सजनवा हमारे
नयन बाण मारे
हम लजात जात
वो हँसत जात
जिया मा हिलोर उठत जात
सा रा रा रा ........
होली का हुडदंग
जागे मन मा तरंग
सजनवा को रंग डारूं
नयन कटार मारूं
पानी में डुबाय डारूं
मन की सब निकार डारूं
होरी के बहाने
सजना को रंग डारूं
सा रा रा रा ................ - वन्दना गुप्ता
सुनील सा, खमा घणी सा. एक कवि रो एक कथन के उन ने पतियारो है के कविता साची बात केवेला. होळी पर इ आपरी कवितावा साच सू सेमुंधे करावन री हाफल है. इन रे सागे ही आप इन तिवार री भी फगत लीक पूरिजन पर सागीड़ो मैनो मारयो है. कविता में केई ठोड मायड भाषा रो वपराव म्हारे सरीखा हेतालुआ में ह्ररख जगावन रे सागे-सागे इन पर आ छाप लगावे के हिंदी राजस्थानी रे थम्भा पर त्तिक्योदी है. html language में केई ठोड गलतिया रेगी. सो माफ़ी चावू सा.
क्या होली क्या ईद सब पर्व दें इक सन्देश ! हृदयों से धो दीजिए बैर अहम् विद्वेष !! होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार ! मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!
सुनील जी, आदाब आप तो बहुत गंभीर हो गये..... भई होली के दिन तो रंग उड़ाओ.....हा..हा...हा राजेन्द्र स्वर्णकार जी, वंदना गुप्ता जी और दीनदयाल शर्मा जी की रचनाएं बहुत अच्छी लगी सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
बन्धुवर! सभी होरिहरों की रचनाएं पढ कर मस्ती में डूब गया। सुन्दर काव्य संयोजन के लिए बधाई स्वीकार कीजिए! इसी के साथ नेचर का फैशन शो देखिए.......डॉ० डंडा लखनवी!
नेचर का देखो फैशन शो
-डॉ० डंडा लखनवी
क्या फागुन की फगुनाई है। हर तरफ प्रकृति बौराई है।। संपूर्ण में सृष्टि मादकता - हो रही फिरी सप्लाई है।।1
धरती पर नूतन वर्दी है। ख़ामोश हो गई सर्दी है।। भौरों की देखो खाट खाड़ी- कलियों में गुण्डागर्दी है।।2
एनीमल करते ताक -झाक। चल रहा वनों में कैटवाक।। नेचर का देखो फैशन शो- माडलिंग कर रहे हैं पिकाक।।3
मनहूसी मटियामेट लगे। खच्चर भी अपटूडेट लगे।। फागुन में काला कौआ भी- सीनियर एडवोकेट लगे।।4
इस जेन्टिलमेन से आप मिलो। एक ही टाँग पर जाता सो ।। पहने रहता है धवल कोट- ये बगुला या सी0एम0ओ0।।5
इस ऋतु में नित चैराहों पर। पैंनाता सीघों को आकर।। उसको मत कहिए साँड आप- फागुन में वही पुलिस अफसर।।6
गालों में भरे गिलौरे हैं। पड़ते इन पर ‘लव’ दौरे हैं।। देखो तो इनका उभय रूप- छिन में कवि, छिन में भौंरे हैं।।7
जय हो कविता कालिंदी की। जय रंग-रंगीली बिंदी की।। मेकॅप में वाह तितलियाँ भी- लगतीं कवयित्री हिंदी की।8
वो साड़ी में थी हरी - हरी। रसभरी रसों से भरी- भरी।। नैनों से डाका डाल गई- बंदूक दग गई धरी - धरी।।9
ये मौसम की अंगड़ाई है। मक्खी तक बटरफलाई है ।। धोषणा कर रहे गधे भी सुनो- इंसान हमारा भाई है।।10
कविता मेँ देश काल एवं परिस्थिति किसी न किसी रूप मेँ उपस्थित हो ही जाता है।जीवन अपनी गति एवं मति से चलता है लेकिन समष्टि मेँ हर पल कुछ न कुछ घटित होता रहता है जिस से कविता स्वत: प्रभावित हो जाती है। समाज की संवेदना एवं काल की व्यंजना को छोड़ कर कवि कभी आगे बढ़ ही नहीँ पाता।पायल की झनकार सुनना, रेश्मी ज़ुल्फोँ ,गोरे गालोँ- लबोँ को गुनना व्यष्टि का कर्म है।कवि के भीतर का सौँदर्ये गुण ग्राहक भी मुखरित होता है।सुख-दु;ख भी चलता रहता है और यह सब कुछ रुपाइत होता रहता है कविता मेँ।लेकिन आज रोटी, कपड़ा ,मकान, इंसानियत ,अमन औ चैन सब से बड़ा मसला है।टिप्पणियोँ मेँ दर्ज डा.डंडा लखनवी की इन सँदर्भोँ मेँ रचित बेहतरीन कविताओँ के सम्मान मेँ खड़ा होने को मन करता है। भाई राजेन्द्र स्वर्णकार, सुनील गज़ाणी, दीनदयाल शर्मा एवं वंदना जी कविताएं भी प्रभावित करती हैँ।नरेँन्द्र जी व्यास रचते कम हैँ रचने से बचते ज्यादा हैँ तभी तो अपने अंदाज ऐ बयाँ से अब तलक र-ब-रु नहीँ करवाया। हर पोस्ट के नीचे लेकिन छपा रहता है उनका नाम । उनकी अनरची रचनाओँ को सलाम ।सब को बधाई! होली की शुभकामनाएं ! -ओमपुरोहित'कागद'
सुनील जी होली उत्सव का आयोजन करने के लिए बधाई ! योगेश स्वप्न जी का विशेष आभारी हूँ दोहे उद्धृत करने के लिए शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'', ओमपुरोहित'कागद' के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ . नीरज जी गोस्वामी और वन्दना जी गुप्ता की रचनाएं सराहनीय हैं ...बधाई ! आपके आगामी आयोजन की प्रतीक्षा रहेगी ...संपर्क बनाए रखें राजेन्द्र स्वर्णकार
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ॐ श्री गणेशाय नमः ! या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना | याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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...
मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
सुनील सा, खमा घणी सा. एक कवि रो एक कथन के उन ने पतियारो है के कविता साची बात केवेला. होळी पर इ आपरी कवितावा साच सू सेमुंधे करावन री हाफल है. इन रे सागे ही आप इन तिवार री भी फगत लीक पूरिजन पर सागीड़ो मैनो मारयो है. कविता में केई ठोड मायड भाषा रो वपराव म्हारे सरीखा हेतालुआ में ह्ररख जगावन रे सागे-सागे इन पर आ छाप लगावे के हिंदी राजस्थानी रे थम्भा पर त्तिक्योदी है. html language में केई ठोड गलतिया रेगी. सो माफ़ी चावू सा.
ReplyDeleteहोली के हुरियारे कविगण, लेकर आये कुछ कवितायें,
ReplyDeleteभाव और अनुभूति की कितनी इंद्रधनुष सी भरी छटायें
,
होली के हुड़दंग में देखो, ढूँढ रहे कुछ सुनने वाले,
जो बचने की कोशिश करता, उसको उतना और सुनायें।
अंतिम दो पंक्तियॉं होली का मज़ाक है। असली पंक्तियॉं यूँ हैं:
ये तो है त्यौहार ही ऐसा, जिससे कोई नहीं अछूता,
जो बचने की कोशिश करता, उसको उतना रंग लगायें।
होली की शुभकामनायें।
क्या होली क्या ईद सब पर्व दें इक सन्देश !
ReplyDeleteहृदयों से धो दीजिए बैर अहम् विद्वेष !!
होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!
wah wah , sabhi rachnayen behatareen.
होली के इन रंग बिरंगे रंगों में नहला दिया आज आपने...सारी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं...आप और इन सबको होली की ढेरों शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनीरज
HOLI KI HARDIK SHUBHKAMNAYEIN.
ReplyDeleteहोली की रंगभरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
ReplyDeleteसुनील जी, आदाब
ReplyDeleteआप तो बहुत गंभीर हो गये.....
भई होली के दिन तो रंग उड़ाओ.....हा..हा...हा
राजेन्द्र स्वर्णकार जी, वंदना गुप्ता जी और दीनदयाल शर्मा जी की रचनाएं बहुत अच्छी लगी
सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं.
बन्धुवर! सभी होरिहरों की रचनाएं पढ कर मस्ती में डूब गया। सुन्दर काव्य संयोजन के लिए बधाई स्वीकार कीजिए! इसी के साथ नेचर का फैशन शो देखिए.......डॉ० डंडा लखनवी!
ReplyDeleteनेचर का देखो फैशन शो
-डॉ० डंडा लखनवी
क्या फागुन की फगुनाई है।
हर तरफ प्रकृति बौराई है।।
संपूर्ण में सृष्टि मादकता -
हो रही फिरी सप्लाई है।।1
धरती पर नूतन वर्दी है।
ख़ामोश हो गई सर्दी है।।
भौरों की देखो खाट खाड़ी-
कलियों में गुण्डागर्दी है।।2
एनीमल करते ताक -झाक।
चल रहा वनों में कैटवाक।।
नेचर का देखो फैशन शो-
माडलिंग कर रहे हैं पिकाक।।3
मनहूसी मटियामेट लगे।
खच्चर भी अपटूडेट लगे।।
फागुन में काला कौआ भी-
सीनियर एडवोकेट लगे।।4
इस जेन्टिलमेन से आप मिलो।
एक ही टाँग पर जाता सो ।।
पहने रहता है धवल कोट-
ये बगुला या सी0एम0ओ0।।5
इस ऋतु में नित चैराहों पर।
पैंनाता सीघों को आकर।।
उसको मत कहिए साँड आप-
फागुन में वही पुलिस अफसर।।6
गालों में भरे गिलौरे हैं।
पड़ते इन पर ‘लव’ दौरे हैं।।
देखो तो इनका उभय रूप-
छिन में कवि, छिन में भौंरे हैं।।7
जय हो कविता कालिंदी की।
जय रंग-रंगीली बिंदी की।।
मेकॅप में वाह तितलियाँ भी-
लगतीं कवयित्री हिंदी की।8
वो साड़ी में थी हरी - हरी।
रसभरी रसों से भरी- भरी।।
नैनों से डाका डाल गई-
बंदूक दग गई धरी - धरी।।9
ये मौसम की अंगड़ाई है।
मक्खी तक बटरफलाई है ।।
धोषणा कर रहे गधे भी सुनो-
इंसान हमारा भाई है।।10
सचलभाष-0936069753
कविता मेँ देश काल एवं परिस्थिति किसी न किसी रूप मेँ उपस्थित हो ही जाता है।जीवन अपनी गति एवं मति से चलता है लेकिन समष्टि मेँ हर पल कुछ न कुछ घटित होता रहता है जिस से कविता स्वत: प्रभावित हो जाती है। समाज की संवेदना एवं काल की व्यंजना को छोड़ कर कवि कभी आगे बढ़ ही नहीँ पाता।पायल की झनकार सुनना, रेश्मी ज़ुल्फोँ ,गोरे गालोँ- लबोँ को गुनना व्यष्टि का कर्म है।कवि के भीतर का सौँदर्ये गुण ग्राहक भी मुखरित होता है।सुख-दु;ख भी चलता रहता है और यह सब कुछ रुपाइत होता रहता है कविता मेँ।लेकिन आज रोटी, कपड़ा ,मकान, इंसानियत ,अमन औ चैन सब से बड़ा मसला है।टिप्पणियोँ मेँ दर्ज डा.डंडा लखनवी की इन सँदर्भोँ मेँ रचित बेहतरीन कविताओँ के सम्मान मेँ खड़ा होने को मन करता है। भाई राजेन्द्र स्वर्णकार, सुनील गज़ाणी, दीनदयाल शर्मा एवं वंदना जी कविताएं भी प्रभावित करती हैँ।नरेँन्द्र जी व्यास रचते कम हैँ रचने से बचते ज्यादा हैँ तभी तो अपने अंदाज ऐ बयाँ से अब तलक र-ब-रु नहीँ करवाया। हर पोस्ट के नीचे लेकिन छपा रहता है उनका नाम । उनकी अनरची रचनाओँ को सलाम ।सब को बधाई! होली की शुभकामनाएं !
ReplyDelete-ओमपुरोहित'कागद'
बेहतर...
ReplyDeleteशुअभकामनाएं...
Maza aa gaya!
ReplyDeleteHoli par yeh kavitayen padhkar mja aa gya. Danda ji ne to kamal hi kar diya. aakharkalash aur kavion ko hardik badhaeyan.
ReplyDeleteBahut aannand raha holi ki rangeen rachanao ka ...Aabhar!
ReplyDeleteHOli ki hardik shubhkaamnae !!
सुनील जी होली उत्सव का आयोजन करने के लिए बधाई !
ReplyDeleteयोगेश स्वप्न जी का विशेष आभारी हूँ दोहे उद्धृत करने के लिए
शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'', ओमपुरोहित'कागद' के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ .
नीरज जी गोस्वामी और वन्दना जी गुप्ता की रचनाएं सराहनीय हैं ...बधाई !
आपके आगामी आयोजन की प्रतीक्षा रहेगी ...संपर्क बनाए रखें
राजेन्द्र स्वर्णकार