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“माँ सरस्वती-शारदा”
ॐ श्री गणेशाय नमः !
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना |
याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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सम्पादक मंडल
- Narendra Vyas
- मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
thanks for this poem and vision .
ReplyDeletei like this text sound of yours .
best wishes for your long journey with poetry..
yours
yogendra kumar purohit
M.F.A.
BIKANER,INDIA
naresh ji
ReplyDeletehar rachna ek gahan abhivykti ko parilakshit karti hai............bahut hi umda soch ka parichayak.
"Ret ki tarah dhah rahi h maa" shayad hi duniya ka koi manushya hoga jo is baat se bhavuk na ho.
ReplyDelete"aankhe dabdaba gayi
maa ka jikr aaya to,
han! maine bhi us
chehre ko pehchanta hu
jis me khuda nazar aata h"
Naresh ji komlata se bhi jara maasoom ehsaas h
aapke udgaro me,
"jise dil sochta h
vo aap kah gaye lagata h
meri kahani
kisi ne sunai h aapko"
Sanjay kumar"Shilp"
nareshji,
ReplyDeleteaap ki kavitae padh kar lagta hai aap shabdchitr prastut karte hai.
maa ko lekar har kavi lekhak ka apna andaaj hota hai. lekin sab ki bhawnae man ko chuti hai.
aap ki yah kavita bhi maa ke har roop ka chitr pesh karti hai.
meri shubhkamnae.
aap ko badhai bhi aap ki kavita 'ped ka dukh' ka bareli[up] me natyamanchan saraha gaya. suratgad natya manch ke kalakaro aur bhagwandas sharmaji ko bhi badhai, rajsthan ka naam roshan karne ke liye.
...kirti rana/blog pachmel
antar man ko chooti apni si lgi hrek kavita ki hrek pankti aur prtyek shabd .
ReplyDeleteabhar
सभी रचनाएँ अच्छी हैं.
ReplyDeleteखासकर ये पंक्तियाँ मुझे बेहद अच्छी लगीं-
सफल-सुप्रसिद्व लोग
आदर्शविहनीता के
बावजूद
पूजे जाते है।
..............
तुम्हारा
यह पागलपन
मुझे
बहुत प्यारा लगा
..वाह.
अति उत्तम रचना .......
ReplyDeletebadhiya lagi
ReplyDeleteनरेश मेहन की कविताएँ सहज , सरल व मन को छूने वाली है. बधाई.
ReplyDeleteनरेश मेहन की सभी कवितायेँ अच्छी लगी. मेरी शुबकामनाएं और बधाई. E mail : rajendradaal@gmail.com, Mob.09950815190
ReplyDeletevah! nareshji jaise mahattwapuran kvi ko yaha dekhakar achha lga. samvednaon ke sookshm tantuon ko jhakjhor dene wali kavitaon ke is srijandhrmi ko dheron shubhkamanayen....
ReplyDeletesashakt aatmiyataa ka ehsaas dilati ye kavitayein, kis ke bhi antarmann me badi sehajtaa se paith kar jaati hain
ReplyDeletemr. mehan is a nature poet .He always touches the subject related to emotions of humen and nature.i wish him all the best for his future and hope to read some more good readings.
ReplyDeletesunil passi"theatrist" sriganganagar,rajasthan
भाई नरेश मेहन , अच्छी कविताओँ के लिए बधाई !आपकी कविताओँ मेँ सूक्षम संवेदनाओं का प्रकटीकरण बिना किसी शब्दाडंबर के सम्पूर्णता के साथ होता है।'आखर कलश' का संपादक मंडल भी अपनी अकूंत साधना के लिए साधुवाद का पात्र है।
ReplyDeleteomkagad.blogspot.com
m-09414380571
भाई नरेश जी,
ReplyDeleteआपकी मार्मिक रचनायें पढ़कर बेहद अच्छा लगा.
साधुवाद!!!
जितेन्द्र कुमार सोनी 'प्रयास'
www.jksoniprayas.blogspot.com
www.mulkatimaati.blogspot.com
dear mehan sahib
ReplyDeletenamaskar
aapki kavita aarut, maa, pagalpan bahut hi aachi lagi . hum aapki kavita sangrah padna chahete hai kon si website par hai please give me address
dear naresh ji
ReplyDeleteapki kavita AURAT ek acha aur ghur charitar chitran kia he badhia lagi
"सफल-सुप्रसिद्व लोग
ReplyDeleteआदर्शविहनीता के
बावजूद
पूजे जाते है।"
Aaj ko Samaj ka Sach batane k liye shayad hi isse behtar kuch limkha ja sakta hai...............
"कभी थी
ReplyDeleteपर्वत सी
अब रेत के टीले
की तरह
ढह रही है मां।"
Akhir kyon dahane dya ja raha hai MAA ko.......... .
आपकी रचनाये पहली मरतबा पढने का मौका मिला .....
ReplyDeleteअच्छा लगा ...
सभी रचनाओं ने मन को छुआ ...पर एक पंक्ति अखरी ....थोड़ी सी नहीं बहुत अखरी
आइसक्रीम सी है मां।
माँ पे बहुत से लोगो ने कहा है...माँ लफ्ज़ से पाकीज़ा कोई चीज़ दुनिया में नहीं है....कविता में उपमाये बाँधना एक हुनर है पर माँ को ये लिखना कि ::
आइसक्रीम सी है मां। मुझे जाती तौर पर अच्छा नहीं लगा ...निदा साहेब ने अपनी एक नज़्म में माँ पे बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ कही पर एक जगह उन्होंने कहा कि "बेसन कि सौंधी रोटी पे चटनी जैसी माँ : उस वक़्त भी ये पंक्ति मेरे ज़ेहन में चुभी....माँ चटनी जैसी नहीं हो सकती....और ये भी तय है कि माँ आइसक्रीम जैसी भी नहीं होती ....इस एक बात को छोड़ के ...शानदार रचनाओं के लिए बधाई....