होने का आज जो सोभाग्य प्राप्त हुआ उसके लिए आखर कलश की आभारी हूं ....!आपकी कविताओं में जहाँ एक ओर जड़ों से से जुड़ाव परिलक्षित हो रहा है वंही संवेदना की अनुगूँज भी है ,नन्द जी सर की लेखनी में पीढ़ियों को प्राण दे सकने की क्षमता भी है ..इनके हस्ताक्षरों के प्रमाण हमारे लिए प्रेरणा है ...!उम्मीद है आप हमारा मार्गदर्शन करेंगे ..!
आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए कोटिशः धन्यवाद और आभार ! कृपया गौर फरमाइयेगा- स्पैम, (वायरस, ट्रोज़न और रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त) टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन ना चाहते हुवे भी लागू है, अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ पर प्रकट व प्रदर्शित होने में कुछ समय लग सकता है. कृपया अपना सहयोग बनाए रखें. धन्यवाद ! विशेष-: असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।
About this blog
आखर कलश पर हिन्दी की समस्त विधाओं में रचित मौलिक तथा स्तरीय रचनाओं को स्वागत है। रचनाकार अपनी रचनाएं हिन्दी के किसी भी फोंट जैसे श्रीलिपि, कृतिदेव, देवलिस, शुषा, चाणक्य आदि में माईक्रोसोफट वर्ड अथवा पेजमेकर में टाईप करeditoraakharkalash@gmail.comपर भेज सकते है। रचनाएं अगर अप्रकाशित, मौलिक और स्तरीय होगी, तो प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसी अप्रत्याशित कारणवश रचनाएं एक सप्ताह तक प्रकाशित ना हो पाए अथवा किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त ना हो पाए तो कृपया पुनः स्मरण दिलवाने का कष्ट करें।
महत्वपूर्णः आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियों, साहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।
आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचनाकार की रचना व अन्य सामग्री की कॉपी करना अथवा अपने नाम से कहीं और प्रकाशित करना अवैधानिक है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी जिसने सामग्री कॉपी की होगी। अगर आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचना को प्रयोग में लाना हो तो उक्त रचनाकार की सहमति आवश्यक है जिसकी रचना आखर कलश पर प्रकाशित की गई है इस संन्दर्भ में एडिटर आखर कलश से संपर्क किया जा सकता है।
ॐ श्री गणेशाय नमः ! या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना | याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
हां, आज ही, जरूर आयें
-
विजय नरेश की स्मृति में आज कहानी पाठ
कैफी आजमी सभागार में शाम 5.30 बजे जुटेंगे शहर के बुद्धिजीवी, लेखक और कलाकार
विजय नरेश की स्मृति में कैफ़ी आज़मी ...
डेढ़ दिन की दिल्ली में तीन मुलाकातें
-
*दिल्ली जिनसे आबाद है :* कहने को दिल्ली में दस दिन रहा, पर दस मित्रों से
भी मुलाकात नहीं हो सकी। शिक्षा के सरोकार संगोष्ठी में भी तमाम मित्र आए थे,
पर...
‘खबर’ से ‘बयानबाज़ी’ में बदलती पत्रकारिता
-
मीडिया और खासतौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया से ‘खबर’ गायब हो गयी है और इसका
स्थान ‘बयानबाज़ी’ ने ले लिया है और वह भी ज्यादातर बेफ़िजूल की बयानबाज़ी.
नेता,अभिनेता...
दीवाली
-
*दीवाली *
एक गंठड़ी मिली
मिट्टी से भरी
फटे -पुराने कपड़ो की
कमरे की पंछेती पर पड़ी !
यादे उभरने लगी
खादी का कुर्ता ,
बाबूजी का पर्याय
बेलबूटे की साडी साडी ...
नए घरोंदों की नीव में- दो बिम्ब
-
*नतमस्तक हूं*
========
मैने नहीं चखा
जेठ की दुपहरी में
निराई करते उस व्यक्ति के
माथे से रिसते पसीने को,
मैं नहीं जानता
पौष की खून जमा देने वाली
बर...
थार में प्यास
-
जब लोग गा रहे थे
पानी के गीत
हम सपनों में देखते थे
प्यास भर पानी।
समुद्र था भी
रेत का इतराया
पानी देखता था
चेहरों का
या फिर
चेहरों के पीछे छुपे
पौरूष का ही
...
मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
पांचों कविताओ में गहन चिंतन का समावेश है।
ReplyDeletevah!anand aa gaya nand ji ki kavitayen padh kar.aakhar kalash parivar ko is behtreen upkram ke liye sadhuwad!
ReplyDeleteNand ji ki in panchon kavitao me thaar ke jeevan-bimb sajeev ho uthte hain.aadim jeeveshna kan kan me pal pal rupayit hoti hai or chetan se jad ki or vistrit hoti jati hai.anubhutiyon ki suksham evam vilakshan pratikriyayen man ko aandolit kar jati han.dhori ka tan apne bheetar rache base jeevan ke ateet ko mehsoosta hai ya fir Nand ji!BADHAI HO!
व्यक्तिगत परिस्थितियाँ जो भी रहें सामाजिक परिस्थितियां कहीं न कहीं एक ही होती हैं, आदरणीय नन्द जी की कविताये वर्तमान सत्य को उदघाटित करती लगीं पढने का सौभाग्य मिला रचनाकार को भी धन्यवाद ......
ReplyDeleteएक अनकही हामी का आपसी रिश्ता
ऐसे ही बना रहता है दोनों के बीच
बरसों-बरस! ......
वाह... सार्थक प्रस्तुति... साधुवाद स्वीकारें...
ReplyDeleteNand jee kee sabhee kavitaaon kee sundar aur
ReplyDeletesahaj bhavabhivyakti ne prabhaavit kiyaa hai.
Badhaaee aur Shubh kamna.
आज 'आखर कलश' वेब पत्रिका के चार माह पूर्ण हुए हैँ।यह वेब पत्रिका मेरी प्रिय पत्रिका है अतः मैँ इसके सम्मान मेँ कविताएं आखर कलश से लाया हूँ। मैँ इस वेब पत्रिका के सुदीर्घ भविष्य की कामना करता हूं तथा इस के निस्वार्थ सम्पादकोँ को बधाई प्रेषित करता हूं।
ReplyDelete'आखर कलश' वेब पत्रिका के चार माह के इन सार्थक प्रयासों के लिए बधाई। नन्दजी की कविताएं आखर कलश को नये आयाम दे रही है।
ReplyDeleteआदरनीय नन्द जी कि कविताओं से रूबरू होने का आज जो सोभाग्य प्राप्त हुआ उसके लिए आखर कलश की आभारी हूं ....!आपकी कविताओं में जहाँ एक ओर जड़ों से से जुड़ाव परिलक्षित हो रहा है वंही संवेदना की अनुगूँज भी है ,नन्द जी सर की लेखनी में पीढ़ियों को प्राण दे सकने की क्षमता भी है ..इनके हस्ताक्षरों के प्रमाण हमारे लिए प्रेरणा है ...!उम्मीद है आप हमारा मार्गदर्शन करेंगे ..!
ReplyDeleteनन्द जी की सभी कवितायेँ प्रभावशाली हैं. आखर कलश के संपादकों को नन्द जी की ऎसी सुन्दर कवितायेँ पढ़वाने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteमहावीर शर्मा