होली की ठिठोली -






नीरज गोस्वामी की होली 

पिलायी भाँग होली में,वो प्याले याद आते हैं 
गटर, पी कर गिरे जिनमें, निराले याद आते हैं  
दुलत्ती मारते देखूं, गधों को जब ख़ुशी से मैं 
निकम्मे सब मेरे कमबख्त, साले याद आते हैं 
गले लगती हो जब खाकर, कभी आचार लहसुन का 
तुम्हारे शहर के गंदे, वो नाले याद आते हैं 
भगा लाया तिरे घर से, बनाने को तुझे बीवी 
पढ़े थे अक्ल पर मेरी, वो ताले याद आते हैं 
नमूने देखता हूँ जब अजायब घर में तो यारों 
जाने क्यूँ मुझे ससुराल वाले याद आते हैं 
कभी तो पैंट फाड़ी और कभी सड़कों पे दौड़ाया 
तिरी अम्मी ने जो कुत्ते, थे पाले याद आते हैं 
सफेदी देख जब गोरी कहे अंकल मुझे 'नीरज' 
जवानी के दिनों के बाल काले याद आते हैं 
- नीरज गोस्वामी
*****************************************

 











कवि कुलवंत सिंह के रंगीले गीत

1.  होली के रंग 
रंग होली के कितने निराले, 
आओ सबको अपना बना लें, 
भर पिचकारी सब पर डालें, 
पी को अपने गले लगा लें ।
रक्तिम कपोल आभा से दमकें, 
कजरारे नैना शोखी से चमकें, 
अधर गुलाबी कंपित दहकें, 
पलकें गिरगिर उठ उठ चहकें ।
पीत अंगरिया भिगी झीनी, 
सुध बुध गोरी ने खो दीनी, 
धानी चुनर सांवरिया छीनी, 
मादकता अंग अंग भर दीनी ।
हरे रंग से धरा है निखरी, 
श्याम वर्ण ले छायी बदरी, 
छन कर आती धूप सुनहरी, 
रंग रंग की खुशियां बिखरीं ।
नीला नीला है आसमान, 
खुशियों से बहक रहा जहान, 
मस्ती से चहक रहा इंसान, 
होली भर दे सबमें जान ।

2.  किससे खेलूं होली रे !
 पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
रंग हैं चोखे पास
पास नही हमजोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
देवर ने लगाया गुलाल 
मै बन गई भोली रे !
पी हैं बसे परदेश, 
मै किससे खेलूं होली रे !
ननद ने मारी पिचकारी, 
भीगी मेरी चोली रे !
पी हैं बसे परदेश, 
मै किससे खेलूं होली रे !
जेठानी ने पिलाई भांग, 
कभी हंसी कभी रो दी रे ! 
पी हैं बसे परदेश, 
मै किससे खेलूं होली रे !
सास नही थी कुछ कम,
की उसने खूब ठिठोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे !
देवरानी ने की जो चुहल
अंगिया मेरी खोली रे !
पी हैं बसे परदेश,
मै किससे खेलूं होली रे ! 
बेसुध हो मै भंग में 
नन्दोई को पी बोली रे ! 
पी हैं बसे परदेश, 
मै किससे खेलूं होली रे !

3.  होली का त्यौहार
होली का त्यौहार । 
रंगों का उपहार ।

प्रकृति खिली है खूब ।
नरम नरम है दूब ।

भांत भांत के रूप।
भली लगे है धूप ।

गुझिया औ मिष्ठान ।
खूब बने पकवान ।

भूल गये सब बैर ।
अपने लगते गैर ।

पिचकारी की धार ।
पानी भर कर मार ।

रंगों की बौछार ।
मस्ती भरी फुहार ।

मीत बने हैं आज
खोल रहे हैं राज ।

नीला पीला लाल ।
चेहरों पे गुलाल ।

खूब छनी है भांग ।
बड़ों बड़ों का स्वांग ।

मस्ती से सब चूर ।
उछल कूद भरपूर ।

आज एक पहचान ।
रंगा रंग इनसान ।

4.  होली आई

हम बच्चों की मस्ती आई
होली आई होली आई ।
झूमें नाचें मौज करं सब
होली आई होली आई ।

रंग रंग में रंगे हैं सब
सबने एक पहचान पाई ।
भूल गए सब खुद को आज
होली आई होली आई ।

अबीर गुलाल उड़ा उड़ा कर
ढ़ोल बजाती टोली आई ।
अब अपने ही लगते आज
होली आई होली आई ।

दही बड़ा औ चाट पकोड़ी
खूब दबा कर हमने खाई ।
रसगुल्ले गुझिया मालपुए
होली आई होली आई ।

लाल हरा और नीला पीला
है रंगों की बहार आई ।
फागुन में रंगीनी छाई
होली आई होली आई ।
*******
- कवि कुलवंत सिंह



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10 Responses to होली की ठिठोली -

  1. क्‍या बात है नीरज भाई, क्‍या याददाश्‍त है आपकी। वैसे अंकल कहलवा लेने में घाटा नहीं है। कम से कम पास में बैठ तो जाती है कोई भूले-भटके, वरना इस उम्र में तो बीबी भी पास में बैठने को तैयार नहीं होती।
    कुलवंत भाई को पहली बार पढ़ा है। अरे भाई इतनी भी शराफ़त ठीक नहीं। आपने जो कहा कि:

    भर पिचकारी सब पर डालें,
    पी को अपने गले लगा लें ।
    इसकी दूसरी पंक्ति भर बदल दें 'पी कर सबको गले लगालें' और पीना गुनाह मानते हों तो कहें 'बिना पिये ही गले लगालें' और भी आगे बढ़ सकते हैं 'बिन पिय जो हो गले लगालें'।

    अरे भाई होली है, दिल की सारी तमन्‍नायें खुलकर फुटपाथ पर आ जाने दो।
    बुरा ना मानो होली है।

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  2. कुलवंत भाई
    पहले होली मुबारक फिर मुबारक आपकी कविताएं ! इस वक्त जब दाल ने रोटी से और चीनी ने चाय से रिश्ता तोड़ लिया है ; महंगाई ने जीवन के सब रँग बदरंग कर दिए हैँ तो होली के रँग किसे याद आएंगे ! आप के शब्द शायद जीवन में उल्लास भर देँ!
    आखर कलश के संपादक मंडल, रचनाकारोँ एवं तमाम पाठकोँ को होली की शुभकामनाएं !
    अब
    ना किसना भोला
    ना राधा भोली
    किस संग खेलेँ होली
    होली तो
    कब की हो ली !
    तन उजला
    पर मन मैला
    महंगाई का
    दामन फैला
    जनता रोई
    पर संसद ना बोली होली तो
    कब की होली
    दिन भर जो
    खटती रहती
    रोटी रोटी
    रटती रहती
    मजदूरी मेँ
    ना आती चोली
    होली तो
    कब की होलु !

    ReplyDelete
  3. आदरणीय नीरज जी, आदाब
    खूबसूरत हास्य के लिये मुबारकबाद
    कुलवंत जी, आपको शायद पहली बार पढ़ने का सौभाग्य मिला है..
    लग रहा है..अब तक आपकी प्रतिभा से वंचित कैसे रह गया.
    आपके ब्लाग पर भी आने की तमन्ना है
    सभी को होली की शुभकामनाएं..

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  4. sabhi rachnayen, behatareen, ....holi ki mangal kaamnayen.

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  5. क्या मारू कवितायें हैं, मौज आ गयी... और नीरज जी आप की तो बहुत ही बकलोल है

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  6. Niraj Gosawmi gulal mubarek.Holi ka rang Aap ka dekh ker HAM BHI Gulabi ho geye.Aap ko dil se dher sara gulabi rang bhej reha hu shej ker rekhna.
    NARESH MEHAN

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  7. Sunil Gejjani or Narinder vyas sampurn Aakarkalash privar ko holi ki subhkamnaye.Aap hanesha gulab ki khilte reho.
    Radha or krishan ki terh
    payar ke rang se rang do
    duniya saari.
    Rang nahi janta koi jat -pat
    dharm or dhani.
    yeh to h payr ki ek kedi.
    jo deti h prkirti ka mitha sa aehsas.
    Holi per hoti h kudret ki javani.
    Aao milker ped ki tehniyo ko chuye.
    un se mikker kheke HOLI.
    Pedosi se Dil milye.
    Yaar ko Aapna Dil dikhaye.
    Phir benti h holi.
    NARESH MEHAN

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  8. Bhai Kulwnat sing k Holi k rang bhut hi rang-ranilye h.Aap ki holi ka rang or thitholi mujhe bhut hi payri or mithi si legi.Aap k rang mulyam se abhi bhi mari gallo per ankit h.Mai Aapn-Aap ko bilkul gulabi mehsus ker rerha hu.ACTUA M Bhiter tek rangin ho geya hu.Dhanyabad payri si namkeen or mithi holi ka
    NARESH MEHAN

    ReplyDelete
  9. NEERAJ JI KA TO JAWAB HI NAHI HAI..........HAMESHA CHHAKKA HI LAGATE HAIN.
    KULWANT JI KA TO ANDAZ-E-BAYAN HOTA HI GAZAB KA HAI.......TEENO HI RACHNAYEIN SHANDAR HAIN.

    HOLI KI AAP SABKO HARDIK SHUBHKAMNAYEIN.

    ReplyDelete
  10. Neeraj ji ki steek hasya kavita ke liye meri hardik badhaee. maja aa gya. Deendayal Sharma

    ReplyDelete

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