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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||

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सम्पादक मंडल

- राज एन.के.वी.
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।

wah wah wah behatareen gazalen lajawab sher.
ReplyDeleteसुनील जी, आदाब
ReplyDeleteआदरणीय प्राण साहब का हर शेर दुआओं से कम नहीं है
ये शेर कितना कुछ कह रहे हैं-
>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
धुंध पस्ती की हटे तो बात हो
कुछ नज़र आयें दिलों के आफताब
<<<<<<<<<<<<<<<<<<
भले ही न प्यारी लगे सारी दुनिया
किसे प्यारा लगता नहीं अपना जीवन
.......
प्राण साहब.....सलाम कबूल फ़रमायें
इन ग़ज़लों को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।
ReplyDeleteप्राण शर्मा जी की दोनों ग़ज़लें दिल को छूने वाली हैं. प्राण शर्मा जी
ReplyDeleteग़ज़ल के उस्ताद हैं, कितने ही अच्छे शायर इन से ग़ज़ल विधा
सीख कर की अनेक पत्रिकाओं में और मुशायरों में नाम पैदा कर रहे हैं.
ये दोनों अशआर बहुत पसंद आये:
वास्ता सुख से भी पड़ता है जरूर
कौन रखता है मगर इनका हिसाब
मुहब्बत नहीं है तो कुछ भी नहीं है
सभी जाते हैं इंसानी बंधन
सुनील जी, प्राण जी की ग़ज़लें पढ़वाने के लिए धन्यवाद.
महवीर शर्मा
प्राण साहब के इन शे'रों पर क्या कहें.
ReplyDeleteखुशबु फैलती सी लगी
भले ही सुनहरा किसी का हो यौवन
ReplyDeleteकिसे याद आता नहीं अपना बचपन
प्राण साहब ; आपने बचपन का ज़िक्र कर मेरे पसंदीदा विषय को याद दिला दिया और मैं बचपन की मीठी यादों में खो गया. बहुत ही खूब लिखा है आपने. सादर नमन
"आपको रोका है कब मेरे जनाब /शौक़ से पढिये मेरे दिल की किताब"- अपने दिल को खोलकर सामने रखना यानिकि सच-सच कह देना बहुत बड़ी बात है. बहुत अच्छी रचना. बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान.
ReplyDeletePahli Ghazal la matla bahut hi khoobsoorat bana hai..baqi har sher mein Pran ji ne jaan phoonk di hai. Apne arth se ve sajeev ban padte hain.
ReplyDelete