जंग औरों की लड़े इसकी भला फुरसत किसे
साथ चलने को मिरे, लाती है अब किस्मत किसे।
सबकी अपनी भूख है और सबकी अपनी प्यास है
फर्क है कि पालती है कौनसी ग़ुरबत किसे।
नाम हो, बदनाम हो, ग़ुमनाम हो, हलकान हो
प्यार में अब देखिये, देती है क्या किस्मत किसे।
हर तरफ चहरे तने से और भागम-भाग है
मुस्कुराने, बात करने, की भला फुरसत किसे।
मैं जुबॉं खोलूँ अगर तो देखना पड़ता है ये
किसको है पहचान सच की और है ग़फ़लत किसे।
हमने मंज़िल ठान ली औ राह भी पहचान ली,
रास्ते की धूल ने बख्शी भला इज़्ज़त किसे।
आ गये कुछ लोग घर में, आपकी मर्जी है अब
किसकी खिदमत कीजिये औ कीजिये रुख्सत किसे।
वक्त था वो और, जब चारों तरफ मेला रहा
तीरगी के दौर में ‘राही’मिली शोहरत किसे।
बहुत उम्दा रचना .........
ReplyDeletethis is one of the best i have ever seen..
ReplyDeletegood work.
सबकी अपनी भूख है और सबकी अपनी प्यास है
ReplyDeleteफर्क है कि पालती है कौनसी ग़ुरबत किसे।
वाह वाह - संस्कार ही तो हैं जो इंसान को "इंसान" बनाते हैं - अति सुंदर रचना
ग़ज़ल दिल को छू गई।
ReplyDeleteबेहद पसंद आई।
सुनील जी आदाब
ReplyDeleteआज के अंक में तिलकराज जी को पढ़कर बहुत अच्छा लगा
हर शेर बेहतरीन.....कोई कम नहीं
फिर भी ये शेर खास पसंद आये-
हर तरफ चहरे तने से और भागम-भाग है
मुस्कुराने, बात करने, की भला फुरसत किसे।
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मैं जुबॉं खोलूँ अगर तो देखना पड़ता है ये
किसको है पहचान सच की और है ग़फ़लत किसे।
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वक्त था वो और, जब चारों तरफ मेला रहा
तीरगी के दौर में ‘राही’मिली शोहरत किसे।
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वाह बेहतरीन गज़ल...आभार!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
सबकी अपनी भूख है और सबकी अपनी प्यास है
ReplyDeleteफर्क है कि पालती है कौनसी ग़ुरबत किसे।
आ गये कुछ लोग घर में, आपकी मर्जी है अब
किसकी खिदमत कीजिये औ कीजिये रुख्सत किसे।
वक्त था वो और, जब चारों तरफ मेला रहा
तीरगी के दौर में ‘राही’मिली शोहरत किसे
ये शेर खास पसंद आये
behatareen.
ReplyDeleteमैं जुबॉं खोलूँ अगर तो देखना पड़ता है ये
ReplyDeleteकिसको है पहचान सच की और है ग़फ़लत किसे।
हमने मंज़िल ठान ली औ राह भी पहचान ली,
रास्ते की धूल ने बख्शी भला इज़्ज़त किसे।
...ग़ज़ल बहुत पसंद आई.
bahuut achchi gazal..
ReplyDeleteजंग औरों की लड़े इसकी भला फुरसत किसे
ReplyDeleteसाथ चलने को मिरे, लाती है अब किस्मत किसे।
Aah!
साथ चलने को मिरे अब लाती है किस्मत किसे .......................?
ReplyDeleteतिलक जी आप की ऐसी उम्दा रचनाओं के साथ दिल थाम के चलने की हसरत न जाने कितनों को आपका हमराह बनायेगी नहीं जानता लेकिन वह होगी तो किस्मत ही . एक से बढ़ कर एक शेर .कम ज्यादा आंकना मेरे जैसों की औकात नहीं .बस वाह और आह ही निकल सकती है .
और रास्ते की धूल अगर यही होती है तो वह शायिरी के माथे का चन्दन बन जाने का हक़ रखती है .आप को पढना तो हमेशा ही आनंद रहा पर इस ग़ज़ल की बात और ही है .
इसे मेरा अनुज स्नेह मत मानियेगा ,मेरे दिल से निकली साफगोई और एहसास है यह मेरा .
बस ऐसे ही सुनाते रहिये ........हमारे जैसे हमराहियों के
' राही ' !
'आखर कलश ' को इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद .
achchi gazal ke liye mubarakbad
ReplyDeleteशेर तो अच्छे कहें हैं "राही" तूने देख तो
ReplyDeleteफर्क है की पालती है कौनसी ग़ुरबत किसे।
नेमतों से है नवाजा देख कुदरत ने मुझे
अब न कोई दिल में चाहत और है हसरत किसे
Kapoor shab sunder rachan k liye sadhu vad.
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