इन्सानियत के नाम
मैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो
शक को कभी ये सोच
बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो
नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो
वो किसके साथ है मुझे इससे गरज़ नहीं
मेरा नहीं है बस, तो किसी का कोई भी हो
क़तरे का भी वजूद है, शाहिद न भूलना
बनता है बूंद-बूंद से, दरिया कोई भी हो
- शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद
पहले शेर ने ही ध्यान खींच लिया...
ReplyDeleteउम्दा शेर...बेहतर ग़ज़ल...
SHAHID MIRZA " SHAHID " KEE GAZAL ACHCHHE ,
ReplyDeleteBAHUT ACHCHHEE LAGEE HAI.KHOOB KAHA HAI
UNHONNE--
KATRE KAA BHEE VAZOOD HAI,
SHAHID N BHOOLNA
BANTAA HAI BOOND-BOOND SE
DARIYA KOEE BHEE HO
BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN.
umda ghazal keliye daad kubool karen shahid sahab.
ReplyDeleteBehtreen prastuti...pdhane ke liye bahut bahut dhanywaad!
ReplyDeleteSaadar
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
क़तरे का भी वजूद है, शाहिद न भूलना
ReplyDeleteबनता है बूंद-बूंद से, दरिया कोई भी हो
ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
ReplyDeleteबुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो
क्या कहूं? तारीफ़ के लिये शब्द ही नहीं हैं मेरे पास!!!
हर एक शेर गुनगुनाने का जी करे. बधाई.
भाई सुनील गज्जाणी
ReplyDeleteएवं
नरेन्द्र व्यास
वन्दे!
साहित्य सेवा हेतु बहुत प्रयास करती है आपकी जोड़ी!नरेँद्र भाई तो कुछ लिखते भी नहीँ।उन की निस्वार्थ सेवा श्लाघनीय है।बहुत अच्छे साहित्यकारों की ताजातरीन रचनाओँ से रु-ब-रु करवा दिया आपकी जुगलबंदी ने।
यक-ब-यक विजय सिँह नाहटा को आपके यहां देख कर सुखद लगा। आप दोनों की साधना को सलाम !
*ओम पुरोहित'कागद'
BEHATAREEN,
ReplyDeleteAKHIRI SHER BAHUT PASAND AYA.
शाहिद साहब ,एक मुकम्मल ग़ज़ल ,
ReplyDeleteबहुत खूब ,कोई शेर ऐसा नहीं जो एहसासात की क़न्दीलों से जगमगा न रहा हो
इन्सानियत के नाम पे चर्चा कोई भी हो
मैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो
बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो
नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो
तारीफ़ ओ तौसीफ़ के अलफ़ाज़ अब साथ नहीं दे रहे हैं ,lihaazaa मुबारकबाद दे कर बात खत्म करती हूँ
aapki ye prastuti sarahniye hay
ReplyDeleteghajal ki ye jhalk apne me ek gahri rachana hay.
dhanywad
लाजवाब अशआर हैं.
ReplyDeleteवो किसके साथ है मुझे इससे गरज़ नहीं
ReplyDeleteमेरा नहीं है बस, तो किसी का कोई भी हो
शाहिद साहब की इस खूबसूरत ग़ज़ल को सलाम...शुक्रिया आपका जो हमें इसे पढने का मौका दिया.
नीरज
bahut hi behtareen gazal
ReplyDeleteशक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
ReplyDeleteबुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो
नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो
क़तरे का भी वजूद है, शाहिद न भूलना
बनता है बूंद-बूंद से, दरिया कोई भी हो
बेहतरीन संदेश लिये कसे हुए अशआर।
बधाई।
शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
ReplyDeleteबुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो
नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो
ग़ज़ब के शेरो से सजाया है इस ग़ज़ल को ... होली की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ ........
इन्सानियत के नाम पे चर्चा कोई भी हो
ReplyDeleteमैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो
शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो
bahut hi behtrin gazal man ko chhoo gayi ,kuchh is tarah ke bhav liye main bhi bahut aage ek rachna post ki rahi ,padhte huye wahi yaad aa gayi ,
shahid ji aadab ,
ReplyDeletemain ek rachna bhej rahi hoon jo bahut hi purani hai aapki is rachna ko padhkar ise aap ko padhwane ki laalsa jaag uthi shayad achchhi lage .
फूंक दे जो प्राण में उत्तेजना
गुण न वह इस बांसुरी की तान में ।
जो चकित करके कंपा डाले हृदय
वह कला पायी न मैंने गान में ।
जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह ,
ओस के आँसू बहाकर फूल में ।
ढूंढती इसकी दवा मेरी कला ,
विश्व वैभव की चिता की धूल में ।
डोलती असहाय मेरी कल्पना
कब्र में सोये हुओ के ध्यान में ।
खंडहरों में बैठ भरती सिसकियाँ
विरहणी कविता सदा सुनसान में ।
देख क्षण -क्षण में सहमती हूँ अरे !
व्यापनी क्षणभंगुरता संसार की ।
एक पल ठहरे जहाँ जग हो अभय ,
खोज करती हूँ उसी आधार की ।
Behad khubsurat gazal....Aabhar!!
ReplyDeleteHoli ki shubhkaamnae!
वाह वाह गज़ल पढ कर आनन्द आ गया शाहिद जी की गज़लें पढ कर हमेशा दंग रह जाती हूँ।
ReplyDeleteशक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी,
बुनियाद तो यक़ीन है, रिश्ता कोई भी हो
नाज़ुक कोई भी शै हो, कभी तोड़ना नहीं,
दिल हो या एतबार या शीशा कोई भी हो
लाजवाब अद्भुत बात बार पढे जा रही हूँ।
क़तरे का भी वजूद है, शाहिद न भूलना
बनता है बूंद-बूंद से, दरिया कोई भी हो
कितनी बडी बात कुछ शब्दों मे लाजवाब। शाहिद जी को पढना बहुत अच्छा लगता है धन्यवाद उनकी गज़लें पढवाने के लिये। शाहिद जी को भी शुभकामनायें
इन्सानियत के नाम पे चर्चा कोई भी हो
ReplyDeleteमैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो
kya baat hai ! bahut khub !
इन्सानियत के नाम पे चर्चा कोई भी हो
ReplyDeleteमैं मानता ज़रूर हूं, कहता कोई भी हो
kya baat hai ! bahut khub !