ओम पुरोहित ‘कागद’ की कविताएँ

रचनाकार परिचय
नाम:- ओम पुरोहित 'कागद'
जन्‍म:- ५ जुलाई १९५७, केसरीसिंहपुर (श्रीगंगानगर)
शिक्षा:- एम.. (इतिहास), बी.एड. और राजस्थानी विशारद
प्रकाशित पुस्‍तकें- हिन्दी :- धूप क्यों छेड़ती है (कविता संग्रह), मीठे बोलों की शब्दपरी (बाल कविता संग्रह), आदमी नहीं है (कवितासंग्रह), मरूधरा (सम्पादित विविधा), जंगल मत काटो (बाल नाटक), रंगो की दुनिया (बाल विविधा), सीता नहीं मानी (बाल कहानी), थिरकती है तृष्णा (कविता संग्रह)
राजस्थानी :- अन्तस री बळत (कविता संग्रै), कुचरणी (कविता संग्रै), सबद गळगळा (कविता संग्रै), बात तो ही, कुचरण्यां, पचलड़ी, आंख भर चितराम।
पुरस्कार और सम्‍मान:- राजस्थान साहित्य अकादमी का आदमी नहीं हैपर सुधीन्द्र पुरस्कार’, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की ओर से बात तो हीपर काव्य विधा का गणेशी लाल व्यास पुरस्कार, भारतीय कला साहित्य परिषद, भादरा का कवि गोपी कृष्ण दादाराजस्थानी पुरस्कार, जिला प्रशासन, हनुमानगढ़ की ओर से कई बार सम्मानित, सरस्वती साहित्यिक संस्था (परलीका) की ओर सम्मानित।
सम्प्रति:- प्रधानाध्यापक शिक्षा विभाग, राजस्थान
ठावौ ठिकाणौ- २४, दुर्गा कॉलोनी, हनुमानगढ़ संगम ३३५५१२ (राजस्थान)
ब्‍लॉग:- 'कागद' हो तो हर कोई बांचे
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१.
आदमी नहीं है

बहुत नाम था मिट्टी का
मिट्टी भिगोई गई
थापी और पकाई गई
मिट्टी ईंट बनी
ईंट का बहुत नाम हुआ
लोग भूल गए मिट्टी को
ईंट से घर बना
घर का बहुत नाम हुआ
ईंट भुला दी गई।

घर
बहुत फैला घर
घर में आया आदमी
अब आदमी
बहुत बडा हो गया है
आदमी का बहुत नाम है
आदमी के सामने
घर बिलकुल गौण है
लेकिन भूली गई मिट्टी
आज भी
घर के नीचे है
भूली गई ईंट
आज भी घर की दीवारों में है
परन्तु
आदमी के भीतर
आदमी नहीं है।
*******
२.
कल फिर एक तारीख है

कल फिर
एक तारीख है
कल फिर
दूधवाला
परचून वाला
पान वाला
और न जाने कौन-कौन सी
बला वाला
पैसे मांग ले जाएगा।

कुछ
बच्चों की स्कूल फीस में
कुछ
पानी बिजली के बिल में
जाते-जाते
वेतन चुक जाएगा
और यूं उसका सफर
अधर में रुक जाएगा।

कल फिर तुम
अपनी साडी के लिये
बच्चों की ड्रेस के लिये
अपनी सहेलियों की
उधार चुकाने के लिये
पैसे मांगोगी
मैं
नहीं होने की बात कहूंगा
तुम रूठोगी
मैं मनाऊंगा
तुम मान जाओगी
फिर मैं हंसूंगा
तुम हंसोगी
बस यूं ही
जिन्दगी
एक माह और खिसक जाएगी।

उसके बाद
फिर एक तारीख आएगी
तुम्हारी महत्वाकांक्षाएं
और
घर की जरूरतें
मुंह बाएंगी
नतीजा
तुम्हें पता है
इसलिये निराश मत होना
यह वह धारे हैं
जो यूंही बहते हैं
बस इसी को
हम लोग जिन्दगी कहते हैं। 
*******
सडक- एक

यहां से वहां
दूर-दूर तक
सडक ही सडक
कहीं ओर न छोर
परन्तु
सडक हर ओर
जो नहीं ठहरती
किसी शहर में
निकल जाती है
गली-मौहल्ले
चौक-चौराहे
गाहे-बगाहे
और
पहुंच कर
दूसरे शहर में
निकल कर
फिर-फिर से
किसी शहर से
दम तोड देती है सडक
हारी-थकी
प्यासी हिरनी सी
किसी गांव के किनारे
*******
सडक- दो

रेत नहीं चाहती
पगडंडियां को खोना
बिफर जाती है
गांव की ओर बढती
सडक पर
और
हाँय-हाँय करती
बिछ जाती है
उलटकर
सडक पर
क्योंकि, वह जानती है
सडक ले जाएगी
ढोकर गांव से
अथाह मोहब्बत
और
कर देगी कत्ल
किसी शहरी चौराहे पर।
************** 

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11 Responses to ओम पुरोहित ‘कागद’ की कविताएँ

  1. रवि जी की कविताएं जिन्दगी के हर पहलुओं को छुती हुई नज़र आई।बेहतरीन प्रस्तुति,धन्यवाद।

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  2. भूली गई ईंट
    आज भी घर की दीवारों में है
    परन्तु
    आदमी के भीतर
    आदमी नहीं है।

    आपने एक कड़वा सच लिखा है. मतलबी दुनिया है . हर चीज / व्यक्ति को जरुरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जाता है और जरुरत पूरी हो जाने के बाद उसे भुला दिया जाता है. बहुत ही उम्दा .

    ReplyDelete
  3. पहली कविता आदमी नहीं हैं हल्के से एक खरोंच दे देती है। दूसरी कविता का विषय एक मध्यवर्गीय परिवार से जुड़ता हुआ उस समाज की तक़लीफ़ को रेखांकित कर देता है तो तीसरी कविता गाँव और शहर के मूल्यों की ओर संकेत करती है। मुझे लगता है कि यह एक तरह का प्री-सैट एटीट्यूड है जो आज अधिक कृत्रिम लगता है। अच्छे-बुरे लोग और अच्छे-बुरे मूल्य जितने शहरों में हैं उससे ज़्यादा कहीं गाँवों में हो गए हैं। इस तरह का सामान्यीकरण कविता को कमज़ोर करता है।

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  4. अद्भुत रचनाएँ हैं...पढने में आनंद भी आया और सोचने को विवश भी हुए...औम जी की लेखनी को नमन...
    नीरज

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  5. यह वह धारे हैं
    जो यूंही बहते हैं
    बस इसी को
    हम लोग जिन्दगी कहते हैं।

    वाकई ,ज़िन्दगी की हकीकत को बखूबी दर्ज किया है आपने.
    बधाई.

    ReplyDelete
  6. कविता कविता में अंतर होता है। बहुत गहरी चोट कर गयीं ये कवितायें। कविता क्‍या होती है सीखने के लिये अच्‍छे उदाहरण हैं।

    ReplyDelete
  7. ॐ जी धन्यवाद 'आदमी नहीं है' की कविता रचनाकार के ज़रिये पाठकों तक पहुंचाने का. 'धुप क्यूँ छेड़ती है' की कुछ कवितायेँ पढने को मिलें तो बात बने....!

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  8. aadmi jb bda hua
    tbhi ghr gaun hua
    kl tlk jo kuch n tha
    aaj jb"mai" hua
    "tu" kon ho gya.......

    shayd yhi sch h..
    bhoolna duniya ki aadt hai
    duniyadari ki yhi rwaiyat hai...

    chhoti rchnaye bdi baat,yhi khasiyat hai rchnakar ki,kuch aur rchnaye pdnne ko milegi isi umeed k saath...

    anjuananya

    ReplyDelete
  9. ईंट से घर बना
    घर का बहुत नाम हुआ
    ईंट भुला दी गई।

    रेत नहीं चाहती
    पगडंडियां को खोना
    बिफर जाती है
    गांव की ओर बढती......

    'आदमी नहीं है', 'जल फिर एक तारीख है', 'सड़क - एक' और 'सड़क - दो' बहुत सुन्दर महत्वपूर्ण रचनाएं हैं. बधाई स्वीकारें.
    सडक पर महावीर शर्मा

    ReplyDelete
  10. बहुत नाम था मिट्टी का
    मिट्टी भिगोई गई
    थापी और पकाई गई
    मिट्टी ईंट बनी
    ईंट का बहुत नाम हुआ
    लोग भूल गए मिट्टी को
    ईंट से घर बना
    घर का बहुत नाम हुआ
    ईंट भुला दी गई।
    Aagaaz ant ka parichay deta hua..bahut khoob likha hai Om Purohit ji

    ReplyDelete
  11. wah kagad ji bahut hi sunder rachnayein hai...

    ReplyDelete

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