इमरोज़ की कवितायें - छलकते एहसास













()
एक दिन अमृता ने कहा 
चलो मिलकर रहते हैं
चलो मिलकर जीते हैं
और एक नई ज़िन्दगी शुरू हो गई 

()

फूलों से हाथ मिलाना 
अच्छा लगता है
लोगों से नहीं...
लोग फूल नहीं होते
फूल बहुत हैं
पर आदमी-
फूल नहीं हो पाता
जाने क्यूँ !

()

कानून सांस-सांस कैद 
मुहब्बत सांस-सांस आज़ाद
ज़िन्दगी जीकर ज़िन्दगी बनती है
शब्द जीकर 
नज़्म बनते हैं 
 *******

- इमरोज़ 

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24 Responses to इमरोज़ की कवितायें - छलकते एहसास

  1. और नज़्म पूरी ज़िन्दगी की सहयात्री बन जाती है
    एक-एक करके कई दिलों तक अपने मुकाम बनाती है
    चंद शब्दों का हाथ थामे
    बहुत कुछ समझा जाती है

    ReplyDelete
  2. फूलों से हाथ मिलाना
    अच्छा लगता है
    लोगों से नहीं...
    लोग फूल नहीं होते
    फूल बहुत हैं
    पर आदमी-
    फूल नहीं हो पाता
    जाने क्यूँ !
    वाह बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! बिल्कुल सही है! बेहद पसंद आया!

    ReplyDelete
  3. Shabd nazm ban jindgi ke maayne sikhala jaate hai...

    ReplyDelete
  4. शब्द जी कर नज़्म बनते हैं ...बस इसमें ही सारा सार है ...
    आभार ...!!

    ReplyDelete
  5. बहुत-बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  6. ....प्रभावशाली प्रस्तुति,बधाई!!!!

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  7. इमरोज की तीन कविताएँ : छलकते एहसास की प्रतिक्रिया में
    दीनदयाल शर्मा की तीन कविताएँ

    (1)
    अमृता ने ही कहा
    चलो मिलकर चलते हैं
    चलो मिलकर जीते हैं...
    कितना मुश्किल है
    पहल करना
    महान थी अमृता.

    (2)
    किसे नहीं अच्छा लगता फूल
    सुन्दरता सबको भाती है
    आदमी भले ही
    फूल नहीं बन पाता
    पर जब
    वह मुस्कुराता है
    खिलखिलाता है
    तब होती है बौछार
    भांति - भांति के फूलों से
    महक उठता है वातावरण
    बहने लगती है भिन्नी भिन्नी बयार
    और आसमान में दिखने लगता है
    सतरंगी इन्द्रधनुष ...

    (3)
    कुछ क़ानून की
    कैद में
    और कुछ
    मुहब्बत में
    कैद हैं.
    हम मर कर भी
    जी जाएँ
    जीना इसी का नाम है.

    साहित्य संपादक ( मानद )
    टाबर टोली, हनुमानगढ़ जं. -335512
    मोब : 09414514666

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  8. dil ko chhoo lene wali kavita kahi hai aapne...

    padh kar bahut hee achha laga...

    saanjha karne ke liye shukriyaa!

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  9. इमरोज कि अभिव्यक्ति पढ़ने के लिए दिशा देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
    कुछ अच्छा बाँट लेने का अहसास इसमें भी जुड़ा है.
    बाँट कर जो जियें या अहसास करें
    कीमत तो बढ़ ही जाती है.

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  10. gazb ki prastuti.........imroj ji ko padhna to hamesha hiachcha lagta hai.

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  11. ये एहसास ऐसे हैं जैसे जिंदगी ही नज़्म बन गयी हो....खूबसूरत

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  12. इस से बेहतर कविता पढी इन दिनो! बहुत सुंदर !

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  13. rashmi ji,
    bahut dhanywaad jo aapne imroz ji ki nazmon ko yahan preshit kiya. shubhkaamnayen.

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  14. इन लघु रचनाओं का एक -एक शब्द अन्त:स्थल को छू गया । धन्यवाद आपका ।
    शशि पाधा

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  15. पर आदमी-
    फूल नहीं हो पाता
    जाने क्यूँ !

    rashmi ji ...
    aapne imroze ji ki itne khoobsorat shabdo se mulakat kervaai....bahut khoobsorat ahesaas raha....

    aadmi phool ugata hai....per kabhi unke safer ko uski khoosboo ko apne mein utar nahi pata....
    isliye vo kabhi phool nahi ho pata....

    ReplyDelete
  16. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति।
    इमरोज़ साहब को दिली मुबारकबाद।

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  17. 'आखर कलश' अब रफ्तार पकड़ने लगा है।बधाई!
    *मैनेँ कल देरे एक टिप्पणी की थी।शायद वह अंतरजाल मेँ खो गई!
    भाई कुलवंत सिँह, रवि पुरोहित , तारा सिँह व इमरोज जी की प्रभावित करती हैँ।आप खूब मेहनत कर रहे हैँ।पुस्तक समीक्षा व कविता प्रतियोगिता भी शुरु करेँ।एक विषय दे कर उस पर कविताएं आमंत्रित करेँ।इस से रचनाकारोँ की रचनात्मकता बढ़ेगी।
    -ओम पुरोहित'कागद'

    ReplyDelete
  18. * मन-1
    तम
    बढ़ता ही जाता
    भीतर बाहर
    तपिश बहुत है।

    तम-तपिश
    साथ साथ चलते
    नहीं होता रोशन
    कोई कोना मन का।

    तम की आगोश
    उन्मुक्त तपिश!

    त्याग तपिश
    जला अलाव
    कर रोशन
    जगती सारी!

    *मन-2
    चाहे खिलना
    पुहुप सजीला
    दामन शत्रु
    धारे
    सेज कंटिली।

    आती पासंग
    मोहक तितली
    हर बाधा
    करती पार
    मन चुराती
    होती पार।

    दामन पुहुप का
    खाता हिलौर
    भरता हामी;
    यही तो होता
    सार प्यार का !

    *मन-3
    तन में मन
    मन मेँ तन
    तन मन
    या
    मन तन
    किस के पासंग कौन
    नहीँ चीँतता
    पुहुप धारे मौन।

    कब खिलता
    कब झरता
    पौन हठिली
    पल पल बहती
    महक चुराती
    लेखा करता कौन !

    *मन-4

    जिस डाली
    खिलता पुहुप
    डाली वह
    जाती झुक
    धरा इतराती
    गंध चुराती ।

    पुहुप महकाता
    बिछा पांखुरी
    दामन धरा का
    खूब सजाता
    प्यार जताता
    खो देता
    देह सँसारी!
    -ओम पुरोहित'कागद'
    omkagad.blogspot.com

    ReplyDelete
  19. इमरोज साहब की रचनाएँ मन को सदा की तरह फिर छू गयीं बधाई आखर कलश को इस चुनाव के लिए धन्यवाद.

    ReplyDelete
  20. imroz ji ko aakhr kalash me dekh bhut achha lga...imroz achha likhte he nhe achha jeete bhi h.AMRITA...unki kvita/unki soch/jise nhi ja skta kha/aur na he likha/jhalkti h wo to/uski aankho me/bolti h uske bolo me/rhti h dhanak c/aangan me/khil uthte h phool jhan/aaj bhi/uski mohabt ki roshnae se..../isse bda sch/mohbt ka/shayd nhi ho skta/k wo ../aaj bhi mojood h/us ghr k zre-zre me../roohani shiddat se.../jiska naam h IMROZ..../AIMI.../aur bhi bhut kuch.....thanks imroz ji

    ...............................................

    AMRITA...AMRITA....bs amrita...
    bs TU he TU...,
    aagaz bhi tu..anzaam bhi tu..
    Kaash..! hr mohabat..
    TU...he rhti..
    "MAI" na bnti....?
    (anjuananya)

    ReplyDelete
  21. imroz ji ko aakhr kalash me dekh bhut achha lga...imroz achha likhte he nhe achha jeete bhi h.AMRITA...unki kvita/unki soch/jise nhi ja skta kha/aur na he likha/jhalkti h wo to/uski aankho me/bolti h uske bolo me/rhti h dhanak c/aangan me/khil uthte h phool jhan/aaj bhi/uski mohabt ki roshnae se..../isse bda sch/mohbt ka/shayd nhi ho skta/k wo ../aaj bhi mojood h/us ghr k zre-zre me../roohani shiddat se.../jiska naam h IMROZ..../AIMI.../aur bhi bhut kuch.....thanks imroz ji

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    "MAI" na bnti....?
    (anjuananya)

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  22. गागर में सागर

    ReplyDelete

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