शाहिद मिर्जा की गजल



 










इन्सानियत के नाम पे चर्चा कोई भी हो 
मैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो 

शक को कभी ये सोच के दिल में जगह दी,
बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो 


नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो 


वो किसके साथ है मुझे इससे गरज़ नहीं
मेरा नहीं है बस, तो किसी का कोई भी हो 


क़तरे का भी वजूद है, शाहिद भूलना
बनता है बूंद-बूंद से, दरिया कोई भी हो

**************
- शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद'

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21 Responses to शाहिद मिर्जा की गजल

  1. पहले शेर ने ही ध्यान खींच लिया...
    उम्दा शेर...बेहतर ग़ज़ल...

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  2. SHAHID MIRZA " SHAHID " KEE GAZAL ACHCHHE ,
    BAHUT ACHCHHEE LAGEE HAI.KHOOB KAHA HAI
    UNHONNE--
    KATRE KAA BHEE VAZOOD HAI,
    SHAHID N BHOOLNA
    BANTAA HAI BOOND-BOOND SE
    DARIYA KOEE BHEE HO
    BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN.

    ReplyDelete
  3. Behtreen prastuti...pdhane ke liye bahut bahut dhanywaad!
    Saadar
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  4. क़तरे का भी वजूद है, शाहिद न भूलना
    बनता है बूंद-बूंद से, दरिया कोई भी हो
    ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

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  5. शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
    बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो
    क्या कहूं? तारीफ़ के लिये शब्द ही नहीं हैं मेरे पास!!!
    हर एक शेर गुनगुनाने का जी करे. बधाई.

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  6. भाई सुनील गज्जाणी
    एवं
    नरेन्द्र व्यास
    वन्दे!
    साहित्य सेवा हेतु बहुत प्रयास करती है आपकी जोड़ी!नरेँद्र भाई तो कुछ लिखते भी नहीँ।उन की निस्वार्थ सेवा श्लाघनीय है।बहुत अच्छे साहित्यकारों की ताजातरीन रचनाओँ से रु-ब-रु करवा दिया आपकी जुगलबंदी ने।
    यक-ब-यक विजय सिँह नाहटा को आपके यहां देख कर सुखद लगा। आप दोनों की साधना को सलाम !
    *ओम पुरोहित'कागद'

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  7. BEHATAREEN,

    AKHIRI SHER BAHUT PASAND AYA.

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  8. शाहिद साहब ,एक मुकम्मल ग़ज़ल ,
    बहुत खूब ,कोई शेर ऐसा नहीं जो एहसासात की क़न्दीलों से जगमगा न रहा हो
    इन्सानियत के नाम पे चर्चा कोई भी हो
    मैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो

    बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो

    नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
    दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो
    तारीफ़ ओ तौसीफ़ के अलफ़ाज़ अब साथ नहीं दे रहे हैं ,lihaazaa मुबारकबाद दे कर बात खत्म करती हूँ

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  9. aapki ye prastuti sarahniye hay
    ghajal ki ye jhalk apne me ek gahri rachana hay.
    dhanywad

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  10. वो किसके साथ है मुझे इससे गरज़ नहीं
    मेरा नहीं है बस, तो किसी का कोई भी हो

    शाहिद साहब की इस खूबसूरत ग़ज़ल को सलाम...शुक्रिया आपका जो हमें इसे पढने का मौका दिया.
    नीरज

    ReplyDelete
  11. शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
    बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो

    नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
    दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो

    क़तरे का भी वजूद है, शाहिद न भूलना
    बनता है बूंद-बूंद से, दरिया कोई भी हो

    बेहतरीन संदेश लिये कसे हुए अशआर।
    बधाई।

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  12. शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
    बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो

    नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
    दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो

    ग़ज़ब के शेरो से सजाया है इस ग़ज़ल को ... होली की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ ........

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  13. इन्सानियत के नाम पे चर्चा कोई भी हो
    मैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो

    शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
    बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो
    bahut hi behtrin gazal man ko chhoo gayi ,kuchh is tarah ke bhav liye main bhi bahut aage ek rachna post ki rahi ,padhte huye wahi yaad aa gayi ,

    ReplyDelete
  14. shahid ji aadab ,
    main ek rachna bhej rahi hoon jo bahut hi purani hai aapki is rachna ko padhkar ise aap ko padhwane ki laalsa jaag uthi shayad achchhi lage .
    फूंक दे जो प्राण में उत्तेजना
    गुण न वह इस बांसुरी की तान में ।
    जो चकित करके कंपा डाले हृदय
    वह कला पायी न मैंने गान में ।
    जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह ,
    ओस के आँसू बहाकर फूल में ।
    ढूंढती इसकी दवा मेरी कला ,
    विश्व वैभव की चिता की धूल में ।
    डोलती असहाय मेरी कल्पना
    कब्र में सोये हुओ के ध्यान में ।
    खंडहरों में बैठ भरती सिसकियाँ
    विरहणी कविता सदा सुनसान में ।
    देख क्षण -क्षण में सहमती हूँ अरे !
    व्यापनी क्षणभंगुरता संसार की ।
    एक पल ठहरे जहाँ जग हो अभय ,
    खोज करती हूँ उसी आधार की ।

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  15. Behad khubsurat gazal....Aabhar!!
    Holi ki shubhkaamnae!

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  16. वाह वाह गज़ल पढ कर आनन्द आ गया शाहिद जी की गज़लें पढ कर हमेशा दंग रह जाती हूँ।
    शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
    बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो

    नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
    दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो
    लाजवाब अद्भुत बात बार पढे जा रही हूँ।

    क़तरे का भी वजूद है, शाहिद न भूलना
    बनता है बूंद-बूंद से, दरिया कोई भी हो
    कितनी बडी बात कुछ शब्दों मे लाजवाब। शाहिद जी को पढना बहुत अच्छा लगता है धन्यवाद उनकी गज़लें पढवाने के लिये। शाहिद जी को भी शुभकामनायें

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  17. इन्सानियत के नाम पे चर्चा कोई भी हो
    मैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो

    kya baat hai ! bahut khub !

    ReplyDelete
  18. इन्सानियत के नाम पे चर्चा कोई भी हो
    मैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो

    kya baat hai ! bahut khub !

    ReplyDelete

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