जितेन्‍द्र कुमार सोनी की कविताएं


जितेन्‍द्र कुमार सोनी
रचनाकार परिचय
नामः जितेन्द्र कुमार सोनी
पिताः श्री मोहन लाल सोनी
माताः श्रीमती रेशमा देवी
जन्मः २९ नवम्बर १९८१ ग्राम धन्नासर, तह. रावतसर, जिला हनुमानगढ
शिक्षाः बी.एस.सी., एम.ए. दर्शनशास्त्र, राजनीति विज्ञान, स्लेट दर्शनशास्त्र, नेट राजनीति विज्ञान, तीन बार, सी.जी.एन.आर., बी.एड., उर्दू में डिप्लोमा, जे.आर.एफ. राजनीति विज्ञान, हमेशा प्रथम श्रेणी प्राप्त।
सहशैक्षणिक गतिविधियाँ:
१.   वाद-विवाद, सेमिनार, भाषण प्रतियोगिता आदि में सक्रिय भागीदारी।
२.   विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विद्यार्थी जीवन से ही सतत् रूप से रचनाएं प्रकाशित।
३.   आकाशवाणी सूरतगढ व जम्मू केन्द्र से कविताएं व वार्ताएं प्रसारित।
४.   विभिन्न शैक्षणिक, सामाजिक व राजकीय कार्यों से जुडे कार्यक्रमों  में प्रभावी मंच संचालन।
५.  युवराज फीचर्स ,नई दिल्ली, टाबर टोली, नोहर टाईम्स, प्रभात केसरी, अनूपगढ ज्योति, सच कहूँ, मरु गुलशन आदि में अनवरत रचनाएं प्रकाशित।
६.   राष्ट्रीय मेरिट छात्रवृत्ति व राजस्थान एज्यूकेशनल ट्रस्ट की फैलोशिप हेतु चयनित।
७.  शिवाजी फाउंडेशन, जयपुर द्वारा हिन्दू संस्कृति द्रोणाचार्यरजत पदक व समर्पित अध्यापकरजत पदक।
८.   अतिरिक्त जिला कलेक्टर, उपखण्ड-रावतसर द्वारा स्वतन्त्रता दिवस २००६ पर शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेतु प्रशस्ति-पत्र।
९.   लायन्स क्लब, हनुमानगढ द्वारा शिक्षक दिवस, २००६ तथा २००८ पर शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित।
१०.  ग्राम पंचायत, नेठराना द्वारा गणतन्त्र दिवस २००७ पर विद्यालय विकास हेतु प्रशस्ति पत्र।
११.  सरस्वती साहित्य वाटिका, गोरखपुर उ.प्र., द्वारा सरस्वती काव्य प्रतिभापुरस्कार २००८, और अ.भा.साहित्य परिषद्, उदयपुर से काव्य कलाधरपुरस्कार २००९,
१२. आई.सी.डब्ल्यू.सी.सी.आर., जयपुर के द्वारा पर्यावरण रतनपुरस्कार २००७
१३.  विनीत मैमोरियल फाउण्डेशन , हनुमानगढ के द्वारा २५ दिसम्बर २००९ को अति विशिष्ट प्रतिभासम्मान
१४.  माननीया प्रतिभा पाटील के सम्मुख गांधी जी पर आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रीय सेमीनार में पत्रवाचन
१५. पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम द्वारा वैचारिक योगदान हेतु ष्ेजा गया एक प्रशंसा-पत्र
व्यवसायः अध्यापक
चयनः आर.ए.एस. में पुरुष वर्ग में सर्वोच्च स्थान व सम्पूर्ण वरीयता सूची में तीसरा स्थान, हनुमानगढ जिले में पहली बार माध्यमिक शिक्षा विभाग से चयनित आर.ए.एस.
कृतियां: उम्मीदों के चिराग खिहन्दी काव्य संग्रह,, सकारात्मक सोच से सफलता की ओर डाईट, हनुमानगढ के द्वारा प्रकाशित फोल्डर, ,मिनखपणो ख्राजस्थानी कविता संग्रह, प्रकाशनाधीन,
सम्‍पर्क: पुराने राधास्वामी सत्संग भवन के पास, रावतसर-३३५५२४, जिला हनुमानगढ
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[1]मेरा परिचय

मेरा परिचय

जानने से पहले
बता दूँ
अपने घर के बारे में
वहाँ मिलेंगे
दीवारों पर घावों के निशान
कपडों पर मकड़ी के जाल को
बुनते पैबंद
चूस लिए गए डिब्बे
मुहँ चिढाता आटे का कनस्तर
ठंडा पडा चूल्हा
चूहों के खाली बिल
बारिश में टपकती छत
और पीठ से चिपके हुए पेट
अब भी अगर तुम चाहते हो
मुझे जानना
तो फ़िर स्वागत है
क्योंकि जान गया हूँ
तुम्हारे पाँव
अभी जमीन पर हैं !

[2]फर्क


घर के भीतर

कुत्ते के आगे
बासी रोटियों का ढ़ेर
घर के बाहर
भीख माँगते बच्चे का
कटोरा खाली है दो दिन से !

[3] कबूतर


मुझे नहीं लगता

हमारे पूर्वज
बन्दर थे
क्योंकि वे
अपनी जात के
किसी जीव पर आए
संकट में
हो जाते हैं एक
करते हैं विरोध
नहीं रह सकते
कभी चुप
हमारे पूर्वज तो थे
कबूतर
तभी तो
समाज में किसी इंसान पर
जुल्म और अन्याय होता देखकर
लगा लेते हैं जुबान पर ताला
कहीं मुसीबत न पड़ जाए
हमारे गले
नहीं करते हैं कुछ भी
बने रहते हैं अनजान
सबकुछ देखकर भी
क्योंकि हमने सीख लिया है
कबूतर की तरह
मुसीबत की घड़ियों में
आँखे मींच लेना

[4] फुटपाथ


अँधेरी रात में

फुटपाथ पर बैठे
एक बूढे बाप ने
मुझसे पूछा
क्यों बांस की तरह
जल्दी बड़ी हो जाती हैं
उनकी बेटियाँ
गरीबी और जवानी
दो दुश्मनों को साथ लेकर
कैसे देख पाएगा वह
उन वासना के कीड़ों को
जो कुलबुलाते फिरते हैं
उसकी फुटपाथ के चारों ओर
कैसे सह पाएगा
उनकी गन्दी व छिछली बातें
जो गरम शीशे की तरह
उसके कानों में उतर जाएँगी
कैसे बचा पाएगा अपनी बेटी को
उन प्रलोभनों और सुनहरे वायदों से
जो अक्सर भँवरे फूलों को दिया करते हैं
मुझे लगा
किसी ने मेरा सीना चीर दिया
मैं क्या कर सकता था
नम आँखों से
सिवाय एक प्रार्थना के
हे भगवान्
या तो इन गरीबों को बेटियाँ न देना
अगर देनी ही हैं
तो फिर बड़ा न करना
बड़ा न करना

**************
- जितेन्‍द्र कुमार सोनी

E-mail :     jksoni2050@gmail.com

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13 Responses to जितेन्‍द्र कुमार सोनी की कविताएं

  1. हमारे पूर्वज तो थे
    कबूतर / तभी तो / समाज में किसी इंसान पर
    जुल्म और अन्याय होता देखकर / लगा लेते हैं जुबान पर ताला
    कहीं मुसीबत न पड़ जाए / हमारे गले नहीं करते हैं कुछ भी
    बने रहते हैं अनजान / सबकुछ देखकर भी
    क्योंकि हमने सीख लिया है / कबूतर की तरह
    मुसीबत की घड़ियों में / आँखे मींच लेना
    प्रभावकारी विषय वस्तु ।
    कबूतर के माध्यम से मानवीय प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य है। साधुवाद!!
    कृपया इसे भी पढ़िए

    कर रहे थे मौज-मस्ती जो वतन को लूट के।
    रख दिया कुछ नौजवानों ने उन्हें कल कूट के।।

    सिर छिपाने की जगह सच्चाई को मिलती नहीं,
    सैकडों शार्गिद पीछे चल रहे हैं झूट के।।

    ReplyDelete
  2. भाई जितेन्द्र सोनी जी, इधर की कविता मेँ आपका नाम संभानायुक्त है।मैँ आप मेँ छुपे एक अच्छे कवि को पहचानता हूं।इन पंक्तियोँ के बाद कहूं कि इन कविताओँ मेँ संवेदनाओँ का अंबार है,भयावह कथानक है और चिँतन भी है मगर शिल्प कमजोर है तो गलत न होगा।यथार्थ के बिम्बोँ के साथ चिँतन का मिश्रण बड़े तीव्र आवेग मेँ व्यक्त करते समय बहुत सा अनुभव पीछे छूट जाता है।स्वाध्याय के बाद मानोगे कि छूटा भी है।विवरणात्मकता भी कविता की अतिरिक्त कमजोरी है।अपने विद्वान को दूर रख कर यदि हम दिल से कविता लिखेँ तो अधिक मुखर होगी।ऐसा नहीँ है कि इन किविताओँ को खारिज कर रहा हूं बल्कि कह रहा हूं कहानी अच्छी है।धैर्य रख सिरजन करेँ। आपकी कविता यात्रा और ऊंचाई छूए इस निमित लिखा है वरना इधर की बहुत सी कविताओँ से ये कविताएं बहुत अच्छी हैँ।बधाई हो!

    ReplyDelete
  3. कबूतर और फ़ुटपाथ इन दोनों रचनाओं के रूप में अति सुंदर भावाभिव्यक्ति

    तभी तो
    समाज में किसी इंसान पर
    जुल्म और अन्याय होता देखकर
    लगा लेते हैं जुबान पर ताला
    कहीं मुसीबत न पड़ जाए
    हमारे गले
    नहीं करते हैं कुछ भी
    बने रहते हैं अनजान
    सबकुछ देखकर भी

    बहुत बढिया

    ReplyDelete
  4. जितेन्द्र की चारों कविताएँ मन को छू गई...इन गरीबों को बेटियां ना देना...या फिर इन्हें बड़ी ना करना...वाह !
    टाबरटोळी

    ReplyDelete
  5. जीतेन्द्र जी ने अपनी चारों कविताओं में ज़मीनी सच्चाई की बात उठाते हुए अपनी लेखनी के फ़लक को विचारों का विस्तार दिया है ..!उन्होंने समाज की घटनाओं परिघटनाओं का बना बहुत बारीकी से बुना है ,वे अपने शब्दों में अपने दायित्व बोध के साथ उपस्तिथ नज़र आतें हैं | साधुवाद !

    ReplyDelete
  6. चारों कविताएँ मन को छू गई। सही मुद्दा उठाया है आपने,वास्तविकता यही जीवन की,बधाई हो।

    ReplyDelete
  7. जितेन्द्र जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी है..आप की कविताएं यथार्थ के धरातल पर अवस्थित है..छोटी-छोटी कविताओं के माध्यम से आपने समाज की विसंगतियों,विडम्बनाओं को उभारा है।

    ReplyDelete
  8. जो जैसा देखा, उसे वैसा का वैसा शब्‍दश: व्‍यक्‍त कर देना या उसमें चिंतन और भावाभिव्‍यक्ति सम्मिलित करना, शायद यही है जो एक कविता और एक अच्‍छी कविता में अंतर करता है। जितेन्‍द्र जी आपकी चारों कविताओं में खुलकर सामने आती आपकी सोच और भावाभिव्‍यक्ति कहती है कि बहुत आगे जायेंगे।

    ReplyDelete
  9. अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

    ReplyDelete
  10. jitender ji, aap mayad bhasha rajasthani me srijan karo ne in ro maan badhaavo in saaru aapne ghana-ghana rang ne lakhdaad. o vindo saraswat aap ne salaam ne mujro kare saa. mhne aapri mayad bhasha punjabi su ghano het hai. mhaare ghar me dinuge-dinuge punjabi ro bhajan gunje. "satguru me teri patang, hava de vich udti jaavaangi. ho baba dor hatho chhdi ne me kati jaavaangi. ini bhaant bhasha ri triveni. rajasthani, punjabi ar haryaanvi ne mhe baalpan su hi pokhto aa reyo hoon. mhaaro baalpan bikaner zile re nokha kasbe me bityo. bathe haryana raa mukhya mantri bhajan lal ji saal me do bela mukaam mele par padhaarta tad ve aapre saage. ek saanskritik mandli laavtaa. un me in tinu bhasha raa kalaakaar hovta. ve raat bhar aapri ranga rang prstuti devta. in me baari baari su in teenu bhashaavaa me gaavan re saathe- saathe naach bhi hovto. mhaare baal man ne o ghano aachho laagto. in teena maay su ek bhi bhasha jaananio e teenu bhashavaa araam su samajh sake. kyuke in teena maay aapsari ro isso seer hai ke koi in ne baant ni sake.

    ReplyDelete
  11. jitendra ji aapki rachnaye jivan ka aaina si hai garib ki bebasi ,inko betiya na dena ,de to bada na karna ...........dil kya anter aatma ko hila gai hai ...achha laga aapko pad ker,aabhar

    ReplyDelete
  12. Jitender ji Aap ki payri or Dil k Aas pas ki sunder kavitye Mera prichye, ferk, kabuter or phutpath bhut hi sunder legi. sadhu vad

    ReplyDelete

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