नरेश मेहन की कविताएँ












औरत

सच मानिए
एक औरत
मेरे भीतर
हमेशा से रहती है।


कभी
बहुत प्यारी सी
कभी बहुत क्रूर
कभी
कपडों से लदी-फदी
कभी
एक दम निर्वस्त्र।
रहती है
मेरे भीतर हरदम।


कभी
होती है मां
कभी बेटी
कभी बहन
कभी पत्नी
कभी प्रेयसी
कितने
रूपों में
समायी रहती है वह।


हम सब
औरत से हैं
औरत के लिए
औरत के द्वारा
बगैर औरत
हमारा कोई
वजूद नहीं हैं।


इस धरती पर
औरत
दुनिया की सबसे
खूबसूरत नियामत हैं।
जो
मेरे ख्यालों में
हमेशा
बनी रहती हैं।


मैं
अंत तक
अपने भीतर
एक औरत को
बचाए रखता ह।

*******
दशानन

सफल
खलनायक
आज हमारा
नायक है।
यही पैमाना हैं
आज सफलता का।


जो सफल है
वही सत्यनिष्ठ है
वही ईमानदार है।


सफल-सुप्रसिद्व लोग
आदर्शविहनीता के
बावजूद
पूजे जाते है।


अब आदर्शों की
सूची नहीं बनती
सिर्फ
सफल लोगों की
सूची बनती है।


इसलिए
अब राम नहीं
सभी दशानन बनना चाहते हैं।

*******
मां

समुद्र
से भी गहरी
वृक्ष से भी
विशाल घोंसलों को
संजोये बेठी है मां।


रूई से भी नर्म
लोहे से भी सख्त
बादलो सी उदार
पर्वत सी अडिग है मां।


कभी जरा कडवी
कभी बहुत मीठी
आइसक्रीम सी है मां।


दूध,दही,आटा
पुदीने की चटनी है मां
झाडू पौचा करती
एक नदी सी है मां।


धरती से
उठने वाली
एक सौंधी सी
गंध है मां।


कभी बहन
कभी पत्नि
अब दादी है मां।


कभी थी
पर्वत सी
अब रेत के टीले
की तरह
ढह रही है मां।


अब नहीं
फुरसत किसी को
कि पूछे
कहां है मां।


पूछो कोई
सफेद बालों की
जिल्द में
चहरे की झुर्रियों में
कहानियों की
पाण्डुलिपि लिए
क्यों बैठी है मां।

*******

पागलपन

मेरे
घर के पास
खडा वृक्ष
तेज हवा का
बहाना बनाकर
रोज चुमता है
घर की छत को।


साथ में
गिरा देता है
कुछ पत्ते व फूल
मेरे घर की
छत पर।


मैंने
उससे पूछा,
भाई
ऐसा रोज-रोज
क्यों करतें हो?


उसने कहा
अरे!
भूल गए आप
जब काट रहे थे
कुछ लोग मुझे


शहर के
सौन्दर्यकरण के नाम पर
तब तुम्हीं ने
रोका था उन्हें।


बहुत
लडे थे तुम
परेशान भी
बहुत रहे थे
लिपट गए थे
मेरे तने से।


फिर लोगों ने
मुझे छोड दिया
यह कह कर
कौन कह कर
कौन माथा मारे
इस पागल से।


तुम्हारा
यह पागलपन
मुझे
बहुत प्यारा लगा

*******
-नरेश मेहन

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20 Responses to नरेश मेहन की कविताएँ

  1. thanks for this poem and vision .
    i like this text sound of yours .
    best wishes for your long journey with poetry..
    yours
    yogendra kumar purohit
    M.F.A.
    BIKANER,INDIA

    ReplyDelete
  2. naresh ji

    har rachna ek gahan abhivykti ko parilakshit karti hai............bahut hi umda soch ka parichayak.

    ReplyDelete
  3. "Ret ki tarah dhah rahi h maa" shayad hi duniya ka koi manushya hoga jo is baat se bhavuk na ho.
    "aankhe dabdaba gayi
    maa ka jikr aaya to,
    han! maine bhi us
    chehre ko pehchanta hu
    jis me khuda nazar aata h"
    Naresh ji komlata se bhi jara maasoom ehsaas h
    aapke udgaro me,
    "jise dil sochta h
    vo aap kah gaye lagata h
    meri kahani
    kisi ne sunai h aapko"
    Sanjay kumar"Shilp"

    ReplyDelete
  4. nareshji,
    aap ki kavitae padh kar lagta hai aap shabdchitr prastut karte hai.
    maa ko lekar har kavi lekhak ka apna andaaj hota hai. lekin sab ki bhawnae man ko chuti hai.
    aap ki yah kavita bhi maa ke har roop ka chitr pesh karti hai.
    meri shubhkamnae.
    aap ko badhai bhi aap ki kavita 'ped ka dukh' ka bareli[up] me natyamanchan saraha gaya. suratgad natya manch ke kalakaro aur bhagwandas sharmaji ko bhi badhai, rajsthan ka naam roshan karne ke liye.
    ...kirti rana/blog pachmel

    ReplyDelete
  5. antar man ko chooti apni si lgi hrek kavita ki hrek pankti aur prtyek shabd .
    abhar

    ReplyDelete
  6. सभी रचनाएँ अच्छी हैं.
    खासकर ये पंक्तियाँ मुझे बेहद अच्छी लगीं-

    सफल-सुप्रसिद्व लोग
    आदर्शविहनीता के
    बावजूद
    पूजे जाते है।
    ..............
    तुम्हारा
    यह पागलपन
    मुझे
    बहुत प्यारा लगा
    ..वाह.

    ReplyDelete
  7. अति उत्तम रचना .......

    ReplyDelete
  8. नरेश मेहन की कविताएँ सहज , सरल व मन को छूने वाली है. बधाई.

    ReplyDelete
  9. नरेश मेहन की सभी कवितायेँ अच्छी लगी. मेरी शुबकामनाएं और बधाई. E mail : rajendradaal@gmail.com, Mob.09950815190

    ReplyDelete
  10. vah! nareshji jaise mahattwapuran kvi ko yaha dekhakar achha lga. samvednaon ke sookshm tantuon ko jhakjhor dene wali kavitaon ke is srijandhrmi ko dheron shubhkamanayen....

    ReplyDelete
  11. sashakt aatmiyataa ka ehsaas dilati ye kavitayein, kis ke bhi antarmann me badi sehajtaa se paith kar jaati hain

    ReplyDelete
  12. mr. mehan is a nature poet .He always touches the subject related to emotions of humen and nature.i wish him all the best for his future and hope to read some more good readings.
    sunil passi"theatrist" sriganganagar,rajasthan

    ReplyDelete
  13. भाई नरेश मेहन , अच्छी कविताओँ के लिए बधाई !आपकी कविताओँ मेँ सूक्षम संवेदनाओं का प्रकटीकरण बिना किसी शब्दाडंबर के सम्पूर्णता के साथ होता है।'आखर कलश' का संपादक मंडल भी अपनी अकूंत साधना के लिए साधुवाद का पात्र है।
    omkagad.blogspot.com
    m-09414380571

    ReplyDelete
  14. भाई नरेश जी,
    आपकी मार्मिक रचनायें पढ़कर बेहद अच्छा लगा.
    साधुवाद!!!
    जितेन्द्र कुमार सोनी 'प्रयास'
    www.jksoniprayas.blogspot.com
    www.mulkatimaati.blogspot.com

    ReplyDelete
  15. dear mehan sahib
    namaskar
    aapki kavita aarut, maa, pagalpan bahut hi aachi lagi . hum aapki kavita sangrah padna chahete hai kon si website par hai please give me address

    ReplyDelete
  16. dear naresh ji
    apki kavita AURAT ek acha aur ghur charitar chitran kia he badhia lagi

    ReplyDelete
  17. "सफल-सुप्रसिद्व लोग
    आदर्शविहनीता के
    बावजूद
    पूजे जाते है।"

    Aaj ko Samaj ka Sach batane k liye shayad hi isse behtar kuch limkha ja sakta hai...............

    ReplyDelete
  18. "कभी थी
    पर्वत सी
    अब रेत के टीले
    की तरह
    ढह रही है मां।"

    Akhir kyon dahane dya ja raha hai MAA ko.......... .

    ReplyDelete
  19. आपकी रचनाये पहली मरतबा पढने का मौका मिला .....
    अच्छा लगा ...

    सभी रचनाओं ने मन को छुआ ...पर एक पंक्ति अखरी ....थोड़ी सी नहीं बहुत अखरी
    आइसक्रीम सी है मां।


    माँ पे बहुत से लोगो ने कहा है...माँ लफ्ज़ से पाकीज़ा कोई चीज़ दुनिया में नहीं है....कविता में उपमाये बाँधना एक हुनर है पर माँ को ये लिखना कि ::
    आइसक्रीम सी है मां। मुझे जाती तौर पर अच्छा नहीं लगा ...निदा साहेब ने अपनी एक नज़्म में माँ पे बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ कही पर एक जगह उन्होंने कहा कि "बेसन कि सौंधी रोटी पे चटनी जैसी माँ : उस वक़्त भी ये पंक्ति मेरे ज़ेहन में चुभी....माँ चटनी जैसी नहीं हो सकती....और ये भी तय है कि माँ आइसक्रीम जैसी भी नहीं होती ....इस एक बात को छोड़ के ...शानदार रचनाओं के लिए बधाई....

    ReplyDelete

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