डॉ. रामनिवास ’मानव’ की कविताएँ














लौट आओ अश्व

होकर जिसकी पीठ पर सवार
दौडाता लाया था जिसे मैं
बिन चाबुक, बिन मार,
वही अश्व
अचानक अड गया,
बीच राह में बिगड गया
और गिराकर मुझे
गोदते हुए मेरा जस्म
अपने पैने खुरों से,
दौडता जा रहा है सरपट,
टपटप-टपटप !
उसकी मन्द होती टापों से
मैं लगाता हूं अनुमान,
बहुत दूर जा चुका है वह।
मैं कराहता हूं,
और दबी आवाज में
पुकारता हूं : लौट आओ अश्व,
मेरे यौवन, प्यारे वक्त !
**************

आस्था

आस्था झील की काई नहीं,
जो यहां से वहां
हवा के साथ तैर जाये।
आस्था वह पौध भी नहीं,
जिसे इच्छानुसार
बोया और बढाया जाये।
आस्था वह दूब है,
जो बाहर नहीं,
आदमी के भीतर उगती है
और जिसकी ताजगी
पहली बरसात में फूटी
हरियाली की तरह
सबका मन मोह लेती है।
आस्था आदमी को
आदमी की पहचान देती है।
**************
-७०६, सैक्टर-१३, हिसार-१२५००५ (हरियाणा

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5 Responses to डॉ. रामनिवास ’मानव’ की कविताएँ

  1. याद क्‍यूँ गुजरी हुई बातें करें
    वक्‍त कब लौट करके आता है।
    ये वो रथ है जो चल दिया तो फिर
    धूल यादों की छोड़ जाता है।

    ReplyDelete
  2. gksdj ftldh ihB ij lokj
    nkSM+krk yk;k Fkk ftls eSa
    fcu pkcqd] fcu ekj]
    ogh v'o
    vpkud vM+ x;k]
    chp jkg esa fcxM+ x;k
    vkSj fxjkdj eq>s
    xksnrs gq, esjk ft+Le
    vius iSus [kqjksa ls]
    nkSM+rk tk jgk gS ljiV]
    ViVi&ViVi !
    mldh eUn gksrh Vkiksa ls




    ye dikh raha hai kavita to nhi dikh rahi.

    ReplyDelete
  3. KRIPYA UNICODE HINDI FONT THEEK KAR DE. KAVITA APATHNIY HAI

    ReplyDelete
  4. हम क्षमा चाहते हैं आदरणीय डॉ. रामनिवास ’मानव’ और सम्माननीय पाठकगणों से कि आप हिन्दी यूनिकोड फोंट समस्या के कारण डॉ. रामनिवास जी की रचनाएँ नहीं पढ पाए। अब इस गलती को दुरूस्त कर दिया गया है। आपका बहुत आभार।।

    ReplyDelete

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