देवी नागरानी की गजलें










ग़ज़लः 1

उड़ गए बालो-पर उड़ानों में
सर पटकते हैं आशियानों में.


जल उठेंगे चराग़ पल भर में
शि्ददतें चाहिये तरानों में.


नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते
घर बदलने लगे दुकानों में.


धर्म के नाम पर हुआ पाखंड
लोग जीते हैं किन गुमानों में.


कट गए बालो-पर, मगर हमने
नक्श छोड़े हैं आसमानों में.


वलवले सो गए जवानी के
जोश बाक़ी नहीं जवानों में.


बढ़ गए स्वार्थ इस क़दर ‘देवी’
एक घर बंट गया घरानों में.

**

ग़ज़लः 2


आंधियों के भी पर कतरते हैं
हौसले जब उड़ान भरते हैं.


गै़र तो गै़र हैं चलो छोड़ो
हम तो बस दोस्तों से डरते हैं.


जिंदगी इक हसीन धोका है
फिर भी हंस कर सुलूक करते हैं.


राह रौशन हो आने वालों की
हम चराग़ों में खून भरते हैं.


खौफ़ तारी है जिनकी दहशत का
लोग उन्हीं को सलाम करते हैं.


कल तलक सच के रास्तों पर थे
झूठ के पथ से अब गुज़रते हैं.


हम भला किस तरह से भटकेंगे
हम तो रौशन ज़मीर रखते हैं


आदमी देवता नहीं फिर भी
बन के शैतान क्यों विचरते हैं.

*******

देवी नागरानी

न्यू जर्सी

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8 Responses to देवी नागरानी की गजलें

  1. Itni sundar rachnaon se ru-b-ru karaneka shukriya!

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  2. waah.........ek se badhkar ek sher hain har gazal ka........shukriya padhwane ka.

    ReplyDelete
  3. ... प्रभावशाली प्रस्तुति !!!

    ReplyDelete
  4. Aaj Devi Nagrani ki gazal pdhi.Dil k bhut hi Aas-pas thi.
    Ger to ger h chlo chodo.
    Hem to bus dosto se dertye h.
    Devi nagrani n bhut hi marmik likha h.
    Payra or madhur lokhne k liye Dhanyabad.
    NARESH MEHAN

    ReplyDelete
  5. आदाब,
    देवी नागरानी जी के कलाम में हमेशा पुख़्तगी देखी जाती है.
    उनका गहन चिंतन शायरी में ढलकर सामने आता है, तो कलाम अपनी बुलंदी पर होता है.
    दोनों ग़ज़लों के सभी शेर दिल को छू गये हैं
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

    ReplyDelete
  6. Meri prerna ko zinda rakhne paane mein aap sabhi ki shubhkamnayein shamil rahengi. aapka aabhar shabdon mein nahin kar pa rahi hoon..

    ReplyDelete

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