संजय आचार्य ’वरुण’ की कविता

संजय आचार्य ’वरुण’
आज हम आपको एक युवा रचनाकार संजय आचार्य ’वरुण’ से रूबरू करवाने जा रहे हैं जो गद्य-पद्य में कुशल लेखन के साथ-साथ, एक बेहतरीन मंच संचालक भी हैं। दर्जनों कवि सम्मेलनों और मुशायरों में शिरकत करने वाले ’वरुण’ की एक काव्य पुस्तक ’मुट्ठी भर उजियारो’ (राजस्थानी) प्रकाशित हो चुकी है।





मुझसे कह देना

जब उजास की बात करो तो
मुझ से कह देना

जब धरती पर गंगाजल सी
किरणें उतरे आकर
सारा कल्मष धुल जाता है
ताप सूर्य का पाकर

कुदरत की जब कहो कहानी
मुझसे कह देना

घर की देहरी पर छोटा सा
दीप हमेशा धरना
उसका काम यही होगा बस
पल-पल तम को हरना

अंधियारे से लडना हो तो
मुझसे कह देना

एक पलक में चाँद छुपा है
एक पलक मे सूरज
कई समन्दर सबके भीतर
इसमें कैसा अचरज

जब काया का चित्र उकेरो
मुझसे कह देना

जिसने अपने भीतर-भीतर
खुद को ही ललकारा
खुद को किया पराजित जिसने
उससे ये जग हारा

भरनी हो हुंकार अगर तो
मुझसे कह देना

जीवन की बारहखडी बांची
शब्द नहीं घड पाया
जितना-जितना भरा स्वयं को
उतना खाली पाया

अर्थ उम्र का मिल जा तो
मुझसे कह देना

एक किनारे सत्य खडा है
एक किनारे मेला
बीच में है इस दुनिया
आता जाता रेला

चलना हो उस पार अगर तो
मुझसे कह देना।
*******
-आचार्य संजय 'वरुण'
आचार्यों का चौक, जीतमल पिरोल, बीकानेर 

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17 Responses to संजय आचार्य ’वरुण’ की कविता

  1. प्रिय वरुण जी आप की कविता संवेदना पूर्ण है मेरी शुभ कामनाएं

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  2. एक पलक में चाँद छुपा है
    एक पलक मे सूरज
    कई समन्दर सबके भीतर
    इसमें कैसा अचरज

    जब काया का चित्र उकेरो
    मुझसे कह देना

    बहुत खूबसूरत संजय, बहुत खूब, वाकई, लाजवाब, यह पंक्तियां अब मेरी जुबान चढ गई, भूल जाओ तो मुझसे कह देना ।

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  3. संजय आचार्य "वरुण" का गीत ...."मुझसे कह देना" में ..अंधियारे से लड़ना हो तो मुझसे कह देना....अर्थ उम्र का मिल जाए तो मुझसे कह देना...वाह ! क्या बात है. बहुत बढ़िया..इस गीत के अंतिम अंतरे में लगता है कोई शब्द छूट गया है..खैर, टाइप में कोई त्रुटि रह गई होगी...बहुत बहुत बधाई....कवि वरुण और आखर कलश की टीम ..यानी ... दोनों को....

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  4. जब उजास की बात करो तो
    मुझ से कह देना
    mujhe bhi kahna.......main is kalam me aur bhar dungi

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  5. sanjay ji, aapki rachna bahut hi sunder hai or jo shabad apne use kiye hai wo bhi ati sunder hai badhai ho - sanjay janagal

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  6. बहुत बढ़िया और ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!

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  7. संजय वरूण मेरे सर्वाधिक पसंदीदा कवि हैं, उनकी कविताओं में गहन अनुभूतियों का स्‍पर्श ठण्‍डी हवा ज्‍यूं मन को सहला जाता है, नैराश्‍य के घोर तमस में भी संजय द़ढ प्रतिज्ञ हो जीवन को नये कोण से देखने का इशारा करता है, मुझसे कह देना, यह पंक्ति ही पाठक के साथ किसी के होने का अहसास कराती है ऐसा लगता है कि वह अकेला नहीं है, जीवन में चाहे जितने तमस के कांटे हों, उजाले की हूंकार भरने के लिए कवि तत्‍पर है, शुभाभिलाषाएं संजय के लिए और आभार आखर कलश को ऐसे सच्‍चे शब्‍द छलकाने के लिए

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  8. एक किनारे सत्‍य खडा है एक किनारे मेला
    बीच में है इस दुनिया का आता जाता रेला
    चलना हो उस पार अगर तो
    मुझसे कह देना

    वाह, कितनी सुन्‍दर पंक्तियां है, संजय एक उभरते हुए कवि हैं किंतु इनकी पंक्तियां परिपक्‍वता का संकेत करती हैं, कुकुरमुत्‍तों की तरह उग आए ढेरों कवियों के बीच संजय का काव्‍य सुकुन प्रदान करता है, संजय हिन्‍दी काव्‍य की पारम्पिरिक पीढी के सच्‍चे उत्‍तराधिकारी हैं मेरी शुभ कामनाएं और संजय, संजय बने रहें यही कामना है

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  9. जीवन की बारहखडी बांची
    शब्द नहीं घड पाया
    जितना-जितना भरा स्वयं को
    उतना खाली पाया

    लग रहा है कि इस कवि का प्रशंसक बनना पडेगा

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  10. क्या करुं संजय जी ? आपकी कविताओँ पर मैने टिप्पणियां भेजी हैँ उतनी तो शायद किसी ने किसी को नहीँ भेजी होगी।छपी लेकिन एक भी नहीँ।चलो कोई बात नहीँ-अब ले लो बधाई!
    बधाई!

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  11. Congratulation sanjay ji Acharya ‘Varun’ for your poetry "mujhe kah dena" its shows moral support there is various kind of support on behalf of good human being. This poetry treat us that we should think good and positive and trying to moral support to each other.
    I hurt so badly to know that some respective writer or person are giving comments and use words like ‘KUKKURMUTTA’ on other writers with personal bad intention. I think every writer is respective with his/her creation and thinks. And he is trying to put their thing to others..we have to encourage..not hurt him.. THANKS WITH REGARDS

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  12. MHNE BHI KE DIYA...SANJAY JI KAVITA TO THE CHOKHI E LIKHO PAN FOTU AA BHAGVATACHARJI JISI KIYAN LAGA MELI HE... KAVIYAVAN KARTE-KARTE KATHA KARNE RI MANN ME AAVAN LAGI KYA... MUJHKO KAH DENA...
    Harish B. Sharma, Bhopal

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  13. ‘जीवन की बारहखडी बांची
    शब्द नहीं घड पाया
    जितना-जितना भरा स्वयं को
    उतना खाली पाया......!‘
    क्या खूब लिखा है ! जीवन की बारह्खडी पढने वाले सामाजिक सरोकारों और मन के विचलन से उबरने में ही जिंदगी खपा देते हैं, शब्दों का स्वरूप कब निखारे-निहारे ? अर्थवाद के काल के मुहाने पर खडा जोगी मन भला भरी जेब के स्वप्न कैसे देखे ?
    भाई संजय, बहुत-बहुत बधाई और शुभेच्छाएं !
    रवि पुरोहित

    ReplyDelete

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